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बिहार की खिसियाहट झारखंड में निकाल पाएगी बीजेपी?

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार के लिए अगले कुछ दिन परेशानियों से भरे हो सकते हैं। बिहार में चोट खायी भारतीय जनता पार्टी को झारखंड में ऐसे हथकंडे मिल गये हैं जिससे वहां वह अपनी झेंप मिटा सकती है और वहां की खिसियाहट यहां निकालने की कोशिश कर सकती है।
झारखंड का ऑपरेशन लोटस अपने पहले फेज में तो नाकाम रहा, लेकिन इसका दूसरा फेज चालू है। इस दूसरे फेज में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खान लीज का मामला तो पहले से ही था, अब एक अन्य मामले में उनके पिता शिबू सोरेन और परिवार के अन्य सदस्य शामिल हो गये हैं या कर दिये गये हैं।
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रांची का मोरहाबादी मैदान फिलहाल जनजातीय महोत्सव में मेहमानों के स्वागत में लगा है लेकिन भारत के लोकपाल ने तत्कालीन कोयला मंत्री शिबू सोरेन को 25 अगस्त तक दिल्ली बुलाया है। मंगलवार को इस महोत्सव के उद्घाटन समारोह में शिबू मंच पर आये तो वे काफी कमजोर दिख रहे थे और हेमंत अपने अधिकारियों के साथ उन्हें सहारा दे रहे थे। उन पर और उनके परिवार पर आरोप है कि उन्होंने अवैध कमाई की है और बेनामी संपत्तियां खरीदी हैं। ऐसे में सवाल यह है कि जब हेमंत सोरेन को खुद सहारे की जरूरत है तो वे अपने पिता को अवैध कमाई के नाम पर कथित तौर पर तंग किये जाने के मामले में कितना सहारा दे पाएंगे।
लोकपाल के कहने पर यह मामला सीबीआई की जांच में था और उसने अपनी प्राथमिक रिपोर्ट लोकपाल को सौंप दी है जिसमें उसने आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप को सही बताया गया है। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट लोकपाल को सौंप दी है।
वैसे, यह शिकायत अगस्त 2020 में दर्ज करायी गयी थी मगर उस पर कार्रवाई अब हो रही है। इस बीच सोरेन परिवार को अपना पक्ष रखने का अवसर भी दिया गया था। सीबीआई ने जून के आखिरी सप्ताह में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी और लोकपाल ने शिबू सोरेन को 25 अगस्त तक खुद हाजिर होने या अधिकवक्ता को भेजने को कहा है।
हेमंत सोरेन फिलहाल अपने पिता शिबू सोरेन के लिए वकीलों की टीम देखने में जुटे होंगे लेकिन उससे पहले 12 अगस्त को निर्वाचन आयोग इस बात पर फैसला देने वाला है कि क्या पद पर बने रहते हुए उन्होंने अपने नाम खान की लीज ली है और इस कारण उनकी विधायकी रद्द की जा सकती है। 
यह मामला भी कई अजीब मोड़ ले चुका है। पहले तो हेमंत सोरेन चुनाव आयोग से अपना जवाब देने के लिए समय मांग रहे थे, बाद में चुनाव आयोग ने खुद उन्हें वक्त देना शुरू कर दिया। इस बीच राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का चुनाव आ गया और हेमंत ने आदिवसी के नाम पर उनका समर्थन कर दिया जिसे वास्तव में बीजेपी के लिए समर्थन माना गया। हेमंत ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की और जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देवघर हवाई अड्डा का उद्घाटन करने वहां पहुंचे तो हेमंत सोरेन का उनसे मिलना और उससे भी ज्यादा उनका हाव-भाव चर्चा में आ गया।
ऐसा माना गया कि हेमंत सोरेन और बीजेपी में एक तरह का समझौता हो गया है और जिस ऑपरेशन लोटस की चर्चा हो रही थी, वह दब सी गयी। इसके बाद एक और कांड हो गया। वह कांड था कांग्रेस के तीन विधायकों का रुपयों की गड्डियों के साथ पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा पकड़ा जाना। कांग्रेस ने तो उन तीनों विधायकों को पार्टी से निलंबित कर दिया लेकिन इसे भाजपा के ऑपरेशन लोटस का हिस्सा बताया गया। इसमें असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा का नाम भी आया और उन्हें यह कहना पड़ा कि वे 22 साल तक कांग्रेस में रहे थे, इसलिए कांग्रेस के पुराने लोग उनके संपर्क में रहते हैं। हालांकि कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उनके इशारे पर ही कांग्रेस विधायकों को पर्याप्त संख्या में तोड़कर बीजेपी में लाना था और झारखंड में अपनी सरकार के लिए राह समतल करनी थी।
इस उठापटक के बीच भारतीय जनता पार्टी को बिहार में अपनी सत्ता खोने की नौबत आ गयी और लंबे समय से उनके खेवनहार बने नीतीश कुमार ने पाला बदल लिया। बिहार में सरकार से बाहर होना ही भाजपा के लिए सदमे की बात नहीं है बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अकेले पड़ जाने का गम भी उसे सताएगा। उसकी कोशिश तो होगी बिहार में अपने हिन्दुत्व के एजेंडे को जोर शोर से लागू करने की मगर यहां के जातीय समीकरण में वह कितना कामयाब होगी, यह समय बताएगा।
बिहार में अपनी पछाड़ से उबरने की कोशिश में लगी भारतीय जनता पार्टी अब झारखंड में ऑपरेशन लोटस का दूसरा फेज शुरू कर सकती है। इस बार उसे किसी पार्टी को तोड़ने की कोशिश की जरूरत नहीं होगी। अ बवह सीधे तौर पर हेमंत सोरेन को अपने इशारे पर चलने वाले मुख्यमंत्री के रूप में रखने के विकल्प पर भरपूर मेहनत करेगी।
झारखंड महोत्सव के दूसरे दिन यानी बुधवार की शाम छत्तीसगढ़ के मुख्मंत्री भूपेश बघेल भी अपनी बात रखने पहुंच रहे हैं। ऐसे में देखना होगा कि बघेल से अपनी मुलाकात के बाद हेमंत सोरेन अपनी अगली रणनीति क्या बनाएंगे।
बीजेपी के लिए यह काम मुश्किल होगा कि इस उम्र में वह शिबू सोरेन को जेल भिजवाने में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले क्योंकि आदिवासी समाज में इसका खराब संदेश जाएगा। लेकिन हेमंत पर दबाव बनाने के लिए इस मामले का इस्तेमाल करने से भाजपा को कौन रोक सकता है। इसी तरह 12 अगस्त को अगर चुनाव आयोग का फैसला हेमंत सोरेन के खिलाफ आता है तो उन्हें गद्दी छोड़नी पड़ सकती है। इस तरह अगले दो दिन झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
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समी अहमद
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