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झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रदर्शन का फाइल फोटो

झारखंड में आर्थिक नाकेबंदी हुई तो क्या होगा

झारखंड और केंद्र सरकार के बीच सीधे टकराव की नौबत आ गई है। झारखंड में 5 नवंबर से आर्थिक नाकाबंदी (Economic Blockade) शुरू हो सकती है। झारखंड में 5 नवंबर को सभी जिला मुख्यालयों पर सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) धरना-प्रदर्शन करेगा। यह हालत केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी की वजह से पैदा हुई है। ईडी ने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को एक खनन घोटाले के मामले में तलब किया है। लेकिन हेमंत ने ईडी के सामने न पेश होने का फैसला किया। 

सीएम हेमंत सोरेन के घर पर बुधवार रात को यूपीए घटक दलों की बैठक बुलाई गई। बैठक में कांग्रेस समेत सभी दलों ने सोरेन को सलाह दी कि वो ईडी के सामने पेश नहीं हों। इस बैठक के बाद सत्तारूढ़ जेएमएम ने आर्थिक नाकेबंदी के आंदोलन की घोषणा की। जेएमएम के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि केंद्र सरकार की केंद्रीय एजेंसियों की नाइंसाफी के खिलाफ अब सड़क से संसद तक लड़ाई होगी। हम राज्य में आर्थिक नाकेबंदी कर देंगे। हमारे पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।

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जेएमएम कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए गए हैं कि वे मोराबाजी, हिन्नू और हेरमू में बड़े पैमाने पर जुटें। इसमें रांची के हिन्नू इलाके में ईडी का दफ्तर है। ईडी दफ्तर के बाहर सीआरपीएफ तैनात कर दी गई है। जेएमएम के कुछ कार्यकर्ताओं को आज गुरुवार को ईडी दफ्तर के पास देखा गया। जेएमएम प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि झारखंड कब तक केंद्र की बीजेपी सरकार का पक्षपात सहन करेगा। कब तक एक चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश बीजेपी करती रहेगी। अब आरपार की लड़ाई का समय आ गया है।

हालांकि 5 नवंबर तक ईडी की प्रतिक्रिया क्या होती है, आर्थिक नाकाबंदी आंदोलन उस पर भी निर्भर करता है। सीएम हेमंत सोरेन के ईडी दफ्तर में पेश न होने पर ईडी की प्रतिक्रिया या तो शाम को या फिर शुक्रवार को आ सकती है। उसके बाद ही जेएमएम भी अपनी नाकाबंदी रणनीति पर आगे बढ़ेगा।

झारखंड में नाकेबंदी से क्या प्रभाव पड़ेगा

केंद्र सरकार के मुताबिक भारत में पैदा होने वाली कुल खनिज संपदा का 40 पर्सेंट से ज्यादा हिस्सा झारखंड में पैदा होता है। इसमें देश में पैदा होने वाला अभ्रक खनिज झारखंड में 58 पर्सेंट, कायनाइट 30 पर्सेंट, तांबा 33 पर्सेंट, कोयला 33 पर्सेंट, बाक्साइट और लोहा 23 पर्सेंट पैदा होता है। इन खनिज संपदा के अलावा यहां क्रोमियम, मैगनीज, चीनी मिट्टी, फायर क्ले, चूना पत्थर, बेराइट, डोलेमाइट, एस्बेस्टस, यूरेनियम, गोल्ड और टंगस्टन भी पाए जाते हैं। बहुत स्पष्ट है कि झारखंड खनिज संपदा के मामले में बहुत अमीर है।

आर्थिक नाकेबंदी होने पर इन सारे खनिज पदार्थों का खनन और राज्य के बाहर जाने पर रोक लग जाएगी। अगर आर्थिक नाकेबंदी लंबी चली तो इसका नुकसान चौतरफा होगा। क्योंकि केंद्र सरकार के तमाम उपक्रम यहां खनन में हैं। इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर के तमाम खनन और उत्पादन कारखाने यहां हैं। जिसमें सरकारी कोल इंडिया से लेकर टाटा के कई कारखाने झारखंड में हैं।

