महाराष्ट्र में हिंदी 'थोपने' के विरोध में ठाकरे भाइयों के एक मंच पर आने से पहले महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार का यह बड़ा फ़ैसला क्यों? जानें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने क्या फ़ैसला लिया।
ठाकरे भाइयों- उद्धव और राज के एक मंच पर आने से पहले देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने तीन भाषा नीति पर यू-टर्न ले लिया है और इससे जुड़े आदेश को रद्द कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में स्कूलों में तीन-भाषा नीति लागू करने का प्रस्ताव रखा था, जिसके तहत कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाना अनिवार्य किया गया था। सरकार के यू-टर्न को विपक्ष ने मराठी लोगों की जीत के रूप में पेश किया है। उद्धव ठाकरे ने कहा, 'यह मराठी मानुस की ताक़त के आगे सरकार की हार है। हमने बीजेपी को झुकने पर मजबूर कर दिया।'
फडणवीस सरकार का यू-टर्न तब आया जब शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे की 5 जुलाई को संयुक्त रैली प्रस्तावित है। इस रैली की घोषणा ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी और कई जानकारों का मानना है कि ठाकरे बंधुओं के एक मंच पर आने की संभावना ने बीजेपी सरकार को अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।
हिंदी को कथित तौर पर थोपे जाने के विरोध और ठाकरे बंधुओं की रैली की घोषणा के बाद महाराष्ट्र सरकार ने 29 जून यानी रविवार को अपने शासनादेश को वापस लेने की घोषणा की। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'हम मराठी भाषा और संस्कृति का सम्मान करते हैं। हिंदी को अनिवार्य करने का कोई इरादा नहीं था। हम सभी पक्षों के साथ विचार-विमर्श के बाद नई नीति बनाएंगे।'
फडणवीस ने कहा कि प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने के सरकार के फ़ैसले का विरोध होने के बीच यह निर्णय राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया। फडणवीस ने संवाददाताओं से कहा, 'आज मंत्रिमंडल में हमने तीन-भाषा नीति और इसे कैसे लागू किया जाना चाहिए, इस पर निर्णय लिया है कि डॉ. नरेंद्र जाधव के नेतृत्व में एक समिति गठित की जाएगी। इस समिति की रिपोर्ट के बाद ही तीन-भाषा नीति लागू की जाएगी।' उन्होंने आगे कहा, 'इसलिए, हम तीन-भाषा नीति पर दोनों सरकारी आदेशों यानी जीआर को रद्द कर रहे हैं। यह समिति हितधारकों से परामर्श करेगी। हमारे लिए केंद्र बिंदु मराठी है।'
तीन-भाषा नीति और विवाद की शुरुआत
इसी साल 17 जून को महाराष्ट्र सरकार ने एक शासनादेश जारी किया था। इसके तहत कक्षा 1 से 5 तक के मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का प्रस्ताव था। यह नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति यानी एनईपी 2020 के तहत भाषाई विविधता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लाई गई थी। सरकार का दावा था कि यह नीति छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर अवसर दिलाएगी।
हालाँकि, इस फ़ैसले ने मराठी भाषी समुदाय और विपक्षी दलों में आक्रोश पैदा कर दिया। कई लोगों ने इसे मराठी भाषा और संस्कृति पर हमला करार दिया और इसे 'हिंदी थोपने' की कोशिश बताया। शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस नीति को 'भाषाई आपातकाल' क़रार दिया और कहा कि यह मराठी अस्मिता को कमजोर करने का प्रयास है। उन्होंने 5 जुलाई को मुंबई के आज़ाद मैदान में विरोध रैली का ऐलान किया।
मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी इस नीति का कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा था,
महाराष्ट्र में मराठी हमारी पहचान है, और हम किसी भी क़ीमत पर हिंदी को थोपने की इजाजत नहीं देंगे।
राज ने स्कूलों से इस 'भाषाई साजिश' का विरोध करने की अपील की और रैली की घोषणा की थी। बाद में दोनों भाइयों में इस मुद्दे पर बात हुई और दोनों ने एक मंच पर साथ आकर सरकार के फ़ैसले का विरोध करने का फ़ैसला लिया।
ठाकरे बंधुओं की संयुक्त रैली
दोनों नेताओं ने 5 जुलाई को मुंबई के आज़ाद मैदान में एक संयुक्त रैली आयोजित करने का फ़ैसला किया। इसका उद्देश्य हिंदी को अनिवार्य करने और तीन-भाषा नीति के खिलाफ मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए एकजुट प्रदर्शन करना था। इस रैली को मराठी भाषा और संस्कृति के लिए एक बड़े आंदोलन के रूप में देखा जा रहा था। 20 साल बाद उद्धव और राज ठाकरे के एक मंच पर आने की ख़बर ने महाराष्ट्र की सियासत में हलचल मचा दी।
'ठाकरे ब्रांड' की ताक़त!
संजय राउत ने इसे 'ठाकरे ब्रांड' की ताकत बताया और कहा, 'उद्धव और राज ठाकरे का एक साथ आना मराठी मानुस के लिए ऐतिहासिक है। यह बीजेपी की साजिशों को नाकाम करेगा।'
संजय राउत ने रविवार को कहा है, 'सरकार का सख़्त हिंदी निर्देश रद्द कर दिया गया है! यह मराठी एकता की जीत है। ठाकरे गुटों के एकजुट होने का डर। अब, 5 जुलाई को प्रस्तावित संयुक्त मार्च नहीं होगा; लेकिन कुछ और चुपके से तैयार हो रहा है। ठाकरे अभी भी ब्रांड हैं!'
माना जा रहा है कि ठाकरे बंधुओं की यह एकता मराठी वोट बैंक को एकजुट कर सकती है, जो बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद एक और झटका साबित हो सकता था।
विपक्ष का आरोप: बीजेपी की घबराहट
विपक्षी नेताओं ने बीजेपी पर ठाकरे बंधुओं की रैली से डरने का आरोप लगाया। उद्धव ठाकरे ने कहा, 'यह मराठी मानुस की ताक़त के आगे सरकार की हार है। हमने बीजेपी को झुकने पर मजबूर कर दिया।' कांग्रेस नेता नाना पटोले ने कहा, 'फडणवीस सरकार ने मराठी अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने की कोशिश की, लेकिन ठाकरे बंधुओं की एकता ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।' आदित्य ठाकरे ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि यह बीजेपी का छिपा हुआ एजेंडा था, लेकिन मराठी जनता ने इसे नाकाम कर दिया। दूसरी ओर, बीजेपी के कुछ नेताओं ने ठाकरे बंधुओं पर मराठी वोट बैंक की सियासत करने का आरोप लगाया।
हालाँकि, सरकार ने तीन-भाषा नीति का आदेश वापस ले लिया है, लेकिन इस विवाद ने मराठी बनाम हिंदी की बहस को और गहरा कर दिया है। ठाकरे बंधुओं की एकता ने महाराष्ट्र की सियासत में एक नया मोड़ ला दिया है और यह भविष्य में बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है। जानकारों का मानना है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए को मिले झटके के बाद यह मुद्दा मराठी वोट बैंक को और मज़बूत कर सकता है।
महाराष्ट्र सरकार का तीन-भाषा नीति को वापस लेना ठाकरे बंधुओं और मराठी समुदाय के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है। इसके अलावा, यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या यह मुद्दा भविष्य में फिर से उभरेगा, या बीजेपी इस संवेदनशील मामले पर सावधानी बरतेगी।