मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी में ‘भगदड़’ मची हुई है। नेता खुले आम एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। पार्टी की प्रदेश इकाई और उसके खेवनहार ‘बिखरे-बिखरे’ हैं। खांटी कार्यकर्ता से लेकर रीढ़ माने जाने वाला आरएसएस भी खासा खिन्न, हताश और निराश नज़र आ रहा है। राज्य की चुनावी बागडोर अब सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके दाहिने हाथ केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हाथों में आ चुकी दिख रही है। बावजूद इसके पार्टी के भीतर दबे स्वरों में सवाल उठाते हुए कहा जा रहा है, ‘इस बार के विधानसभा चुनाव में मोदी मैजिक के काम आने की संभावनाएं नहीं हैं!’
बीजेपी में ‘भगदड़’ और दलबदल का आलम यह है कि हर दूसरे-तीसरे दिन नामी-गिरामी चेहरों के खेमा बदलने का क्रम चल रहा है।
मध्य प्रदेश भाजपा को एक और तगड़ा झटका लगा, जब सूबे के मुख्यमंत्री रहे घाघ नेता स्वर्गीय गोविंद नारायण सिंह के बेटे ध्रुव नारायण सिंह ने ‘केसरिया दुपट्टा’ किनारे रखकर, कांग्रेस का ‘हाथ’ थामा।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ ने ध्रुव नारायण को पार्टी की सदस्यता ग्रहण कराई। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री एवं राज्यसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह और मध्य प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह मौजूद रहे।
बता दें, 2008 में भोपाल मध्य विधानसभा सीट से विधायक चुने गए ध्रुव नारायण को शिवराज सरकार में भोपाल विकास प्राधिकरण और मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष पदों का महत्वपूर्ण दायित्व मिला था। कैबिनेट दर्जे वाले पदों के साथ ही भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रहते प्रभात झा ने अपनी अगुआई वाली राज्य इकाई टीम में उन्हें उपाध्यक्ष पद भी दिया था।
भोपाल में वर्ष 2011 में हुए शहला मसूद हत्याकांड में नाम आने के बाद ध्रुव के राजनीतिक करियर पर ब्रेक लग गया था। मामले की जांच सीबीआई ने की थी। साल 2014 में सिंह को कोर्ट और सीबीआई से क्लीनचिट मिल गई थी। क्लीनचिट मिलने के बाद सिंह अलग-थलग पड़े हुए थे।
आज़िज आये ध्रुव नारायण सिंह पार्टी छोड़ते ही भाजपा और उसके नेताओं पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा, ‘अनुभवनहीन वी.डी.शर्मा को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया। संगठन को चुस्त-दुरूस्त करने की बजाय वे (वीडी शर्मा) लेविश लाइफ में मस्त हैं।’ सिंह यहीं नहीं रूके उन्होंने कांग्रेस से भाजपा में आये पूर्व मंत्री, विजयराघवगढ़ के मौजूदा भाजपा विधायक एवं बड़े खनन कारोबारी संजय पाठक को दुर्योधन करार दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को धृतराष्ट्र बताते हुए सिंह ने यह भी कहा, ‘बीते पांच सालों से भाजपा अपनी मूल विचारधारा से हट चुकी है। संगठन सबसे निचले स्तर पर है। दुर्योधनों की भरमार हो गई है।’
सिलसिला जारी है
पिछले महीने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और आरएसएस के संस्थापकों में शुमार रहे स्वर्गीय कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने भाजपा को अलविदा कहा था। शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके दीपक ने भी ध्रुव नारायण सिंह की तरह ही पार्टी की रीति-नीति की तीखी आलोचना की थी।यहां बता दें, बीते महीने भर में बड़ी संख्या में भाजपाइयों ने कांग्रेस का रूख किया है। इस बड़ी संख्या में बहुतेरे लोग वह हैं जो ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के समय सिंधिया का साथ देते हुए, कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी में चले गए थे।
