मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब कह गए हैं -
कोरोना: मोदी सरकार ने बिना सोचे-समझे ले लिया लॉकडाउन का फ़ैसला?
- विचार
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- 30 Mar, 2020

लॉकडाउन के कारण महानगरों को छोड़कर जा रहे मजदूरों की खिल्ली उड़ाने वाले लोग दंभ से भरे हुये हैं। शायद ये भूल गये हैं कि इन महानगरों को इन्हीं लोगों ने खड़ा किया है।
‘निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बड़े बे-आबरू होकर तिरे कूचे से हम निकले।’
मौजूदा हालात के मद्देनजर इस शेर की विषय-वस्तु का विस्तार करें तो कोरोना वायरस के चौतरफा असर से भारत के कार्यबल; खास तौर पर मजदूर वर्ग का अपने-अपने ठिकानों और कार्यस्थलों से बे-आबरू होकर निकलना हजरत आदम और किसी भी शायर (प्रेमी) से कहीं ज्यादा अपमानजनक है।
मजदूरों के ये बदहाल काफिले सिर्फ दिल्ली-एनसीआर से ही नहीं, महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे, उत्तर प्रदेश के कानपुर, लखनऊ, राजस्थान के जोधपुर, उदयपुर, मध्य प्रदेश के इंदौर, जबलपुर, गुजरात के सूरत, अंकलेश्वर, कर्नाटक के बेंगलुरू आदि अनेक जगहों से अपने-अपने गांवों की ओर चले हैं। सरकार द्वारा अचानक लॉकडाउन घोषित कर दिए जाने से ये बेसहारा लोग जहां-तहां फंस गए। इनमें से अधिकतर अनपढ़ या बहुत कम पढ़े-लिखे हैं। ये किसी सरकारी नौकरी में नहीं हैं बल्कि दिहाड़ी मजदूर हैं। उनके बीच कोरोना वायरस को लेकर जागरूकता नहीं, भय है। लेकिन उससे बड़ा भय भूखे मर जाने का है।
विजयशंकर चतुर्वेदी कवि और वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने कई मीडिया संस्थानों में काम किया है। वह फ़िलहाल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करते हैं।