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भारत जोड़ो यात्रा में पवार-ठाकरे; क्या गठबंधन जमीनी रूप ले रहा है?

राहुल गांधी के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा से शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस प्रमुख शरद पवार के शामिल होने का क्या मायने है ? दरअसल तीन साल पहले महाराष्ट्र में सत्ता का समीकरण बदलने के लिए ये तीनों दल एक साथ आये थे और अढ़ाई साल तक सत्ता में भी रहे। जिस समय महाराष्ट्र की राजनीति में यह नया प्रयोग हुआ था, तकरीबन अधिकाँश राजनीतिक विश्लेषकों की राय में "सत्ता " इसकी धुरी है, कहा गया था।

अधिकाँश लोगों की राय थी कि कांग्रेस या राष्ट्रवादी कांग्रेस के कुछ विधायकों को तोड़कर कुछ समय बाद भारतीय जनता पार्टी फिर से सत्ता में वापसी कर लेगी लेकिन हुआ कयासों के विपरीत। भाजपा ने शिवसेना को ही तोड़ दिया। अब प्रदेश में महाविकास आघाडी (शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस) सत्ता में नहीं है फिर भी तीनों दलों का एक साथ आना सबको चौंकाने वाला सवाल तो होगा ही। 

कांग्रेस के नेता भले ही बार बार भारत जोड़ो यात्रा को कोई चुनावी अभियान नहीं होने की बात कहते हैं लेकिन इस यात्रा के दौरान एक बात जो स्पष्ट रूप से नजर आ रही है वह है, कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता जो थक कर सो गया था अब जागने लगा है। 

Sharad Pawar Uddhav Thackeray in Bharat Jodo Yatra - Satya Hindi
जिन कार्यकर्ताओं को अपने राज्य स्तरीय नेताओं से मिलने में ही अच्छी खासी मशक्क़त करनी पड़ती थी, आज अपने शीर्ष नेतृत्व के साथ वे कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। यानी कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा संगठन और पार्टी को मजबूती देने का एक भागीरथी प्रयास है। सफलता कितनी मिलेगी, कहां मिलेगी इन सबका जवाब आने वाला समय ही देगा लेकिन एक बात तो कही जा सकती है, कांग्रेस अब सडकों पर दिखने लगी है। मीडिया उसे सुर्ख़ियों में नहीं दिखाकर भले ही देश के सामन्य लोगों तक पंहुचने में बाधा बना सकता है लेकिन राजनीतिक तौर पर जागरुक लोगों की चर्चाओं में इस यात्रा ने स्थान बना लिया है। 
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फिर सवाल उठता है कि कांग्रेस के इस प्रयास को सफल करने में उसके सहयोगी दल क्यों साथ दे रहे हैं ? वह भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी जैसा सहयोगी दल जो कांग्रेस की जड़ें खोदकर ही बड़ा बनने का अथक प्रयास करता रहा है !

तो क्या सहयोगी दलों को इस बात का यकीन हो चला है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस की ढाल ही उनकी रक्षा कर सकती है ? केंद्र की सत्ता में आरूढ़ भारतीय जनता पार्टी और उसके द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग के फार्मूलों को देखकर यह यक़ीनन कहा जा सकता है कि देश की सभी छोटी बड़ी प्रादेशिक पार्टियां जिनका एक स्वतंत्र वजूद था संकट में हैं। 

Sharad Pawar Uddhav Thackeray in Bharat Jodo Yatra - Satya Hindi
बात यहां महाराष्ट्र की चल रही है इसलिए हमें उसे समझने के लिए लिए " भारत जोड़ो यात्रा " के वर्तमान से पहले प्रदेश की राजनीति के नेपथ्य में जाना होगा। इतिहास के बहुत पुराने पन्ने उलटने की भी जरुरत नहीं है। महाराष्ट्र में 2015 के विधानसभा चुनाव में पहली बार शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन महज कुछ सीटों के लिए टूटा था।शिवसेना विधानसभा चुनावों में सीटों के बंटवारे के पुराने फार्मूले (171 : 117 ) पर काबिज़ रहना चाहती थी लेकिन नरेंद्र मोदी की दिल्ली में सत्ता आने और देश में एक नयी प्रकार की राजनीतिक लहर की बात कर भारतीय जनता पार्टी बराबर की सीटें लड़ने पर अड़ी थी। वार्ताओं के दौर चले और मामला बराबरी के आसपास तक तय होते होते टूट गया। महाराष्ट्र में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने सैकड़ा पार किया और 120 सीटों पर उसे सफलता मिली। 
Sharad Pawar Uddhav Thackeray in Bharat Jodo Yatra - Satya Hindi

चुनाव बाद सत्ता बनाने के लिए फिर से दोनों दलों में गठबंधन हुआ लेकिन उसके बाद से उनमें राजनीतिक द्वन्द कुछ वैसा ही शुरु हुआ जैसा सत्ता के दौरान कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस में चला करता था। 2019 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने " छोटा भाई " बोलकर उद्धव ठाकरे को अपनी चुनावी सभा के मंच पर स्थान दिया।

लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद महाराष्ट्र में भाजपा नेताओं के सुर बदले और फिर से 50:50 फार्मूले की बात हुई। बीच बचाव के लिए अमित शाह को मातोश्री आना पड़ा और उद्धव ठाकरे के साथ उन्होंने बंद कमरे में मुलाक़ात भी की। दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन जिस तरह से किस सीट से कौन लड़ेगा, भाजपा ही नहीं शिवसेना के भी किस नेता को टिकट देना चाहिए के फैसले देवेंद्र फडणवीस ले रहे थे उसे देखकर यह सवाल उठने लगे थे कि शिवसेना सहमी हुई क्यों है ? इसके पीछे वह माहौल भी था जो भाजपा और उसके मीडिया तंत्र ने बनाया था।

हर दिन भाजपा नेता भर्ती और मेगा भर्ती का दावा करते थे और चुनाव से ठीक पूर्व कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के 39 विधायकों को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल करा चुके थे। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस चुनावी सभाओं में बहुत ताकत के साथ बोलते थे "मैं फिर मुख्यमंत्री बनूँगा"। मैदान में हमसे लड़ने वाला कोई पहलवान ही नज़र नहीं आ रहा, किससे लड़ें। भाजपा नेता 288 में से 220 से अधिक सीटें जीतने का दावा करते थे लेकिन चुनाव परिणाम आये तो बाज़ी पलट गयी थी। 2015 के मुकाबले भी कम सीटें मिलीं। 

भाजपा के दंभी रूप को देखकर शिवसेना ही नहीं कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस साथ आयी। ये गठबंधन भाजपा के मुकाबले अपने अपने अस्तित्व को बचाने का ज्यादा था और यही वजह है कि सत्ता जाने के बावजूद तीनों दलों में आपसी सामंजस्य बना हुआ है। चुनाव चिन्ह और पार्टी का नाम गवांने की टीस उद्धव ठाकरे के मन में हमेशा बनी रहेगी। उन्हें पार्टी में नेतृत्व की नयी कतार भी खड़ी करनी है। 

शिवसेना के लिए एकनाथ नाथ शिंदे नहीं भारतीय जनता पार्टी बड़ी चुनौती है। वह अपनी पार्टी के टूटे हुए विधायकों से अपने शिवसैनिकों के बल पर ही लड़ सकती है लेकिन भाजपा से लड़ने के लिए उसे किसी मजबूत साथी की जरुरत है।
शिवसेना वैसे ही प्रदेश में अपने संगठन को चाक चौबंद करने में जुटी हुई है। नए चुनाव चिन्ह को लेकर शहर शहर, गांव गांव "मशाल" जुलुस निकाल रही है।
भारत जोड़ो यात्रा को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण समेत कांग्रेस के सभी नेता मैदान में हैं और भाजपा के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा को लेकर भाजपा में कितनी बैचेनी है इस बात का अंदाज इसी से लगा सकते हैं कि करीब तीन सप्ताह पहले मीडिया में खबरें चलाई गयी कि अशोक चव्हाण कुछ विधायकों के साथ भाजपा में प्रवेश करने वाले हैं !  
Sharad Pawar Uddhav Thackeray in Bharat Jodo Yatra - Satya Hindi

राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार की बात करें तो उन्होंने 2014 और 2019 के चुनावों के बाद कई बार इस बात को कहा कि कांग्रेस का कमजोर होना विपक्षी दलों के लिए शुभ संकेत नहीं है। 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले शरद पवार राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन के फार्मूले को तलाशते रहे लेकिन वह कोई स्वरूप नहीं ले सका। 2019 का चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार के विपक्ष पर हमले पहले के मुकाबले कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हुए हैं। ED ,CBI तो पहले से ही बदनाम है अब तो संवैधानिक संस्थाओं सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता और कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में 2014 या 2019 के चुनावों से पहले विपक्ष को एक मंच पर लाने की बातें करने की बजाय सड़क पर उतर कर या जनता के बीच में जाकर उस दिशा में प्रयास करने होंगे। और शायद शरद पवार को भी इस बात का अहसास होगा। 

कांग्रेस की तरफ से भारत जोड़ो यात्रा के रूप में एक ईमानदार पहल शुरु हो गयी है तो शरद पवार और उद्धव ठाकरे का उससे जुड़ना एक अच्छा संकेत है। दरअसल महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी में कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी भले ही हो लेकिन जिला परिषद और ग्राम पंचायत चुनावों में प्रदेश भर में भाजपा के बाद कांग्रेस ही दूसरी बड़ी पार्टी है।

