loader

कर्नाटक: भ्रष्टाचार के आरोपों में सीएम की भी कुर्सी गई है...

कर्नाटक में फिर से भ्रष्टाचार पर विवाद छिड़ा है। वैसे, आरोप तो कांट्रेक्टर संतोष पाटिल की आत्महत्या के लिए उकसाने का कैबिनेट मंत्री केएस ईश्वरप्पा पर लगा था, लेकिन अब भ्रष्टाचार तक मामला पहुँच गया है। राज्य की कांट्रेक्टर्स एसोसिएशन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा है कि मंत्री और विधायक सरकारी कामों के टेंडर के लिए सीधे 40 फीसदी कमीशन मांगते हैं।

एसोसिएशन के अध्यक्ष डी. केएमपन्ना और अन्य पदाधिकारियों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बसवराज बोम्मई की सरकार में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच चुका है और पूरी सरकार यहाँ तक कि मुख्यमंत्री कार्यालय भी कमीशन खोरी के इस रैकेट में शामिल है। राज्य में भ्रष्टाचार का यह मामला नया नहीं है। ऐसे आरोपों की ज़द में कई मुख्यमंत्री तक आ चुके हैं और उनकी कुर्सी भी चली गई है।

ताज़ा ख़बरें

बीएस येदियुरप्पा

इसकी सबसे ताजा मिसाल तो पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ही हैं। उन पर जमीन घोटाला और माइनिंग घोटाला का आरोप लगा था। इस कारण उन्हें 20 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। इस मामले में उनके दोनों बेटों के ऊपर भी आरोप लगाए गए थे। इन आरोपों के बाद येदियुरप्पा ने 2012 में अपनी विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया था। हालाँकि अगले ही साल 2013 में बीजेपी में उनकी बिना शर्त वापसी भी हो गई थी।

लोकायुक्त द्वारा भूमि संबंधी भ्रष्टाचार के मामलों में उन्हें दोषी ठहराए जाने के बाद उन्होंने सीएम पद गँवा दिया था। हालाँकि 2018 के चुनाव के बाद कांग्रेस और जेडीएस की कुमारस्वामी सरकार को बीजेपी ने ऑपरेशन लोटस के सहारे गिरा दिया।

ऑपरेशन लोटस के दौरान ही साल 2019 में कर्नाटक में कांग्रेस ने एक ऑडियो जारी कर बीजेपी पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाया था। कांग्रेस ने कहा था कि बीजेपी कर्नाटक में कालाधन का इस्तेमाल कर सरकार को गिराने की साजिश रच रही है। पुलिस ने तब येदियुरप्पा सहित तीन लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया था। हालाँकि इसके कुछ दिनों बाद कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था और कुमारस्वामी सरकार गिर गई थी। 

कुमारस्वामी सरकार गिरने पर प्रदेश में येदियुरप्पा की सरकार बनी थी। लेकिन येदियुरप्पा ने पिछले साल ही फिर से मुख्यमंत्री का पद छोड़ दिया और अब बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री पद पर हैं।

एस बंगरप्पा

एक समाजवादी के तौर पर राजनीति में अपना करियर शुरू करने वाले एस बंगरप्पा 1990 में कर्नाटक में मुख्यमंत्री बने थे। वह 1992 तक इस पद पर बने रहे। उनके कार्यकाल में कई घोटाले सामने आए। उनकी सरकार पर आरोप लगा था कि क्लासिक कंप्यूटर्स की खरीद में भ्रष्टाचार हुआ।

बाद में 2003 में केन्द्रीय जांच ब्यूरो की विशेष अदालत ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस. बंगारप्पा एवं पांच अन्य अभियुक्तों को क्लासिक कम्प्यूटर की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोपों से बरी कर दिया। हालाँकि बंगरप्पा को मुख्यमंत्री पद से कावेरी दंगों से निपटने में उनकी सरकार की विफलता हटाया गया था। 

कर्नाटक से और ख़बरें

रामकृष्ण हेगड़े

इससे पहले रामकृष्ण हेगड़े सरकार भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी थी। हालाँकि, तब सीधे भ्रष्टाचार का मामला नहीं बना था लेकिन ऐसी ही कुछ गड़बड़ी का आरोप लगा था। कर्नाटक में 1983 में रामकृष्ण हेगड़े पहले ग़ैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे। 1985 में चुनाव हुए और वह फिर से मुख्यमंत्री बने। लेकिन साल 1988 में फोन टैपिंग के मामले ने उनकी कुर्सी छीन ली। आरोप लगा कि उन्होंने प्रमुख बड़े नेताओं और व्यवसायियों के फ़ोन टैप कराए थे। 

फोन टैपिंग मामला आने से पहले उन्हें ग़ैर कांग्रेसी खेमे से प्रधानमंत्री पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में भी देखा जा रहा था। तभी कर्नाटक की सियासत में फोन टैपिंग का मामला सामने आया। केंद्र सरकार ने अपनी एजेंसियों को जांच के लिए आदेश दे दिया था। जाँच में सामने आया कि कर्नाटक पुलिस के डीआईजी ने कम से कम 50 नेताओं और बिजनेसमैन के फोन टेप करने के ऑर्डर दिए थे। इनमें हेगड़े के विरोधी भी शामिल थे। 

ख़ास ख़बरें
बहरहाल, राज्य में भ्रष्टाचार के आरोपों में बड़े-बड़े नेताओं की कुर्सी जाने के कई मामले आए हैं। ऐसे में अब जब कांट्रेक्टर संतोष पाटिल की आत्महत्या के बाद भ्रष्टाचार का जो आरोप लगाया जा रहा है, उससे मौजूदा सरकार कैसे निपटेगी? यह सवाल इसलिए अहम है कि राज्य की कांट्रेक्टर एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि पूरी सरकार यहां तक कि मुख्यमंत्री कार्यालय भी कमीशन खोरी के इस रैकेट में शामिल है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

कर्नाटक से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें