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कोरोना वायरस: अमेरिकियों की बलि चढ़ाएंगे डोनल्ड ट्रंप?

पूरी दुनिया इस समय जी जान से जुटी हुई है कि कैसे कोरोना वायरस को फैलने से रोका जाए और कैसे लोगों की जान बचाई जाए। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की प्राथमिकता दूसरी दिखाई देती है। ट्रंप लोगों की जान बचाने के बजाय अर्थव्यवस्था को बचाने पर ज़्यादा ज़ोर दे रहे हैं। 

ट्रंप ने अचानक जो प्राथमिकता ज़ाहिर की है उसके मुताबिक, कोरोना महामारी से निपटने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है अर्थव्यवस्था को संभालना। इसीलिए वह कह रहे हैं कि ईस्टर यानी 12 अप्रैल तक अमेरिका में लगी सारी बंदी ख़त्म कर दी जाए और उस दिन चर्च लोगों से खचाखच भरे हुए हों। ऐसा वह ईसाई होने के नाते नहीं कह रहे हैं बल्कि इसलिए कह रहे हैं कि शेयर बाज़ार औंधे मुंह गिर रहे हैं और अर्थव्यवस्था को नुक़सान हो रहा है। 

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ऐसा नहीं है कि ऐसा ट्रंप ने यह बयान यूं ही दे दिया होगा, जैसा कि वह अकसर करते हैं। उन्होंने इस बयान को कई बार दुहराया भी। उनकी रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं ने भी इसमें उनका साथ दिया। ज़ाहिर है उनके इस रुख़ ने अमेरिका में यह बहस शुरू कर दी है कि क्या राष्ट्रपति सही रास्ते पर चल रहे हैं? कहीं वह नागरिकों के स्वास्थ्य को जोखिम में तो नहीं डाल रहे हैं? 
अमेरिका में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या अब चीन से भी ज़्यादा हो गई है और मरने वालों की तादाद में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। कोरोना वायरस अमेरिका के सभी पचास राज्यों में फैल चुका है और रुक नहीं रहा है।

अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्थिति में कम से कम एक महीने तक पाबंदियों को सख़्ती से लागू करने की ज़रूरत है और सोशल डिस्टेंसिंग को जारी रखा जाना चाहिए। शोधकर्ताओं का कहना है कि संक्रमण को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए करीब 80 दिनों की सोशल डिस्टेंसिंग चाहिए होगी। 

ऐसे में ट्रंप का यह बयान बताता है कि वह इस महामारी को लेकर कितने गंभीर हैं और अमेरिकियों की उन्हें कितनी चिंता है। ट्रंप दलील दे रहे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि कोरोना से ज्यादा अर्थव्यवस्था की बीमारी भारी पड़ जाए। उनका कहना है कि आर्थिक मंदी और उससे पैदा हुए अवसाद की वज़ह से कोरोना वायरस की तुलना में ज़्यादा मौतें हो सकती हैं। 

लेकिन यह सच नहीं है। तथ्य ये हैं कि ग्रेट रेसेशन और ग्रेट डिप्रेशन के दिनों में अमेरिकियों की कम मौतें हुई थीं। नौकरी जाने या अवसाद के कारण तो मृत्यु दर बढ़ी थी, मगर सड़क दुर्घटनाओं और ड्रग्स आदि से मरनेवालों की संख्या में कमी आई थी। इसलिए ट्रंप का यह तर्क सच पर आधारित नहीं है। 

ट्रंप समस्या के इस पहलू को भी नज़रअंदाज़ कर रहे हैं कि अगर उन्होंने पाबंदियों को समय से पहले हटाया और उस दौरान संक्रमण तेज़ी से फैल गया तब क्या होगा? ज़ाहिर है कि इस वजह से ज़्यादा मौतें तो होंगी ही, अर्थव्यवस्था को उससे भी ज़्यादा नुकसान होगा, जो सीमित समय की पाबंदियों की वजह से होने वाला था। 

घटती लोकप्रियता से डरे ट्रंप

दरअसल, ऐसा लगता है कि ट्रंप अपनी घटती लोकप्रियता से डर गए हैं। हाल के ओपिनियन पोल में देखा गया है कि उनकी रेटिंग गिर रही है। रेटिंग गिरने का मुख्य कारण अर्थव्यवस्था में गिरावट है और अर्थव्यवस्था में गिरावट कोरोना वायरस के कारण हो रही है। ट्रंप को लग रहा है कि अगर अर्थव्यवस्था को न संभाला तो उनका दोबारा राष्ट्रपति चुना जाना ख़तरे में पड़ जाएगा। 

कारोबारी बिरादरी का दबाव

राजनेता होने के अलावा ट्रंप कारोबारी भी हैं और कारोबारी दिमाग़ जन स्वास्थ्य से ज़्यादा धन-संपदा के बारे में सोचता है। उनके ऊपर उनकी कारोबारी बिरादरी का भी दबाव पड़ रहा होगा। चीन ने कोरोना वायरस पर नियंत्रण पा लिया है और वहाँ आर्थिक गतिविधियाँ फिर से शुरू हो गई हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति को यह भी खटक रहा होगा। उन्हें लग रहा होगा कि कहीं चीन उनसे बढ़त हासिल न कर ले। 

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यह सही है कि अर्थव्यवस्था को भी पूरी तरज़ीह दी जानी चाहिए और उसकी बेहतर सेहत के लिए उसे भी टीके वगैरह लगाए जाने चाहिए। लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए जनता की बलि तो नहीं चढ़ाई जा सकती। सरकारों और प्रशासन को इतना मानवीय तो होना चाहिए, ख़ास तौर पर तब जब मरने वालों की तादाद हर दिन बढ़ती जा रही हो। 

ट्रंप को ही नहीं भारत समेत दुनिया के तमाम देशों के नेताओं को तय करना होगा कि उनकी प्राथमिकता क्या है। वे अर्थव्यवस्था के लिए अपनी अवाम की कुर्बानी देंगे या फिर नागरिकों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए अर्थव्यवस्था को सुधारने के उपक्रम करेंगे। 

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मुकेश कुमार
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