महाराष्ट्र में प्रस्तावित 'महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक' (Maharashtra Special Public Security Bill) ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। इस विधेयक को 'शहरी नक्सलवाद' (Urban Naxals) से निपटने के लिए लाया गया है, लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह कानून असहमति को दबाने, शांतिपूर्ण विरोध को अपराध बनाने और संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करने का हथियार बन सकता है।

क्या है यह विधेयक? 

पिछले साल दिसंबर 2024 में, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन इस विधेयक को पेश किया था। सरकार का दावा है कि यह कानून 'शहरी नक्सलियों' और उनके समर्थन नेटवर्क को निशाना बनाने के लिए जरूरी है। हालांकि, नागरिक समाज समूहों, विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने इसे 'दमनकारी' और 'असंवैधानिक' करार दिया है। उनका कहना है कि यह विधेयक भारत के लोकतांत्रिक ढांचे के लिए खतरा है।

आलोचनाएं और आपत्तियां 

इस विधेयक के खिलाफ 1 अप्रैल 2025 तक 12,000 से अधिक आपत्तियां और सुझाव दर्ज किए गए हैं। आलोचकों का तर्क है कि यह कानून सरकार को असीमित शक्तियां देता है, जिससे बिना उचित प्रक्रिया के व्यक्तियों या संगठनों को निशाना बनाया जा सकता है। विधेयक में असहमति व्यक्त करने वालों को 'शहरी नक्सली' करार देकर उनकी आवाज दबाने की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा, यह शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को अपराध की श्रेणी में ला सकता है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विरोध के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है।
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विरोध प्रदर्शन की तैयारी 

इस विधेयक के खिलाफ व्यापक विरोध की योजना बन रही है। विभिन्न राजनीतिक दलों और जमीनी संगठनों का एक गठबंधन 30 जून को मुंबई के आजाद मैदान में विरोध मार्च आयोजित करने की तैयारी कर रहा है। यह गठबंधन विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहा है और इसे संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ मानता है। प्रदर्शनकारी सरकार से इस कानून को रद्द करने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने की अपील कर रहे हैं।

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। कई लोगों का मानना है कि यह कानून सरकार को असहमति को कुचलने के लिए एक औजार दे सकता है, जिससे नागरिकों के बीच भय का माहौल बन सकता है। इसके अलावा, यह विधेयक उन सामाजिक कार्यकर्ताओं और संगठनों को निशाना बना सकता है जो सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं।

महाराष्ट्र सरकार का पक्ष

महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि यह विधेयक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है और इसका उद्देश्य केवल उन तत्वों को रोकना है जो राज्य की स्थिरता को खतरे में डालते हैं। सरकार ने दावा किया है कि यह कानून 'शहरी नक्सलवाद' जैसे खतरों से निपटने के लिए आवश्यक है और इसमें किसी भी निर्दोष व्यक्ति को परेशान करने का इरादा नहीं है।

बहुत बड़ा खतरा

इस विधेयक पर बहस अभी जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में असहमति को दबाने के लिए आपराधिक कानूनों के दुरुपयोग के खिलाफ चेतावनी दी है, जिससे इस विधेयक की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठ रहे हैं। नागरिक समाज और कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक यदि लागू हुआ तो यह न केवल महाराष्ट्र, बल्कि पूरे देश में लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खतरा बन सकता है।
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महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक ने राज्य में एक नया वैचारिक और राजनीतिक टकराव पैदा कर दिया है। जहां सरकार इसे सुरक्षा के लिए जरूरी बता रही है, वहीं आलोचक इसे लोकतंत्र पर हमला मान रहे हैं। आने वाले दिनों में इस विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और कानूनी चुनौतियां तेज होने की संभावना है। लेकिन जब तक जनता इसके विरोध में नहीं उतरेगी, तब तक सरकार का पीछे हटना मुश्किल है। क्योंकि बीजेपी और उसकी सरकार लंबे अर्से से असहमति की आवाजों के विरोध में अपने तेवर दिखाते रहते हैं।