सवाल है कि नुकसान कितना होगा। इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है। केंद्र सरकार ने जिला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट (डीएमएफटी) बना रखा है, जिसके जरिए वो अयस्क वाले राज्यों को विभिन्न कल्याणकारी काम के लिए पैसे देता है। ये पैसे खनिज के डिस्पैच के आधार पर केंद्र सरकार झारखंड को देती है। जितना ज्यादा खनन के बाद डिस्पैच होगा, उतना ज्यादा पैसा राज्य को मिलेगा। ये पैसे केंद्र सरकार के उपक्रमों के जरिए दिए जाते हैं।

दिसंबर 2021 में डीएमएफटी के तहत केंद्र ने झारखंड को 7736.22 करोड़ रुपये दिए थे। डीएमएफटी से मिलने वाले पैसे में धनबाद का हिस्सा सबसे ज्यादा है। धनबाद को अब तक 1700 करोड़ रुपये की आमदनी हुई। यानी झारखंड को कुल मिले पैसे का एक चौथाई हिस्सा धनबाद का है। धनबाद में कोयला सबसे ज्यादा होता है। 

बीसीसीएल हर महीने केंद्र के जरिए इस मद का 20 से 24 करोड़ रुपये धनबाद को देता है। दरअसल, जितना कोयला बीसीसीएल अपनी खदान से निकालता है और डिस्पैच करता है, उसके आधार पर यह पैसा झारखंड को मिलता है। इस तरह जिस महीने में खनन के बाद जितना ज्यादा कोयला बाहर जाएगा, उतना ज्यादा पैसा केंद्र सरकार डीएमएफटी के जरिए झारखंड को देगी।

केंद्रीय उपक्रमों से होने वाली आमदनी के अलावा झारखंड सरकार विभिन्न खदानों पर टैक्स लगाती है और किराया भी वसूलती है। वो आमदनी अलग है। इसका अंदाजा इस आंकड़े से लगाया जा सकता है। 2018-19 में रेत खदानों से झारखंड को 299 करोड़ की आमदनी हुई थी जो 2021-22 में बढ़कर 362 करोड़ हो गई। 2018-19 में झारखंड सरकार ने खदानों से वसूले गए टैक्स और किराए से 8042 करोड़ से ज्यादा कमाई की थी।

गुवा में 7 से आर्थिक नाकेबंदी 

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूमि जिले के गुवा क्षेत्र में 7 नवंबर से आर्थिक नाकेबंदी शुरू हो रही है। गुवा में सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया) की आयरन  मिनरल की खदाने हैं। हालांकि इनकी अपनी स्थानीय मांग है लेकिन सेल चूंकि केंद्र सरकार का उपक्रम है, इसलिए यह आर्थिक नाकेबंदी भी अब जेएमएम के आह्वान पर होने वाली नाकेबंदी का हिस्सा हो गया है। मुखिया सुखराम ने गांव वालों को निर्देश दिया है कि वे 7 नवंबर को जंगल के रास्ते पैदल चलते हुए गुवा खदान में पहुंचें और खदान में चढ़कर उत्पादन और माल ढुलाई का काम शांतिपूर्वक बंद करा दें। सभी ग्रामीण पूरे अनुशासन में रहेंगे, किसी को चोट नहीं पहुंचाएंगे और न अपशब्द कहेंगे। दरअसल, गुवा इलाके के आदिवासी लोग इस बात से परेशान हैं कि सेल की खदान से निकलने वाला लाल पानी, मिट्टी और मुरुम बहकर जंगल और खेती वाली जमीन में जाता है। उससे जंगल नष्ट हो रहे हैं और खेती करना मुश्किल हो रहा है। 

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झारखंड में आर्थिक नाकेबंदी पहले भी हुई है। लेकिन वो आर्थिक नाकेबंदी आदिवासी संगठनों की ओर से की गई है। कई बार नक्सली संगठन भी राज्य में आर्थिक नाकेबंदी का ऐलान करते हैं। लेकिन अब जिस तरह से राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसका ऐलान किया है, उसके प्रभावी होने में कोई दोराय नहीं है।
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क़मर वहीद नक़वी
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