भारत की सबसे बड़ी सरकारी तेल शोधक कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन यानी IOC ने अक्टूबर डिलीवरी के लिए अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट यानी WTI से 20 लाख बैरल क्रूड खरीदने का सौदा किया है। यह जानकारी रायटर्स ने तीन व्यापारिक सूत्रों के हवाले से शुक्रवार को दी है। इस खरीद को डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर रूसी तेल आयात को कम करने के लिए बढ़ते दबाव के संदर्भ में देखा जा रहा है। तो सवाल है कि क्या भारत अमेरिकी क्रूड आयल की खरीद बढ़ा रहा है?

इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की इस खरीद की यह ख़बर हाल के महीनों में अमेरिका, कनाडा और मध्य पूर्व से तेल खरीद में बढ़ोतरी की रिपोर्टों के बीच आई है। रायटर्स को तीन व्यापारिक सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर इस ताज़ा ख़रीद के बारे में जानकारी दी है। आईओसी ने हाल ही में अमेरिका, कनाडा और मध्य पूर्व से कच्चा तेल खरीदा है। यह तब हो रहा है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन में युद्ध विराम के लिए राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ वार्ता से पहले भारत पर रूसी तेल खरीदने के लिए दबाव बढ़ा दिया है।
अन्य रिपोर्टों में कहा गया है कि यह सौदा अगस्त में किया गया और यह उन कई सौदों में शामिल है जिनमें IOC ने अक्टूबर डिलीवरी के लिए कुल 50 लाख बैरल क्रूड तेल खरीदा है। इसमें 20 लाख बैरल अमेरिकी मार्स क्रूड, 20 लाख बैरल ब्राजीलियाई क्रूड और 10 लाख बैरल लीबियाई क्रूड शामिल हैं। इसके अलावा IOC और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन यानी बीपीसीएल ने सितंबर और अक्टूबर डिलीवरी के लिए गैर-रूसी क्रूड के कुल 220 लाख बैरल खरीदे हैं। यह कदम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीद को रोकने के लिए दबाव बढ़ाने और भारतीय निर्यात पर अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की धमकी के बीच उठाया गया है।

ट्रंप के दबाव की राजनीति

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में भारत पर रूसी तेल आयात को लेकर कड़े रुख अपनाए हैं। 6 अगस्त 2025 को ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसमें भारतीय आयात पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की घोषणा की गई। इससे कुल टैरिफ़ दर 50 प्रतिशत हो गई। यह टैरिफ़ 27 अगस्त से लागू होने वाला है। ट्रंप ने भारत और रूस को 'मृत अर्थव्यवस्थाएं' करार देते हुए भारत के रूसी तेल आयात को मुख्य चिंता बताया है।

ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ़ को भारत सरकार ने ग़लत और अन्यायपूर्ण करार दिया है और वैश्विक व्यापार मंच पर अपने हितों की रक्षा के लिए सभी ज़रूरी कदम उठाने की बात कही है।

विदेश मंत्रालय ने यह भी साफ़ किया कि भारत और अमेरिका के बीच संबंध केवल व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इनमें जियो-पॉलिटिकल और रणनीतिक महत्व भी शामिल हैं।

रूसी तेल आयात पर स्थिति

हालाँकि IOC ने अमेरिकी तेल खरीद में बढ़ोतरी की है, लेकिन भारत ने अगस्त में रूसी क्रूड के आयात को भी बनाए रखा है। जून और जुलाई में दिए गए ऑर्डर के आधार पर भारत ने अगस्त में प्रतिदिन लगभग 20 लाख बैरल रूसी क्रूड आयात किया। यह आयात जी7 द्वारा लगाए गए मूल्य सीमा के भीतर है और इसे प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं माना जाता। भारत ने तर्क दिया कि रूसी तेल का आयात वैश्विक तेल कीमतों को नियंत्रित करने और रूस की आय को सीमित करने की अमेरिकी नीति के अनुरूप है।
हालाँकि, रूस से आयात में वृद्धि ने इराक और सऊदी अरब से तेल खरीद को प्रभावित किया है। ऊर्जा ट्रैकर केपलर के अनुसार, रूसी तेल की बढ़ती आपूर्ति ने इन देशों से आयात को कम किया है। जानकारों का अनुमान है कि रूसी तेल को पूरी तरह से छोड़ने से भारत के तेल आयात बिल में दो वर्षों में लगभग 20 बिलियन डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है।

भारत-अमेरिका ऊर्जा व्यापार

कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि जनवरी से जून 2025 तक भारत के तेल और गैस आयात में 51 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। खासकर LNG आयात वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1.41 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2.46 बिलियन डॉलर हो गया। फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने के लिए 2024 में 15 बिलियन डॉलर से बढ़ाकर 2025 में 25 बिलियन डॉलर तक ऊर्जा आयात करने का वादा किया था। इसके बाद सरकारी तेल और गैस कंपनियों ने अमेरिकी कंपनियों के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति समझौतों के लिए चर्चा शुरू की।

IOC की रणनीति

IOC की यह खरीद भारत की ऊर्जा सुरक्षा और जियो-पॉलिटिकल रणनीति में संतुलन बनाए रखने का प्रयास दिखाती है। कंपनी ने हाल ही में अमेरिका, कनाडा, मध्य पूर्व और नाइजीरिया से 80 लाख बैरल क्रूड तेल के सौदे किए हैं। यह कदम भारत की रूसी तेल पर निर्भरता को कम करने और वैश्विक तेल बाजारों में उतार-चढ़ाव और जियो-पॉलिटिकल तनावों का प्रबंधन करने की रणनीति का हिस्सा है। सरकार की ओर से भी बार-बार बयान आए हैं कि भारत तेल आयात को डायवर्सिफाई कर रहा है।

हालाँकि, विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिकी तेल की लागत मध्य पूर्व के तेल की तुलना में अधिक है, जो भारत के आयात बिल को बढ़ा सकता है। इसके बावजूद भारत सरकार ने साफ़ किया है कि वह अपनी ऊर्जा आपूर्ति में विविधता लाने और रूसी तेल पर निर्भरता कम करने के लिए प्रतिबद्ध है।