केरल विधानसभा ने सोमवार को चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित विशेष गहन संशोधन यानी एसआईआर के खिलाफ सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है। इस प्रस्ताव में मतदाता सूची के संशोधन की इस प्रक्रिया को 'लोकतंत्र के लिए खतरा' बताया गया है और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी को लागू करने का परोक्ष प्रयास क़रार दिया गया। सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा यानी एलडीएफ़ और विपक्षी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी यूडीएफ़ ने एकजुट होकर इस प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें मतदाता सूची के संशोधन को पारदर्शी और निष्पक्ष तरीक़े से करने की मांग की गई।

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा विधानसभा में पेश किए गए इस प्रस्ताव में कहा गया कि बिहार में हाल ही में हुए एसआईआर के दौरान बड़े पैमाने पर मतदाताओं के नाम मनमाने ढंग से हटाए गए। इसे विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिलाओं और गरीबों को निशाना बनाने वाली नीति माना गया। प्रस्ताव में चेतावनी दी गई कि यह वोटरों को 'हटाने की राजनीति' पूरे देश में फैल सकती है।
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विजयन ने कहा, 'केरल में स्थानीय निकाय चुनाव जल्द होने वाले हैं और इसके तुरंत बाद 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे समय में जल्दबाजी में एसआईआर लागू करना दुर्भावनापूर्ण है।' उन्होंने 2002 की मतदाता सूची को आधार बनाने को अवैज्ञानिक और अस्वीकार्य बताया, क्योंकि यह 23 साल पुरानी है और मौजूदा परिस्थितियों को नहीं दिखाती।

प्रस्ताव में यह भी चिंता जताई गई कि एसआईआर के तहत 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अपने माता-पिता में से किसी एक का नागरिकता प्रमाण पत्र देना होगा, जबकि 2003 के बाद जन्मे लोगों को दोनों माता-पिता के दस्तावेज देने होंगे। यह शर्त संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धांत का उल्लंघन करती है। जानकारों ने चेताया है कि इससे अल्पसंख्यक, हाशिए पर रहने वाले समुदाय, महिलाएँ और प्रवासी मतदाता सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे।

सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया

प्रस्ताव में बिहार में एसआईआर के अनुभव का हवाला देते हुए कहा गया कि वहाँ 65 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को इन नामों को कारणों सहित ऑनलाइन प्रकाशित करने का निर्देश दिया। केरल विधानसभा ने सवाल उठाया कि जब बिहार में इस प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, तब केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे चुनावी राज्यों में इसे जल्दबाजी में लागू करने का क्या औचित्य है।

मुख्यमंत्री विजयन ने कहा कि ऐसी जल्दबाजी से निर्वाचन आयोग की मंशा पर संदेह पैदा होता है, यह लोकतंत्र को कमजोर करने और लोगों के जनादेश के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास लगता है।

एनआरसी और सीएए से डर

प्रस्ताव में यह आशंका जताई गई कि एसआईआर का उपयोग नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए को फिर से शुरू करने के लिए किया जा सकता है, जो धर्म के आधार पर नागरिकता देता है। विजयन ने कहा, 'यह प्रक्रिया एनआरसी को परोक्ष रूप से लागू करने का प्रयास हो सकता है, जो लोकतंत्र के लिए चुनौती है।' सीएए के तहत बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आए छह अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों (मुस्लिमों को छोड़कर) को तेजी से नागरिकता देने का प्रावधान है। इसे विपक्षी दल भेदभावपूर्ण मानते हैं।

विपक्ष का समर्थन

विपक्षी नेता वी.डी. सतीशन ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा, 'वोट का अधिकार लोकतंत्र की नींव है। मतदाता सूची में मनमाने ढंग से नाम हटाने या बाधाएँ पैदा करने की किसी भी कोशिश का विरोध किया जाना चाहिए। हम केरल की लोकतांत्रिक परंपराओं को संदिग्ध प्रक्रियाओं से कमजोर नहीं होने देंगे।' यूडीएफ ने पहले ही एसआईआर के ख़िलाफ़ अपनी आपत्तियाँ दर्ज की थीं और इस प्रस्ताव को पूर्ण समर्थन दिया।
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मुख्य निर्वाचन अधिकारी की सिफारिश

केरल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी रतन यू. केलकर ने 21 सितंबर को ईसीआई को सिफारिश की थी कि स्थानीय निकाय चुनावों तक एसआईआर को स्थगित कर दिया जाए, क्योंकि एक ही अधिकारी को मतदाता सूची संशोधन और चुनावी रिटर्निंग ऑफिसर की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि 2002 के बजाय ताज़ा मतदाता सूची का उपयोग किया जाए और राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार किया जाए। ईसीआई का इस पर अंतिम फैसला अभी बाक़ी है।

राजनीतिक एकता

केरल में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों की इस दुर्लभ एकता इस मुद्दे की गंभीरता को दिखाती है। प्रस्ताव में मांग की गई कि निर्वाचन आयोग ऐसे कार्यों से बचे, जो लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हों। यह भी कहा गया कि मतदाता सूची का संशोधन पारदर्शी, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से होना चाहिए।

बिहार से सबक

बिहार में एसआईआर के दौरान कथित तौर पर 80 हज़ार मुस्लिम मतदाताओं को हटाने की कोशिशों ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। केरल विधानसभा ने इसे एक 'खतरनाक पैटर्न' के रूप में देखा, जो राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को मताधिकार से वंचित कर सकता है। प्रस्ताव में कहा गया कि ऐसी प्रक्रियाएँ न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर भी संदेह पैदा करती हैं।
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केरल विधानसभा का यह क़दम न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल हो सकता है। यह प्रस्ताव उन राज्यों के लिए एक संदेश है, जहां एसआईआर लागू किया जा रहा है, जैसे तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल। निर्वाचन आयोग ने 1 अक्टूबर 2025 को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करने की घोषणा की है और तब तक यह साफ़ हो जाएगा कि इस प्रस्ताव का क्या असर पड़ता है।

झारखंड में भी पिछले महीने प्रस्ताव पारित

झारखंड विधानसभा ने इसी साल 26 अगस्त को चुनाव आयोग के एसआईआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया है। यह प्रस्ताव 26 अगस्त 2025 को संसदीय कार्य मंत्री राधाकृष्ण किशोर द्वारा पेश किया गया था, जिसमें एसआईआर को संसदीय लोकतंत्र को कमजोर करने और गरीबों एवं दलितों को वंचित करने की कोशिश बताया गया।

तब किशोर ने कहा था, 'सदन की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए और सदन के नेता, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ परामर्श के बाद, मैं इंडिया गठबंधन की ओर से चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के एसआईआर का विरोध करने के लिए एक प्रस्ताव पेश करता हूं।"