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कांग्रेस नेता सिंधिया के लिए एमपी में बीजेपी का ‘स्वागत पोस्टर’ क्यों?

क्या कभी ऐसा हो सकता है कि नेता तो कांग्रेस का हो और बीजेपी स्वागत के पोस्टर लगवाए? कमलनाथ सरकार पर लगातार निशाना साधते रहे कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के मामले में ऐसा ही दिखा है। शुक्रवार को भिंड दौरे पर पहुँचे सिंधिया के स्वागत में बीजेपी के पोस्टर दिखे, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ एनडीए सरकार के कुछ फ़ैसलों का ‘स्वागत’ करते सिंधिया दिखाए आए गए। मसला पोस्टर तक ही सीमित नहीं रहा, सिंधिया ने तल्ख़ अंदाज़ में किसानों की क़र्ज़माफ़ी को लेकर कमलनाथ सरकार को घेरने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने क़र्ज़माफ़ी योजना के क्रियान्वयन पर तीखे सवाल भी उठाये। इस पूरे मामले ने कांग्रेस की ‘नींद उड़ाकर’ रख दी है।

मध्य प्रदेश से लेकर दिल्ली तक में एक बार फिर सिंधिया के भिंड दौरे से सनसनी पैदा हुई है। शुक्रवार को सिंधिया जब भिंड के दौरे पर पहुँचे तो मीडिया में सबसे ज़्यादा सुर्खियाँ बटोरीं बीजेपी भिंड के को- ऑर्डिनेटर हृदेश शर्मा द्वारा सिंधिया के स्वागत के लिए लगवाये गये पोस्टरों ने। शर्मा बीजेपी समर्थित ‘भारत एकता मंच’ भिंड ज़िला इकाई के अध्यक्ष भी हैं।

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शर्मा द्वारा लगवाये गये पोस्टरों में सिंधिया के भिंड ज़िला आगमन पर ‘स्वागत, वंदन और अभिनंदन लिखा गया।’ इन पोस्टरों में 'भारत माता' के साथ सिंधिया के आदमकद चित्र थे। चित्र में एक कोने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व देश के गृह मंत्री अमित शाह तथा मध्य प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा भी नज़र आए। कुछ पोस्टरों में मोदी और रघुनंदन शर्मा भर दिखाई दिए।

बीजेपी द्वारा ‘लगवाये’ गये पोस्टरों में लोगों का सबसे ज़्यादा ‘ध्यान खींचा’ उस लाइन ने जिसमें केन्द्र सरकार द्वारा कश्मीर से धारा 370 हटाने का समर्थन करने के लिए सिंधिया का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने पर कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गाँधी ने न केवल तंज कसे थे, बल्कि कई सवाल भी उन्होंने उठाये। मगर कांग्रेस इस मसले पर बँटी हुई नज़र आयी। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने 370 हटाये जाने पर मोदी सरकार की संकेतों में ‘प्रशंसा’ की थी। सिंधिया भी ऐसे नेताओं में शुमार रहे थे।

भिंड के इस ताज़ा ‘पोस्टर सनसनी’ को लेकर बेहद अहम तथ्य यह रहा कि कई कार्यक्रमों में शामिल हुए सिंधिया ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। सिंधिया और उनके समर्थकों द्वारा पोस्टरों को लेकर पहले और बाद में किसी भी तरह की ‘आपत्ति’ दर्ज नहीं कराई गई है।

क़र्ज़माफ़ी पर उठाये सवाल

सिंधिया ने मध्य प्रदेश के किसानों की क़र्ज़माफ़ी को लेकर भी जमकर सवाल उठाये। सिंधिया ने अपने भाषण में साफ़ कहा, ‘क़र्ज़माफ़ी को लेकर कांग्रेस की सरकार ने वादा पूरा नहीं किया। दो लाख रुपयों तक का क़र्ज़ माफ़ किया जाना है। क़र्ज़माफ़ी 50 हजार रुपयों तक के क़र्ज़ वाले किसानों की हो पायी है। वादा पूरा करना होगा।’

