मध्य प्रदेश के शहडोल जिले की एक महिला सिविल जज (जूनियर डिवीजन) अदिति कुमार शर्मा ने सोमवार, 28 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे में जिला जज राजेश कुमार गुप्ता की मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज के रूप में नियुक्ति का विरोध किया। जिन पर उन्होंने उत्पीड़न और अनैतिकता के गंभीर आरोप लगाए थे। अदिति ने अपने इस्तीफे में लिखा कि वह न्यायिक सेवा से इसलिए इस्तीफा दे रही हैं, क्योंकि "संस्था (जूडिशरी) ने उन्हें निराश किया।"
अदिति ने अपने इस्तीफे में कहा, "मैं उस संस्था से इस्तीफा दे रही हूं, जिसके लिए मैंने पूरी निष्ठा से काम किया। मैंने एक वरिष्ठ जज, राजेश कुमार गुप्ता, के खिलाफ उत्पीड़न के आरोप लगाए थे, लेकिन उनकी जांच के बजाय उन्हें पुरस्कृत करते हुए हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया। यह न केवल मेरे साथ अन्याय है, बल्कि न्यायपालिका की बेटियों को यह संदेश देता है कि उनकी आवाज को दबाया जा सकता है।"
उन्होंने अपने पत्र में यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने गुप्ता के खिलाफ अपनी शिकायतें राष्ट्रपति, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस, रजिस्ट्रार जनरल, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम को भेजी थीं, लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं हुई। "मैंने हर वैधानिक मार्ग अपनाया, यह उम्मीद करते हुए कि मुझे इंसाफ तो नहीं, कम से कम सुनवाई तो मिलेगी, लेकिन सन्नाटा ही जवाब रहा।"
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अदिति ने अपने पत्र में न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "वही न्यायपालिका जो बेंच से पारदर्शिता की बात करती है, अपने ही घर में प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों का पालन करने में विफल रही। जिस व्यक्ति ने मेरे दुखों को अंजाम दिया, उससे कोई सवाल नहीं किया गया, बल्कि उसे पुरस्कृत किया गया।"

पिछला घटनाक्रम और सुप्रीम कोर्ट का दखल

2023 में अदिति कुमार शर्मा सहित छह महिला न्यायिक अधिकारियों की सेवाएं मध्य प्रदेश सरकार ने कथित तौर पर असंतोषजनक प्रदर्शन के आधार पर खत्म कर दी थीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस कार्रवाई को "दंडात्मक, मनमाना और अवैध" करार देते हुए इस साल की शुरुआत में इसे रद्द कर दिया था। फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अदिति को शहडोल में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में बहाल किया गया था। हालांकि, गुप्ता के खिलाफ उनके आरोपों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
1 अगस्त 2024 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की फुल कोर्ट ने चार अन्य महिला अधिकारियों ज्योति वरकड़े, सोनाक्षी जोशी, प्रिया शर्मा और रचना अतुलकर जोशी को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया, लेकिन अदिति और एक अन्य अधिकारी, सरिता चौधरी, को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया।

न्यायपालिका में जेंडर संवेदनशीलता पर सवाल 

अदिति के इस्तीफे ने न्यायपालिका में जेंडर संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी जैसे गंभीर मुद्दों को उजागर किया है। उनकी वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा, "यह मामला अकेला नहीं है। न्यायपालिका की बेटियों को बार-बार निराश किया जा रहा है। जब तक नियुक्तियों से पहले शिकायतों की जांच नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। हमने एक उत्कृष्ट रिकॉर्ड वाली न्यायिक अधिकारी को खो दिया।"
अदिति ने अपने पत्र में लिखा, "यह इस्तीफा बंद नहीं है, बल्कि एक विरोध का बयान है। इसे अभिलेखों में दर्ज रखा जाए, ताकि यह याद रहे कि मध्य प्रदेश में एक महिला जज थी, जिसने न्याय के लिए सब कुछ दिया और उसी व्यवस्था ने उसे तोड़ दिया, जो इसे सबसे ज्यादा प्रचारित करती थी।"
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इस मामले ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता पर बहस छेड़ दी है। कई संगठनों और व्यक्तियों ने अदिति के समर्थन में आवाज उठाई है, और यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने फिर से उठ सकता है। फिलहाल, राजेश कुमार गुप्ता ने अभी तक हाई कोर्ट जज के रूप में शपथ नहीं ली है।
यह घटना न केवल मध्य प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था, बल्कि पूरे देश में महिलाओं के लिए सुरक्षित और संवेदनशील कार्यस्थल की जरूरत को रेखांकित करती है।