हर दिन नई चुनौतीः मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार में भारी खींचतान है। कैबिनेट के सदस्य खुलकर आपस में लड़ रहे हैं। कैबिनेट कोई भी बैठक बिना विवाद के पूरी नहीं हो पा रही है। कैबिनेट बैठकों में मंत्रीगणों के खुलकर एक-दूसरे के खिलाफ आमने-सामने आने की खबरें आ रही हैं। कद्दावर मंत्रियों में कैबिनेट के भीतर वर्चस्व और अहम की लड़ाई के अलावा ‘ज्यादा मलाई’ के लिए भी टकराहट हो रही है।
गत दिवस मुख्यमंत्री ने अनेक अहम विषयों पर अपने सरकारी निवास पर बैठक बुलाई तो उज्जैन के बड़े नेताओं में जमकर तू-तू, मैं-मैं हुई। सरकार में उच्च शिक्षा महकमे की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे उज्जैन के स्थानीय विधायक मोहन यादव के खिलाफ पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता पारस जैन ने मोर्चा खोल दिया।
जैन ने मोहन यादव को निशाने पर लेते हुए कहा, ‘सिंहस्थ क्षेत्र की अपनी निजी जमीन को मास्टर प्लान में आवासीय करवा लिया है। करोड़ों की जमीन अब अरबों की हो गई है। नियम विरुद्ध कार्य से गलत संदेश जा रहा है। पार्टी की बदनामी हो रही है। साख को बट्टा लग रहा है।’
बैठक में मौजूद उज्जैन के पूर्व सांसद चिंतामण मालवीय ने पारस जैन की हां में हां मिलाई। बहसबाजी से बात बांहे तानकर एक-दूसरे को देख लेने जैसे हालातों तक भी पहुंची। सीएम को हस्तक्षेप पूरा मामला शांत कराना पड़ा। मुख्यमंत्री ने दो टूक कहा, ‘मास्टर प्लान फाइनल नहीं हुआ है। जमीन अभी आवासीय नहीं हुई है।’
सत्ता विरोधी लहरः मध्य प्रदेश विधानसभा इस साल के अंत में होने हैं। चुनाव में भाजपा की राह के बड़े रोड़ों में पार्टीजनों का अंतर्द्वंद्व सबसे बड़ी कठिनाई बना हुआ है। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने सार्वजनिक तौर पर बयान देकर पार्टी को ‘सचेत’ करने का प्रयास किया है। विजयवर्गीय ने कहा है, ‘भाजपा को हरा पाने की ताकत कांग्रेस में नहीं है। मगर भाजपा को भाजपा से बड़ी चुनौती है। बीजेपी को बीजेपी हरा सकती है।’
सत्ता-संगठन की अपनी खामियों के अलावा एंटी इनकमबेंसी की लहर, भारी भ्रष्टाचार और महंगाई ने भी राज्य पर पार्टी की मजबूत पकड़ को खासा ढीला किया हुआ है।
चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘करिश्मे’ के लिए राज्य को नाप जरूर रहे हैं, लेकिन पहले जैसा रिस्पांस उन्हें मिलता नहीं दिख रहा हे। चुनाव जीतने के लिए शिवराज सिंह दोनों हाथों से ‘रेवड़ियां’ बांट रहे हैं। चुनाव में ‘गेम चैंज’ के लिए लाड़ली बहना योजना को उन्होंने लांच किया है। सवा करोड़ के करीब महिलाओं को 1 हजार रुपया महीना सीधे खाते में डालने का क्रम आरंभ हुआ है। मगर योजना के बाद भी भाजपा के खेमे और खेवनहारों के चेहरों पर जीत की चमक दिखलाई नहीं पड़ रही है।
कमजोर चुनावी पक्ष वाले तमाम कारकों के साथ भाजपा के देव-दुर्लभ कार्यकर्ताओं में ‘क्यों ढोये बार-बार, एक से चेहरे’ वाला भाव भी इस बार कुछ ज्यादा घर किया हुआ दिखलाई दे रहा है।
एक ही एक चेहरों के अलावा खांटी कार्यकर्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया के ‘लोगों’ को भी ‘ढोने’ को तैयार नहीं है। राज्य में बहुतेरे जिले ऐसे हैं, जहां दो और तीन भाजपा है। अनेक जिलों में तीन, ‘शिवराज भाजपा, महाराज भाजपा और नाराज भाजपा’ पार्टी की मुसीबतें बढ़ाये हुए है।
