loader
सोनम वांगचुक

सरकार के दबाव पर पशमीना मार्च वापस लिया गया

लद्दाख के पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने शनिवार को अपना पशमीना मार्च वापस लेने की घोषणा की। मशमीना मार्च रविवार 7 अप्रैल को प्रस्तावित था। वांगचुक ने फैसले की वजह "संभावित हिंसा का खतरा" बताई। क्योंकि सरकार ने शनिवार को लद्दाख में इंटरनेट बंद कर दिया और धारा 144 लागू कर दी। हालांकि सोनम वांगचुक ने शांतिपूर्ण मार्च की घोषणा की थी। लेकिन धारा 144 लागू करने के बाद सरकार ने हर तरह के आंदोलन पर रोक लगा दी। सोनम वांगचुक ने टकराव के मद्देनजर अपना आह्वान वापस ले लिया।

शनिवार को पत्रकारों से बात करते हुए वांगचुक ने कहा, “हम पिछले 35 दिनों से उपवास और प्रार्थना के रूप में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं। हमने 7 अप्रैल को एक शांतिपूर्ण मार्च की भी योजना बनाई थी। पशमीना मार्च का उद्देश्य चांगपा खानाबदोश जनजातियों की दुर्दशा को उजागर करना था, जो उत्तर में चीनी घुसपैठ और हमारे अपने कॉरपोरेट्स के कारण अपनी हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि खो रहे हैं।"

ताजा ख़बरें
लद्दाख की जनता के लिए पशमीना मार्च जिन्दगी का सवाल है। लेकिन सरकार ने इस कुचलने की तैयारी कर ली है।पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक द्वारा 7 अप्रैल को प्रस्तावित 'पश्मीना मार्च' के मद्देनजर क्षेत्र में शांति बनाए रखने के नाम पर केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले में धारा 144 लागू कर दी गई है। इसके तहत किसी भी तरह के जलसे, जुलूस आदि पर रोक रहेगी।

सोनम वांगचुक लगातार कह रहे हैं कि पशमीना मार्च शांतिपूर्ण है। वो गारंटी ले रहे हैं। लेकिन सरकार सुनने को तैयार नहीं है। धारा 144 लगाए जाने के बाद वांगचुक ने कहा कि “वह इस आदेश पर असमंजस में हैं। शांतिपूर्ण लद्दाख बहुत भ्रमित है! 31 दिनों की अत्यंत शांतिपूर्ण प्रार्थनाओं और उपवासों के बाद... अचानक प्रशासन की शांति पहल किसी भी चीज़ से अधिक खतरनाक लगती है!''


इससे संबंधित आदेश में सरकार ने कहा- “जिला मजिस्ट्रेट, लेह की लिखित अनुमति के बिना किसी के द्वारा कोई जुलूस/रैली/मार्च आदि नहीं निकाला जाएगा। कोई भी वाहन या अन्य लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं करेगा, कोई सार्वजनिक सभा नहीं होगी। कोई भी ऐसा बयान नहीं देगा, जिससे सांप्रदायिक सद्भाव, सार्वजनिक शांति भंग होने की संभावना हो और जिससे जिले में कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो सकती है।“ 

क्या है पशमीना मार्च

महात्मा गांधी के ऐतिहासिक नमक मार्च से प्रेरित होकर, पशमीना मार्च का आयोजन लद्दाख के चारागाह क्षेत्रों में कथित चीनी घुसपैठ के विरोध में और ईको के लिए नाजुक क्षेत्र में "जमीनी हकीकत" को उजागर करने के लिए किया जाता है। पशमीना का कारोबार लद्दाख और करगिल के लोगों की आजीविका है। जिन भेड़ों से पशमीना मिलता है, वो चरागाह खत्म होते जा रहे हैं। कुछ पर चीन ने कब्जा कर लिया है। मोदी सरकार इन चारागाहों को चीन से वापस नहीं ले रहा है। भेड़ों को इन्हीं चरागाहों में चरने को भेजा जाता है। लेकिन चीन का कब्जा होने के बाद लद्दाख के लोग उन इलाकों में अपनी भेड़ें लेकर नहीं जा सकते। सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए ही सोनम वांगचुक ने गांधीवादी रास्ता अपनाया है। 

​शिक्षा सुधार में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 6 मार्च से लेह में 21 दिवसीय 'जलवायु उपवास' शुरू किया था। इसके बाद वांगचुक ने एक वीडियो संदेश में लोगों से शांतिपूर्ण और प्रभावशाली मार्च आयोजित करने का आग्रह किया और अधिकारियों से पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता पर जोर दिया। तब इसका नाम पशमीना मार्च सोनम वांगचुक ने दिया। उनके 21 दिवसीय उपवास के दौरान लद्दाख में कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा नहीं हुई। अब वहां दस दिनों से क्रमिक उपवास जारी है। 10 दिवसीय रिले उपवास में लगभग 250-300 महिलाओं ने भाग लिया। यह 150 महिलाओं की प्रतिबद्धता का गवाह बना, जिन्होंने अपनी रातें खुले आसमान के नीचे बिताईं। जैसे ही वे अपना उपवास समाप्त करेंगे, कमान लद्दाख के युवकों को सौंपी जाएगी, जो इस विरोध प्रदर्शन को आगे बढ़ाएंगे।
पशमीना मार्च के जरिए लद्दाख को पूर्ण राज्य की मांग भी की जा रही है। सोनम वांगचुक का कहना है कि यहां की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए लद्दाख को नागालैंड, मिजोरम जैसा दर्जा दिया जाए। जो नियम वहां लागू हैं, उन्हें यहां भी लागू किया जाए।
जम्मू-कश्मीर से और खबरें
मार्च पर रोक लगाए जाने पर एआईसीसी के जम्मू-कश्मीर प्रभारी भरत सोलंकी ने कहा कि इससे लद्दाख में गंभीर स्थिति पैदा हुई है। लद्दाख में गंभीर स्थिति को उजागर करने के लिए 7 अप्रैल को ‘पशमीना मार्च’ से पहले, भाजपा के इशारे पर यूटी प्रशासन ने मोबाइल डेटा पर अंकुश लगाने का आदेश दिया है ताकि सच्चाई भारत के लोगों तक न पहुंच सके। लद्दाख और उसके लोगों के प्रति भाजपा के तिरस्कार का एक और सबूत।'' 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

जम्मू-कश्मीर से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें