प्रेमचंद का असल नाम धनपत राय था और वो 'नबाव राय' नाम से उर्दू में लिखते थे . उनकी कहानियां उस वक्त के 'सोज़े वतन', ज़माना प्रेस, कानपुर में छपती थीं जिसके सारे एडीशन्स अंग्रेजी हुक़ूमत ने ज़ब्त कर लिए थे. ऐसे में 'ज़माना' के एडीटर मुंशी दया नारायण निगम ने नबाव राय की जगह उन्हें 'प्रेमचंद' उपनाम सुझाया। प्रेमचंद को ये नाम पसंद आ गया और वो नबाव राय से प्रेमचंद बन गए.