मुंबई टीआरपी घोटाले के बाद जब बार्क ने एलान किया कि वह अगले दो से तीन महीने तक न्यूज़ चैनलों की टीआरपी नहीं देगा तो पत्रकारों ने राहत की साँस ली होगी और ख़ुद से कहा होगा कि चलो हर हफ़्ते मिलने वाले तनाव से फ़िलहाल छुट्टी मिली। यहाँ तक तो फिर भी ठीक था, लेकिन कुछ अतिआशावादियों ने ये उम्मीद लगानी भी शुरू कर दी कि इसका न्यूज़ चैनलों के कंटेंट पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि अब तो टीआरपी का दबाव होगा नहीं। यानी उन्हें लग रहा था कि टीआरपी की अनुपस्थिति में कंटेंट को सुधरने का मौक़ा मिलेगा। लेकिन यह परिवर्तन न आना था न आया।