मुंबई टीआरपी घोटाले के बाद जब बार्क ने एलान किया कि वह अगले दो से तीन महीने तक न्यूज़ चैनलों की टीआरपी नहीं देगा तो पत्रकारों ने राहत की साँस ली होगी और ख़ुद से कहा होगा कि चलो हर हफ़्ते मिलने वाले तनाव से फ़िलहाल छुट्टी मिली। यहाँ तक तो फिर भी ठीक था, लेकिन कुछ अतिआशावादियों ने ये उम्मीद लगानी भी शुरू कर दी कि इसका न्यूज़ चैनलों के कंटेंट पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि अब तो टीआरपी का दबाव होगा नहीं। यानी उन्हें लग रहा था कि टीआरपी की अनुपस्थिति में कंटेंट को सुधरने का मौक़ा मिलेगा। लेकिन यह परिवर्तन न आना था न आया।
TRP का दुष्चक्र-6: और भी ख़तरनाक़ दौर आएगा
- मीडिया
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- 31 Oct, 2020

टीआरपी स्कैम सामने आने पर जब हंगामा हुआ तो टीआरपी से जुड़ी एजेंसी बार्क ने दो से तीन महीने तक न्यूज़ चैनलों की टीआरपी बंद कर दी। लेकिन क्या इससे न्यूज़ चैनलों का कंटेंट सुधर जाएगा? या इसके बाद का दौर कहीं ज़्यादा ख़तरनाक होगा? टीआरपी पर सत्य हिंदी की शृंखला की छठी कड़ी में इन्हीं सवालों को ढूँढने की कोशिश की गई है...
कहने को कहा जा सकता है कि टीआरपी के दबाव से मिली इस अल्पकालिक मोहलत को चैनल कंटेंट सुधारने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। वे चाहें तो कुछ नए प्रयोग कर लें, मगर इसके लिए भी दुस्साहस की ज़रूरत पड़ती है। दुस्साहस इसलिए कि इस दौर में भी चैनलों की आपसी प्रतिस्पर्धा थमती नहीं है, अनवरत् जारी रहती है इसलिए चैनल किसी भी तरह का जोखिम लेने से घबराते हैं।