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जाति व्यवस्था कैसे नष्ट हो सकती है?

भारत को बदलने और विकसित उच्च औद्योगिक देशों की श्रेणी में लाने के लिए ऐसा ऐतिहासिक संघर्ष केवल तभी सफल हो सकता है जब हम एकजुट हों। लेकिन जाति आधारित आरक्षण हमें विभाजित करता है। दलितों और ओबीसी को लाभान्वित करने की बात तो दूर, यह वास्तव में हमारे कुटिल और चालाक राजनेताओं को फ़ायदा पहुँचाता है।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू

मैंने कैलाश जीनगर का लेख 'Abolition of caste based reservation untenable as long as dalits suffer atrocities, prejudice- a rebuttal to Justice Katju' पढ़ा, जो 'firstpost.com' पर प्रकाशित हुआ है। यह मेरे लेख 'All caste based reservations must be abolished' जो' theweek.in' पर प्रकाशित हुआ था, उसके जवाब में लिखा गया है।

मूल रूप से प्रोफ़ेसर जीनगर ने कहा है कि आज भी दलितों के साथ अत्याचार और भेदभाव किया जाता है। मैंने कभी इससे इनकार नहीं किया। सवाल यह है कि जाति व्यवस्था को कैसे नष्ट किया जा सकता है जो आज भारत की सबसे बड़ी सामाजिक बुराइयों में से एक है। मेरा मानना है कि जाति आधारित आरक्षण जाति व्यवस्था को ख़त्म करने के बजाय इसे और गहराई, और मज़बूती से स्थापित करने में मदद करता है।

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मेरी राय में जाति व्यवस्था को केवल तब नष्ट किया जा सकता है जब भारत को एक अत्यधिक औद्योगिक देश में बदल दिया जाए। भारत में पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में जाति की पकड़ बहुत कमज़ोर है क्योंकि ब्रिटिश शासकों द्वारा इसे आंशिक रूप से अन्य राज्यों की तुलना में अधिक औद्योगिक बनाया गया था जबकि यूपी और बिहार, काफ़ी हद तक सामंती थे।

पर सवाल यह है कि औद्योगीकरण होगा कैसे? मेरा मानना है कि देशभक्त आधुनिक दिमाग़ वाले नेताओं के नेतृत्व में एक क्रांति के बाद ही औद्योगीकरण संभव है, और मेरे हिसाब से अभी फ़िलहाल वर्तमान व्यवस्था में संभव नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र आधारित है जो बड़े पैमाने पर भारत में जाति और सांप्रदायिक वोट बैंक के आधार पर चलती है। जातिवाद और सांप्रदायिकता सामंती ताक़तें हैं, भारत को अगर प्रगति करनी है तो इन्हें नष्ट करना होगा लेकिन संसदीय लोकतंत्र उन्हें और भी मज़बूती प्रदान करता है। ऐसी स्थिति में संसदीय लोकतंत्र के रहते भारत कैसे और किस तरह प्रगति कर सकता है, यह एक सवाल है।

वर्तमान में सभी दलों के हमारे राजनीतिक नेता तेज़ी से देश के औद्योगीकरण का नहीं बल्कि केवल अगला चुनाव जीतने का लक्ष्य रखते हैं, और इसके लिए उनका प्रमुख उपकरण जातिवाद और सांप्रदायिकता है।

एक राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था का निर्माण जिसके तहत भारत में तेज़ी से औद्योगीकरण होगा, वह केवल देशभक्त आधुनिक दिमाग़ वाले व्यक्तियों के नेतृत्व में एक शक्तिशाली, ऐतिहासिक एकजुट जनसंघर्ष के बाद ही हो सकता है जो देश में पिछड़े सामंती विचारों, रीति-रिवाज़ों और प्रथाओं की गंदगी को दूर कर सके। ऐसा ऐतिहासिक जनसंघर्ष स्वयं जाति व्यवस्था को नष्ट कर देगा (मेरे लेख  'India's moment of turbulent revolution is here'  ' firstpost' पर और 'India edges closer to its own French Revolution' जो 'theweek.in' पर प्रकाशित हैं ज़रूर पढ़ें)।

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लेकिन भारत को बदलने और विकसित उच्च औद्योगिक देशों की श्रेणी में लाने के लिए ऐसा ऐतिहासिक संघर्ष केवल तभी सफल हो सकता है जब हम एकजुट हों। लेकिन जाति आधारित आरक्षण हमें विभाजित करता है। दलितों और ओबीसी को लाभान्वित करने की बात तो दूर, यह वास्तव में हमारे कुटिल और चालाक राजनेताओं को फ़ायदा पहुँचाता है। ये नेता समाज का ध्रुवीकरण करते हैं और वोट पाने के लिए जातिगत और सांप्रदायिक नफरत फैलाते हैं। इसलिए आरक्षण केवल वोट प्राप्त करने की एक चाल है। यह जाति को नष्ट करने में मदद करने की जगह इसे और अधिक मज़बूत करता है। इसने भारतीयों को विभाजित किया है।

प्रोफ़ेसर जीनगर को निरर्थक बातें बोलने के बजाय इन सब चीज़ों पर विचार करने की ज़रूरत है।

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