एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी से प्रभावित इलाक़ों में तबाही के निशान अभी भी साफ़ दिखाई दे रहे हैं। पीड़ितों के चेहरों पर अभी भी डर और दहशत के साये दिखाई दे रहे हैं।
युद्धविराम के बाद भी सीमा पर आबादी डर और दहशत के साये में
जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर रहने वाली आबादी पर आफत टूट पड़ी है, प्रभावित इलाकों में अभी भी मातम पसरा है, हर आंख नम है और हर दिल गमगीन है।

नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा के नेतृत्व में कई विधायकों के दल द्वारा सीमावर्ती इलाकों के दस दिवसीय दौरे के बाद सरकार को सौंपी गई विस्तृत रिपोर्ट के अनुसार घाटी के कुपवाड़ा और बारामुल्ला तथा जम्मू के पोख और राजौरी इलाकों में सीमा पार से गोलाबारी के कारण कम से कम दो हजार रिहायशी मकान और अन्य ढांचे क्षतिग्रस्त हुए हैं। अंधाधुंध गोलाबारी में रिहायशी मकान, दुकानें, पूजा स्थल, स्कूल भवन और कई वाहन भी तबाह हो गए। सबसे भयावह 7 मई से 10 मई तक के चार दिन थे। यानी ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत से लेकर दोनों देशों द्वारा युद्ध विराम की घोषणा तक, चारों जिलों की सीमावर्ती आबादी तबाह हो गई थी।