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश के किसानों के दो लाख रुपयों तक के क़र्ज़माफ़ी करने का एलान किया था। विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गाँधी ने बार-बार आश्वस्त किया था कि कांग्रेस की सरकार बनी तो दस दिनों के भीतर क़र्ज़माफ़ हो जायेंगे।

मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के चंद घंटों में कमलनाथ सरकार ने क़र्ज़माफ़ी का आदेश जारी कर दिया था। सरकार बने दस माह के लगभग हो रहे हैं, सभी किसानों के क़र्ज़ माफ़ नहीं हो सके हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश के सरकारी खजाने की हालत बेहद खस्ता है। सरकार के पास पैसा नहीं है। दस महीने में कमलनाथ सरकार ने 25 हज़ार करोड़ के आसपास का नया क़र्ज़ लिया है।

वित्तीय कठिनाइयों के बीच सिंधिया सरीख़े वरिष्ठ और संजीदा नेता के बार-बार क़र्ज़माफ़ी पर घेरने से कमलनाथ सरकार के साथ कांग्रेस के लिए ‘संकट’ गहरा हो रहा है। झाबुआ विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हो रहा है। कुछ महीनों बाद स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं। ऐसे में कांग्रेस की अंदरूनी कलह और बड़े नेताओं की आपसी खींचतान को पार्टी की लुटिया डुबाने वाली खींचतान के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस की परेशानी अकेले सिंधिया नहीं हैं। कई नेता हैं जो अपनी ही सरकार को आये दिन किसी न किसी मुद्दे पर जमकर घेर रहे हैं। ऐसे नेताओं में दिग्विजय सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह का नाम भी है। वह कांग्रेस के विधायक हैं। मंत्री बनना चाहते थे। कमलनाथ ने नहीं बनाया। दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह को अपनी काबीना में ले लिया। लक्ष्मण सिंह मंत्री न बनाये जाने से खफा बताये जा रहे हैं।

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बीजेपी से सिंधिया की नज़दीकियाँ?

यह भी बता दें कि सियासी हलकों में सिंधिया को लेकर यह सुगबुगाहट लंबे वक़्त से बनी हुई है कि उनकी बीजेपी से नज़दीकियाँ बढ़ रही हैं। ख़बरें तो यह भी आईं कि वे कभी भी बीजेपी में जा सकते हैं। इन अटकलों को तब और बल मिला, जब सिंधिया को निशाना बनाने वाले मध्य प्रदेश बीजेपी के नेताओं के रवैये में कुछ ‘बदलाव’ दिखा। आमतौर पर सिंधिया की आलोचना करने वाले बीजेपी के कई नेता पिछले काफ़ी वक़्त से सिंधिया को लेकर चुप हैं या कई अवसरों पर कुछ मुद्दों पर उनकी ‘तारीफ़’ भी करते नज़र आ रहे हैं।

हालाँकि, सिंधिया के बीजेपी में जाने संबंधी तमाम अटकलों को तब कुछ विराम मिला था जब कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का अहम दायित्व सौंपा था। लेकिन अब एक बार फिर से इस पर चर्चा ने ज़ोर पकड़ लिया है।

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एमपी कांग्रेस अध्यक्ष पद चाहते हैं समर्थक

मध्य प्रदेश में 15 सालों का सत्ता का वनवास ख़त्म होने पर ज्योतिरादित्य मुख्य मंत्री पद की दौड़ में शामिल रहे थे। पद कमलनाथ के खाते में चला गया। सिंधिया के समर्थक चाहते हैं कि उन्हें एमपी कांग्रेस का चीफ़ बना दिया जाये। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह खेमा इसके लिए ‘तैयार’ नहीं है। फ़िलहाल पीसीसी चीफ़ कमलनाथ ही हैं। वह चाहते हैं कि किसी ऐसे समर्थक को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठा दें जो ‘यसमैन’ हो। उधर दिग्विजय सिंह इस पद पर अपनी गोटियाँ फिट करने की कोशिश में हैं। तमाम रस्साकशी के चलते आलाकमान मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर फ़ैसला नहीं ले पा रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का भिंड वाला मामला क्या दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा है?

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संजीव श्रीवास्तव
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