प्रधानमंत्री मोदी अब अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं को रिझाने की कोशिश में जुटे हैं। वैसे, मोदी का बयान समय के साथ बदलता भी रहता है। 2014 के चुनावों से पहले उन्होंने ख़ुद को नीची जाति का घोषित कर दिया था। अति पिछड़ों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बिल्कुल नयी है और वे अपने लिये यादव और जाटव जैसी ज़मीन तलाश रहे हैं।
अति पिछड़ा और अति दलित का एक नया समीकरण बना कर नीतीश ने क़रीब 15 साल पहले लालू यादव के मुसलिम-यादव (एमवाई) समीकरण का दबदबा तोड़ा था। इस चुनाव में अति पिछड़ों के कई नेताओं के अलग होने से बीजेपी मोर्चा को नयी चुनौतियाँ मिल रही थीं।
वोटों के समीकरण पर ग़ौर किया जाये तो इन सबके समर्थन के बावजूद कांग्रेस सीधे-सीधे बीजेपी को हराने में सक्षम दिखायी नहीं दे रही है। लेकिन अति पिछड़ों का वोट कटने से बीजेपी को नुक़सान हो सकता है। इसका सीधा फ़ायदा सपा-बसपा गठबंधन को मिल सकता है।
अब एक तरफ़ सपा और बसपा मिल कर चुनाव लड़ रही हैं तो दूसरी तरफ़ अति पिछड़े नेता बीजेपी से बग़ावत पर उतारू हैं। लोध, कुर्मी, मौर्य और निषाद जैसी जातियों के सहयोग ने बीजेपी की राह आसान कर दी थी।