कर्नाटक के बीदर जिले में एक सरकारी स्कूल के कई शिक्षकों और गैर-शिक्षण स्टाफ को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के पथ संचलन में भाग लेने के आरोप में कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। आरएसएस के इस मार्च में भागीदारी को सरकारी कर्मचारियों पर लगे सेवा नियमों का उल्लंघन माना गया है। इन नियमों के तहत सरकारी कर्मचारी किसी राजनीतिक या धार्मिक गतिविधि में भाग नहीं ले सकते।

बीदर जिले के औराद ब्लॉक शिक्षा अधिकारी यानी बीईओ ने उन शिक्षकों और स्टाफ को नोटिस जारी किए हैं जो 7 अक्टूबर और 13 अक्टूबर को आयोजित आरएसएस पथ संचलन में शामिल हुए थे। यह कार्रवाई औराद की दलित सेना तालुक इकाई और बहुजन सेवा समिति द्वारा दर्ज कराई गई शिकायतों के बाद शुरू की गई। शिकायतकर्ताओं ने पथ संचलन के वीडियो और फोटोग्राफ्स उपलब्ध कराए, जिनमें इन शिक्षकों की भागीदारी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी। इन सबूतों के आधार पर शिक्षा विभाग ने अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी है।
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बीईओ के नोटिस में कहा गया है कि आरएसएस पथ संचलन में शामिल होकर इन स्टाफ सदस्यों ने सरकारी सेवा विनियमों का उल्लंघन किया है। उन्हें लिखित स्पष्टीकरण जमा करने और व्यक्तिगत रूप से कार्यालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। नोटिस में चेतावनी दी गई है कि यदि जवाब नहीं दिया गया तो कर्नाटक सिविल सर्विसेज (क्लासिफिकेशन, कंट्रोल एंड अपील) रूल्स, 1957 के तहत एकतरफा अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। विभागीय जांच और समीक्षा अभी जारी है।

आरएसएस गतिविधियों पर सरकारी आदेश क्या?

हाल ही में कर्नाटक के सरकारी आदेश में सरकारी संपत्तियों पर निजी संगठनों द्वारा आयोजित गतिविधियों के लिए पहले मंजूरी लेना अनिवार्य किया गया है। कुछ लोगों ने इस आदेश को आरएसएस की गतिविधियों को सीमित करने की कोशिश के रूप में देखा था। इसके ख़िलाफ़ याचिका दायर किए जाने पर इसी हफ़्ते उस सरकारी आदेश पर हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है। हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच की एकल पीठ के न्यायाधीश नागप्रसन्ना ने इस आदेश पर स्टे देते हुए मामले को 17 नवंबर के लिए सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया। 

यह फ़ैसला आरएसएस के शताब्दी वर्ष के संदर्भ में आया है, जब संगठन राज्य भर में शोभायात्राएं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रहा था। इसी बीच सरकार ने सरकारी संपत्तियों के इस्तेमाल से पहले मंजूरी लेने को ज़रूरी कर दिया था।

हालाँकि आदेश में किसी विशेष संगठन का नाम नहीं लिया गया, लेकिन राजनीतिक हलकों में इसे आरएसएस पर निशाना साधने की रणनीति माना गया। यह आदेश सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव प्रौद्योगिकी मंत्री प्रियांक खड़गे के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को लिखे पत्र के बाद आया था। खड़गे ने पत्र में आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों की सार्वजनिक स्थलों पर गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। 

क्या आदेश किसी संगठन के ख़िलाफ़?

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने साफ़ किया था कि यह आदेश किसी एक संगठन के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि सार्वजनिक संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने के लिए है। उन्होंने कहा, 'यह नियम बीजेपी सरकार के जगदीश शेट्टार काल में 2013 में ही लागू किया गया था। बिना अनुमति के कोई संगठन सरकारी संपत्ति का उपयोग नहीं कर सकता।' वहीं, संसदीय कार्य मंत्री एचके पाटिल ने भी कहा, 'इस आदेश का कोई विशेष संगठन से लेना-देना नहीं है। सरकारी संपत्तियों का उपयोग सही उद्देश्य के लिए और सही अनुमति से ही होगा। किसी भी उल्लंघन पर मौजूदा कानूनों के तहत कार्रवाई होगी।'
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पीडीओ का निलंबन और अंतरिम राहत

इधर, इस महीने रायचूर जिले के सिरवार तालुक के पंचायत विकास अधिकारी यानी पीडीओ प्रवीण कुमार केपी को ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज यानी आरडीपीआर विभाग ने आरएसएस शताब्दी समारोह में भाग लेने के लिए निलंबित कर दिया था। कुमार ने 12 अक्टूबर को लिंगसुगुर में आरएसएस के रूट मार्च में उनकी वर्दी पहनकर और डंडा लेकर भाग लिया था।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार निलंबन आदेश में कहा गया कि कुमार ने कर्नाटक सिविल सर्विसेज (कंडक्ट) रूल्स, 2021 के नियम 3 का उल्लंघन किया, जो सरकारी कर्मचारियों को राजनीतिक तटस्थता, निष्ठा और पद के अनुरूप आचरण बनाए रखने का आदेश देता है। उनके कार्यों को सार्वजनिक सेवक के मानकों से असंगत बताया गया। हालाँकि, अब कर्नाटक राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने कुमार के निलंबन पर अंतरिम स्थगन आदेश दे दिया है।

खड़गे के गढ़ में आरएसएस मार्च को सशर्त मंजूरी

दूसरी ओर, कर्नाटक के यादगीर जिले में ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पूर्व विधानसभा क्षेत्र गुरमिटकल में आरएसएस रूट मार्च को 10 शर्तों के साथ अनुमति दे दी गई है। यह मार्च 31 अक्टूबर को होगा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्त नियम लागू किए गए हैं। इंडिया टुडे ने अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि शर्तों में उत्तेजक नारे लगाने पर प्रतिबंध, हथियार ले जाने पर रोक और सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर पाबंदी शामिल है। 
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कलबुर्गी में शांति बैठक बेनतीजा

पड़ोसी कलबुर्गी जिले में तनाव की स्थिति बनी हुई है। चित्तापुर में आरएसएस और नौ अन्य संगठनों को 2 नवंबर को रैलियां आयोजित करने की अनुमति पर चर्चा के लिए बुलाई गई शांति बैठक बिना किसी सहमति के समाप्त हो गई। यह बैठक कर्नाटक हाईकोर्ट के निर्देश पर डिप्टी कमिश्नर फौजिया तरनुम की अध्यक्षता में हुई।

बैठक में आरएसएस, भीम आर्मी, भारतीय दलित पैंथर्स, हसिरु सेने और अन्य समूहों के प्रतिनिधियों के बीच तीखी बहस हुई। कई संगठनों ने आरएसएस से राष्ट्रीय ध्वज और संविधान की प्रस्तावना लेकर मार्च करने की मांग की, न कि लाठी और भगवा झंडे के साथ। आरएसएस प्रतिनिधियों ने परंपराओं का हवाला देकर प्रस्ताव खारिज कर दिया। विरोधी समूहों में शामिल भीम आर्मी ने चेतावनी दी कि यदि आरएसएस सहमत नहीं हुआ तो वे उसी दिन अपना मार्च निकालेंगे।