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आतंकवाद के अभियुक्त को दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ क्यों उतारा बीजेपी ने?

भारतीय जनता पार्टी ने आख़िरकार मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को चुनाव में उतार ही दिया। भोपाल संसदीय सीट 1989 से अब तक कभी नहीं हारने वाली बीजेपी ने दिग्विजय सिंह को चुनौती देने के लिए उस व्यक्ति को चुना, जिस पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगा है। साध्वी लंबे समय तक जेल में रहने के बाद फ़िलहाल ज़मानत पर हैं, पर उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चलेगा, यह साफ़ है। ऐसा लगता है कि बीजेपी जानबूझ कर उस उग्र हिन्दुत्व को उभारना चाहती है, जिसकी काट मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के पास नहीं है।
यह दिग्वजिय सिंह ही थे, जिन्होंने ‘भगवा आतंकवाद’ मुहावरे का इस्तेमाल किया था और जिसे बीजेपी ने एक बड़ा मुद्दा बना लिया था। बीजेपी के हमले से परेशान कांग्रेस को ‘भगवा आतंकवाद’ का मुहावरा वापस लेना पड़ा था। लेकिन दिग्विजय सिंह ने कभी इस मुहावरे से ख़ुद को मुक्त नहीं किया। वह इस पर अड़े रहे।
संघ परिवार की ही संस्था दुर्गा वाहिनी की सक्रिय सदस्य रह चुकी साध्वी प्रज्ञा सिंह बीजेपी के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और विश्व हिन्दू परिषद से भी जुड़ी हुई थीं। हिन्दू आतंकवाद  के आरोप उन पर लगे थे। हालाँकि उन्होंने ख़ुद को निर्दोष बताते हुए पुलिस पर आरोप लगाया था कि उन्हें झूठे मामले में फँसाया गया था, उन्हें यातनाएँ दी गई थीं क्योंकि वह हिन्दू साध्वी थीं। क्या है पूरा मामला?
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मालेगाँव धमाका मामले में चलेगा मुक़दमा

राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी यानी एनआईए की विशेष अदालत ने 27 दिसंबर, 2017 के अपने फ़ैसले में कहा कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ़्टीनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और दूसरे छह लोगों के ख़िलाफ़ आतंकवाद निरोधी प्रावधानों के तहत मुक़दमा चलाया जाना चाहिए। अदालत ने कहा था कि मकोका और अनलॉफ़ुल एक्टीविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट के तहत लगी धाराएँ हटा दी जाएँ, पर उसने एनआईए के इस दरख्वास्त को खारिज कर दिया था कि इन अभियुक्तों को बरी कर दिया जाए क्योंकि उनके ख़िलाफ़ कोई पुख़्ता सबूत नहीं है। अदालत ने एनआईए के इस तर्क को खारिज कर दिया था कि साध्वी को मोटरसाइकिल के बारे में पता नहीं था। इसी तरह अदालत ने इस बात को भी खारिज कर दिया कि प्रज्ञा सिंह बम धमाके की साजिश में शामिल नहीं थी।
उत्तरी महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के मुसलिम बहुल इलाक़े में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके में छह लोग मारे गए थे और 101 लोग बुरी तरह ज़ख़्मी हुए थे। महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवादी निरोधी दस्ते ने जाँच पड़ताल के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह और दूसरे 12 लोगों को अभियुक्त बनाया था। 
एटीएस का कहना था कि रामचंद्र कलसांग्रा ने एक मोटरसाइकिल में बम बाँध कर उसे भीड़ भरे बाज़ार में रख दिया था। एटीएस ने यह भी कहा था कि वह मोटरसाइकिल प्रज्ञा की थी, जो उन्होंने कलसांग्रा को दी थी। यह भी कहा गया था कि प्रज्ञा सिंह को इस हमले की पूर्व जानकारी थी और वह इस साजिश में शामिल थीं।
लेकिन केंद्र में सरकार बदलने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद एनआईए ने साध्वी को क्लीन चिट दे दी। उसने कहा कि साध्वी के ख़िलाफ़ कोई पुख़्ता सबूत नहीं है। एनआईए ने यह भी कहा कि वह मोटर साइकिल प्रज्ञा की ज़रूर थी, पर उन्होंने विस्फ़ोट के बहुत पहले ही उसे किसी को बेच दी थी। एनआईए ने यह अदालत से यह भी कहा कि प्रज्ञा को हमले की साजिश की जानकारी नहीं थी। लेकिन, अदालत ने कहा कि प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों से यह साफ़ है कि प्रज्ञा सिंह भोपाल और फ़रीदाबाद में हुई बैठकों में शामिल थीं और उन्हें साजिश की जानकारी थी।