230 सीटों वाली विधानसभा (बहुमत का आंकड़ा 116 है) का चुनाव 2003 में जीतकर आने के बाद भाजपा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। लगातार तीन चुनावों में वह जीती। साल 2008 एवं 2013 में भी सत्ता में आयी। उमा भारती की अगुवाई में 173 सीटों की धमाकेदार जीत के बाद कुछ समय के लिए बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2005 में शिवराज सिंह को सीएम बनाया गया। इसके बाद साल 2018 तक वे ही सीएम रहे।
साल 2018 में सत्ता हाथों से जाने और सिंधिया की बगावत के बाद 2020 में सत्ता पाने के बाद बीजेपी ने शिवराज सिंह को पुनः मुख्यमंत्री बनाया। साल 2003 से 2023 (कमल नाथ की 15 महीनों की सरकार के कार्यकाल को छोड़कर) शिवराज के अलावा कैबिनेट में अनेक वही चेहरे हैं जो 2003 में थे।
संगठन में भी प्रदेशाध्यक्ष और कुछ आला पदों को छोड़कर अधिकांश वही चेहरे हैं जो 2003 में होते थे। इतना भर हुआ है कि सत्ता में मंत्री का विभाग और संगठन में पद भर को बदला गया है।
मोदी संभालेंगे मोर्चा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 जून को मध्य प्रदेश आ रहे हैं। वे शहडोल और भोपाल में आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। मोदी, शहडोल में गरीबों को 5 लाख रुपयों तक के मुफ्त इलाज से जुड़ी केन्द्र सरकार की योजना वाले आयुष्यमान योजना के कार्ड बाटेंगे। शहडोल के बाद भोपाल आयेंगे। भोपाल में बैठकर देश भर के पार्टी के बूथ प्रबंधकों से बातचीत का कार्यक्रम है। भोपाल में प्रधानमंत्री उस वंदे मातरम ट्रेन को हरी झंडी भी दिखायेंगे जो स्टेट के भीतर चलाई जाने वाली है।
पीएम मोदी के रोड शो की तैयारियां भी बीजेपी की स्टेट बॉडी ने की हुई है। हालांकि सुरक्षा कारणों से अभी तक इस आयोजन को हरी झंडी नहीं मिल पायी है।
उधर अमित शाह का चुनावी दौरा गत दिवस बालाघाट में होना था, लेकिन मौसम की खराबी के कारण दौरे को स्थगित करना पड़ा है।
कांग्रेस-भाजपा में जुबानी जंग
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता और मीडिया प्रमुख के.के.मिश्रा ने तंज कसते हुए ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मोदी आयें या अमित शाह 2023 के चुनाव में मध्य प्रदेश से भाजपा की विदाई को कोई रोक नहीं पायेगा। अभूतपूर्व हार तय है। साल 2023 के बाद 2024 में केन्द्र से भी भाजपा और उसके गठबंधन वाली एनडीए की विदाई सुनिश्चित है।’राज्य भाजपा के प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता रजनीश अग्रवाल अपने जवाब में फरमा रहे हैं, ‘कांग्रेस को मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखना बंद कर देना चाहिए। राज्य में शिवराज जी और वीडी शर्मा जी ही कपट नाथ (कमल नाथ) एवं कांग्रेस के लिए काफी हैं।’
अग्रवाल आगे कहते हैं, ‘डबल इंजन की सरकार ने मध्य प्रदेश को देश के अग्रणीय सूबों की पात में लाकर खड़ा किया है। हर ओर खुशहाली है। प्रधानमंत्री जी के अमेरिका में स्वागत ने देश की जनता को प्रमाण दिया है मोदी है तो मुमकिन है।’ पार्टी में अंर्तविरोध और कलह की तरफ ध्यान दिलाये जाने पर अग्रवाल ने कहा, ‘हर घर में चार बर्तन आपस में टकराते हैं। मेहमान (चुनाव) आते हैं तो घर चाक-चौबंद हो जाता है।’ उन्होंने आगे जोड़ा, ‘बीजेपी 2023 में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनावों में धमाकेदार जीत दर्ज कर सभी कयासों को गलत साबित करेगी, देख लीजियेगा आप (मीडिया के) लोग।’
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