बिहार में हार के बाद झारखंड में महागठबंधन के सहयोगी जेएमएम ने घाटशिला उपचुनाव में महत्वपूर्ण जीत दर्ज की। यह जीत कितनी अहम है?
बिहार में महागठबंधन की करारी हार के बीच इंडिया गठबंधन के सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी जेएमएम ने झारखंड में एक अहम उपचुनाव में अपनी ताक़त दिखाई। घाटशिला विधानसभा उपचुनाव में जेएमएम उम्मीदवार सोमेश चंद्र सोरेन ने भाजपा के बाबू लाल सोरेन को 38000 से अधिक वोटों के अंतर से हराकर जीत हासिल की। बाबू लाल पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे हैं। चंपाई ने पिछले साल अगस्त में जेएमएम छोड़कर भाजपा का दामन थामा था।
झारखंड में यह जीत जेएमएम के लिए न सिर्फ झारखंड में महागठबंधन की हार का राजनीतिक बदला है, बल्कि हेमंत सोरेन सरकार के लिए पिछले साल की उथल-पुथल के बाद पहला चुनावी इम्तिहान भी पार करने का प्रमाण है।
चंपाई सोरेन का विद्रोह
चंपाई सोरेन ने पिछले साल जुलाई में हेमंत सोरेन को कथित भ्रष्टाचार मामले में जेल से जमानत मिलने के बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था। इसके एक महीने बाद उन्होंने जेएमएम से इस्तीफा देकर भाजपा जॉइन कर ली। चंपाई को 'कोल्हान टाइगर' के नाम से जाना जाता है और उन्होंने अपने बेटे बाबू लाल को घाटशिला से उम्मीदवार बनवाया।
उपचुनाव की नौबत पूर्व जेएमएम विधायक और राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के 15 अगस्त को निधन से आई थी। जेएमएम ने उनके पुत्र सोमेश चंद्र सोरेन को मैदान में उतारा। सोमेश एक मैकेनिकल इंजीनियर हैं और उन्होंने अपने पिता की विरासत व योगदान पर भरोसा जताया।
पिछले साल के विधानसभा चुनाव में रामदास सोरेन ने इसी सीट से बाबू लाल सोरेन को 22000 से अधिक वोटों से हराया था। इस बार जेएमएम ने अंतर को दोगुना से ज्यादा कर दिया।
आदिवासी सीट
घाटशिला एक आदिवासी आरक्षित सीट है। दोनों उम्मीदवार संथाल समुदाय से थे। मतदाताओं में लगभग 45% आदिवासी, 6% अल्पसंख्यक और शेष ओबीसी तथा सामान्य वर्ग के थे।
जेएमएम ने इस सीट को आदिवासी समुदाय में अपनी पकड़ मज़बूत करने का मौक़ा माना। हेमंत सोरेन सरकार ने पूरी कैबिनेट को प्रचार के लिए उतार दिया। हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने कई रोड शो और रैलियां कीं। इनमें माईयां सम्मान योजना और 50 वर्ष से अधिक उम्र की लगभग 15,000 महिलाओं के लिए पेंशन योजना को प्रमुखता से उपलब्धियों के रूप में पेश किया।
जेएमएम की पकड़ बरकरार, चंपाई को झटका
यह उपचुनाव हेमंत सोरेन के पिछले साल सत्ता में लौटने के बाद पहला चुनावी टेस्ट था। 81 सदस्यीय विधानसभा में जेएमएम के पास 55 विधायक हैं, इसलिए परिणाम सरकार पर कोई असर नहीं डालता। लेकिन यह जीत चंपाई सोरेन और उनके परिवार के लिए करारा झटका है, जिन्होंने जेएमएम पर भ्रष्टाचार और आदिवासी बहुल राज्य में विकास की कमी का आरोप लगाया था।जेएमएम के लिए यह ज़रूरी था कि चंपाई सोरेन इस क्षेत्र में दोबारा पैर न जमा सकें। पार्टी ने इसे 'विश्वासघात का बदला' करार दिया।
बिहार की हार के बीच महागठबंधन को राहत
बिहार में एनडीए की भारी जीत से महागठबंधन बुरी तरह पराजित हुआ। ऐसे में घाटशिला की जीत ने इंडिया गठबंधन को कम से कम कुछ राहत और खुशी दी। जेएमएम प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, 'यह जीत आदिवासी समाज का जेएमएम और हेमंत सोरेन पर भरोसा दिखाती है। चंपाई सोरेन की विश्वासघाती राजनीति को जनता ने नकार दिया।' बीजेपी ने हार को स्वीकार करते हुए कहा कि उपचुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा, 'हम आगे के चुनावों पर फोकस करेंगे।'
घाटशिला उपचुनाव ने साबित कर दिया कि जेएमएम का आदिवासी वोट बैंक अब भी मज़बूत है। हेमंत सरकार अब राज्य में अपनी कल्याण योजनाओं को और तेज करने की योजना बना रही है। वहीं, चंपाई सोरेन के लिए यह हार उनकी नई पार्टी में नई चुनौती खड़ी करती है।