सुनील जोशी हत्याकांड की अभियुक्त

मध्य प्रदेश के देवास की अदालत में अजमेर दरगाह बम धमाका कांड के अभियुक्त सुनील जोशी की हत्या के मामले में जिन 8 लोगों के ख़िलाफ़ हत्या का मामला चलाया गया, उनमें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर भी हैं। द्वितीय सत्र न्यायाधीश राजेंद्र कुमार वर्मा की अदालत में प्रज्ञा के ख़िलाफ़ धारा 120 बी (आपराधिक साजिश रचने) के तहत मामला दर्ज कर दिया गया। इसके अलावा धारा 320 यानी हत्या के तहत भी मामला दायर किया गया है। 
एनआईए ने पहले यह आरोप लगाया था कि साध्वी प्रज्ञा और दूसरे लोगों ने सुनील जोशी की हत्या इस डर से करवा दी थी कि वह समझौता एक्सप्रेस धमाके और अजमेर दरगाह धमाकों की पोल खोल देंगे।
सुनील जोशी आरएसएस के प्रचारक थे और अजमेर दरगाह बम धमाका मामले में राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी ने उन्हें अभियुक्त बनाया था। लेकिन 29 दिसंबर 2007 को देवास में गोली मार कर उनकी हत्या कर दी गई थी। मध्य प्रदेश पुलिस ने यह मामला बंद कर दिया था। पर बाद में यह मामला फिर खोला गया।

मक्का मसजिद धमाके में अभियुक्त

हैदराबाद के चार मीनार इलाक़े में स्थित मक्का मसजिद में 18 मई, 2007 को हुए बम विस्फोट में असीमानन्द के साथ ही साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम आया था और उन्हें भी अभियुक्त बनाया गया था। पर बाद में सबूतों के अभाव में साध्वी को इस मामले में बरी कर दिया गया था।

असीमानंद से जुड़े तार

समझौता एक्सप्रेस धमाके के मुख्य अभियुक्त स्वामी असीमानंद से भी साध्वी प्रज्ञा के तार जुड़े हुए थे। साल 2007 में दिल्ली से अटारी जा रही समझौता एक्सप्रेस के साधारण श्रेणी के डिब्बे में विस्फोट हुआ था। 19 फ़रवरी, 2007 को दर्ज कराई गई एफ़आईआर के मुताबिक़, रात 11.53 बजे दिल्ली से क़रीब 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन के पास ट्रेन में विस्फोट हुआ था। सरकार बदलने के बाद एनआईए ने अदालत से कहा कि उसके पास असीमानंद समेत किसी अभियुक्त के ख़िलाफ़ पुख़्ता सबूत नहीं है। कुछ दिन पहले विशेष अदालत ने असीमानंद को बरी कर दिया, लेकिन यह भी कहा कि एनआईए ने जानबूझकर कर सबूत पेश नहीं किए।
यह साफ़ है कि बीजेपी कांग्रेस को उसी मुद्दे पर घेरना चाहती है, जिससे वह बचना चाहती है। नरेंद्र मोदी सरकार के बीते पाँच साल के कामकाज पर चर्च करने के बजाय वह उग्र हिन्दुत्व और आतंकवाद जैसे मुद्दे पर बहस केंद्रित करना चाहती है। साध्वी प्रज्ञा पर दाँव लगाना और उन्हें दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ उतारना इसी रणनीति का हिस्सा है।
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