जिला परिषद चुनावों में कांग्रेस नंबर एक पर है। पूरे महाराष्ट्र में पार्टी का एक जनाधार है। जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना का सभी क्षेत्रों में उतना विस्तार नहीं है। विदर्भ में भाजपा को केवल कांग्रेस ही चुनौती देती है और पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वहां भाजपा की ताकत को आधा कर दिया था। दरअसल भाजपा को महाराष्ट्र में जो चुनौती दिख रही है वह है कांग्रेस, शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस का शहरी क्षेत्रों में गठबंधन। यदि शहरी क्षेत्रों में भाजपा इस नए गठबंधन के आगे अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी तो पार्टी का लोकसभा और विधानसभा का चुनावी समीकरण बिगड़ जाएगा।

सिर्फ मुंबई महानगरपालिका ही नहीं अन्य महानगरपालिकाओं में भी भाजपा विरोधी गठबंधन वर्तमान में कहीं बेहतर स्थिति में नजर आता है। ऐसे में शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस, राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में साथ चलती हैं तो महाराष्ट्र में तीनों दलों के कार्यकर्ताओं ही नहीं सामान्य जनमानस के लिए भी यह यह सन्देश जाएगा कि यह गठबंधन केवल सत्ता के लिए नहीं था अपितु एक विचारधारा विरोधी लड़ाई के लिए बनाया गया है। 

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इस गठबंधन की ताकत का एहसास अँधेरी पूर्व की विधानसभा सीट के लिए हुए उप चुनाव में भी नज़र आया। यहां भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित कर वापस बिठा दिया। नाम वापसी लेते समय भाजपा नेताओं ने बयान दिए कि दिवंगत विधायक की पत्नी मैदान में हैं इसलिए नैतिकता के तौर पर चुनाव लड़ना अच्छा प्रतीत नहीं होता। लेकिन इस नैतिकता वाले बयान के पीछे की सच्चाई अलग है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में संपादकीय लिखकर भाजपा के इस त्याग और महाराष्ट्र की परंपरा के नाम पर दिए गए बलिदान की बखिया उधेड़ी है। सामना में कहा गया कि डेढ़ साल पहले कोल्हापुर के विधायक चंद्रकांत जाधव का निधन हुआ था। उक्त उप चुनाव में उनकी पत्नी जयश्री जाधव के खिलाफ भाजपा ने प्रत्याशी उतारा था और हारे थे। 
नांदेड़ के देगलुर विधानसभा में कांग्रेस के विधायक राव साहब अंतापुरकर के निधन के बाद हुए उपचुनाव में भी भाजपा ने प्रत्याशी उतारा तो और अंतापुरकर के पुत्र ने वह चुनाव जीता। इसी प्रकार पंढरपुर की मंगलवेढा विधान सभा के उप चुनाव में भी भाजपा ने प्रत्याशी उतारा था।

दरअसल भाजपा को अच्छी तरह से अनुमान लग गया था कि वह अँधेरी उप चुनाव जीत नहीं पाएगी। भाजपा ने मूरजी पटेल को प्रत्याशी बनाया था जो मूलतः गुजराती हैं, ऐसे में पूरा चुनाव महाराष्ट्र बनाम गुजरात होने वाला था। और बात सिर्फ इस उप चुनाव तक ही नहीं मुंबई महानगरपालिका के लिए भी एक संदेश जाता था कि इतनी बड़ी टूट के बावजूद शिवसेना कमजोर नहीं हुई है। वैसे इस चुनाव के पर्चे दाखिले से पहले यह प्रयास किये गए थे कि दिवंगत विधायक की पत्नी शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट की बजाय भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े लेकिन वैसा हो नहीं सका तो महाराष्ट्र की परंपरा और त्याग के नाम से चुनावी मैदान से वापसी का रुख कर लिया।  यानी यह संकेत हैं कि महाराष्ट्र में आज भाजपा अजेय नहीं है। 

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महाविकास आघाडी यदि नियोजित तरीके से चुनाव लड़ती है तो वह विजयी रहेगी। और शायद इसी नियोजन के तहत शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने भी कदम बढ़ाया है। महाराष्ट्र देश के उत्तर और दक्षिण का सरहद है और 48 लोकसभा सीटों की वजह से इसकी राजनीतिक महत्ता काफी है। यदि यहां का समीकरण सुधरता है तो उत्तर का रास्ता भी आसान हो सकता है। वैसे  बिहार में लालू प्रसाद यादव ने भी अपनी पार्टी की बैठक में स्पष्ट रूप से यह बात बोली है कि कांग्रेस को मजबूत करने और उसके साथ खड़े रहने की जरूरत है। 
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संजय राय
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