कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने सर्वोच्च न्यायालय से माफ़ी नहीं माँगी है, सिर्फ़ ख़ेद प्रकट किया है। ख़ेद काहे के लिए? इसलिए नहीं कि उन्होंने चौकीदार को चोर कहा है बल्कि इसलिए कि उन्होंने यह कह दिया था कि सर्वोच्च न्यायालय भी यही मानता है। सर्वोच्च न्यायालय ने सिर्फ़ रफ़ाल सौदे पर बहस को मंजूरी दी थी। राहुल ने अपने पक्ष में यह सफ़ाई दी कि वह चुनावी जल्दबाज़ी और जोश में वैसा बोल गए। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय अभी तक तो बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी की याचिका पर विचार कर रहा था लेकिन अब उसने राहुल को अदालत की अवमानना का औपचारिक नोटिस जारी कर दिया है।
इस तरह का नारा लगवाते समय आप न मोदी की उम्र का ख़्याल करते हैं, न उनके पद का, जिस पर आपके पिता, दादी और उनके पिता भी रह चुके हैं। यह बचकाना हरकत, पता नहीं किसके इशारे पर की जा रही है?
इसका अर्थ यह नहीं है कि रफ़ाल का मामला न उठाया जाए या सत्तारुढ़ दल पर जमकर प्रहार न किया जाए। ज़रूर किया जाए लेकिन ऐसा तीर मत चलाइए, जो लौटकर आपके सीने को ही चीर डाले। और यदि सर्वोच्च न्यायालय ने राहुल के ख़िलाफ़ 30 अप्रैल को कोई उल्टा फैसला दे दिया तो मोदी जाएँ या न जाएँ, राहुल वहीं पहुँचे मिलेंगे, जहाँ वह मोदी को भेजने की घोषणा करते रहे हैं।