‘नौजवान’ अपनी ज़िद पर क़ायम है कि उसे उसके सवालों के जवाब हर क़ीमत पर चाहिए ! कहता हुआ फिर रहा है कि चाहे उसे निष्कासित कर दिया जाये, जेल में डाल दिया जाए वह सवाल पूछना बंद नहीं करेगा। दावा करता है कि उसकी लड़ाई गांधी की तरह ही सत्य के लिए है। उस गांधी के सत्य की तरह जिसका शरीर 30 जनवरी 1948 के दिन गोलियों से छलनी कर दिया गया था जब वह अपने राम की प्रार्थना के लिए जा रहा था । उस राम की प्रार्थना के लिए जिसके स्मरण के लिए एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है ! यह नौजवान लोकतंत्र की प्रार्थनाएँ बाँटता हुआ मुल्क के एक छोर से दूसरे छोर की यात्राएँ कर रहा है। आज़ादी के इतिहास को बदलने वालों की ओर से हर ‘मुमकिन’ कोशिश की जा रही है कि इस नौजवान को कोई नया इतिहास नहीं बनाने दिया जाए।
नौजवान नागरिकों को समझा रहा है कि लोकतंत्र के ‘ईको प्वाइंट्स’ के सामने खड़े होकर साहस के साथ बोला गया शब्द सत्ता की चट्टानों तक सीधा नहीं पहुँच जाता। बोला जाने वाला प्रत्येक शब्द चट्टानों तक यात्रा के दौरान किसी बड़ी अंधेरी खाई , ज्ञात-अज्ञात जल स्रोतों, झाड़ियों और वृक्षों ,पशु-पक्षियों यानी कि ब्रह्मांड के स्पर्श से परिपूर्ण छोटे से छोटे अंश को भी गुंजायमान करता है। ऐसा ही फिर चट्टानों से टकराकर वापस लौटने वाले शब्द के साथ भी होता है। उस स्थिति में समूचे ब्रह्मांड का समर्थन साहस के साथ बोले गए प्रत्येक शब्द को प्राप्त हो जाता है।