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बीते 5 सालों में मालदार लोगों की आय बढ़ी, ग़रीब हुए और ग़रीब

सरकार ने 80 करोड़ लोगों को अनाज बांटने का जो अभियान चलाया है, उससे गरीबों को थोड़ी राहत तो मिली है लेकिन जिन अमीरों की आमदनी करोड़ों, अरबों, खरबों बढ़ी है, वे क्या कर रहे हैं? वे अपनी तिजोरियाँ कब खोलेंगे?
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

पिछले 5-7 साल में हमारे देश में गरीबी और अमीरी दोनों का ही काफी तेजी से विकास हुआ है। यही सबका साथ है, और यही सबका विकास है। जब से नरसिंहराव सरकार ने उदारीकरण की अर्थ नीति चलाई थी और भारतीय अर्थव्यवस्था पर से सरकारी शिकंजे को ढीला किया था, देश के सबसे निचले 20 प्रतिशत गरीबों की आमदनी सालाना हिसाब से बढ़ती ही जा रही थी। 

इस 25-26 साल की अवधि में भाजपा और कांग्रेस की गठबंधन सरकारें भी आईं लेकिन गरीबों की आमदनी घटी नहीं जबकि 2020-21 में उनकी जितनी सालाना आमदनी थी, वह आधी से भी कम रह गई। उसमें 53 प्रतिशत की गिरावट हुई। यह गिरावट थी- 2015-16 के मुकाबले! 

पांच सालों के दौरान देश के 20 प्रतिशत सबसे मालदार लोगों की आय में 39 प्रतिशत सालाना की वृद्धि हो गई है। ये आंकड़े एक ताजा खोजबीन से सामने आए हैं। 

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कोरोना महामारी के प्रकोप ने इस गैर-बराबरी की खाई को और भी गहरा कर दिया है। देश के मालदार लोग विदेशों में बड़ी-बड़ी संपत्तियां खरीद रहे हैं, ज्यादातर बैंक लंबी-चौड़ी राशियों के जमा होने के विज्ञापन दे रहे हैं, उद्योगपति लोग देश और विदेश में नए-नए पूंजी-निवेश के अवसर ढूंढ रहे हैं। 

कइयों को यही समझ में नहीं आ रहा है कि छप्पर फाड़कर आई इस पूंजी का इस्तेमाल वे कैसे करें और दूसरी तरफ शहरों के मजदूर अपने-अपने गांवों में भाग रहे हैं। 

शहरों में या तो निर्माण-कार्य बंद हो गए हैं या जो चल रहे हैं, उनमें मजदूरी पूरी नहीं मिल रही है। सिर्फ सरकारी कर्मचारियों का वेतन सुरक्षित है लेकिन करोड़ों गैर-सरकारी वेतनभोगियों की आमदनी में काफी कटौती हो रही है। उन्हें अपना रोजमर्रा का खर्च चलाना दूभर हो रहा है। छोटे दुकानदार भी परेशान हैं। उनकी बिक्री घट गई है। 

नाइयों, धोबियों, दर्जियों, पेंटरों, जूता-पालिशवालों के लिए काम ही नहीं बचा है, क्योंकि लोग अपने-अपने घरों में घिरे हुए हैं। छोटे किसान भी दिक्कत में हैं। लोगों ने सब्जियों और फलों की खरीद घटा दी है।राजस्थान के प्रसिद्ध लोक कलाकार इस्माइल खाँ से एक बड़े समारोह में किसी मुख्य अतिथि ने पूछा कि सभी कलाकारों ने पगड़ी पहन रखी है लेकिन आपके सिर पर पगड़ी क्यों नहीं है? उन्होंने कहा कि कोविड काल में पहले मकान बिका, फिर बेटी की शादी का कर्ज माथे चढ़ा। अब पगड़ी का बोझ यह माथा कैसे सहेगा? 
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इस्माइल खाँ की पत्नी ने पत्रकारों को बताया कि अब घर में कभी-कभी सब्जी बनती ही नहीं है। बच्चों को चाय में डुबो-डुबोकर रोटी खिलानी पड़ती है। पराठे की जिद करनेवाला बच्चा भूखा ही सो जाता है। 

सरकार ने 80 करोड़ लोगों को अनाज बांटने का जो अभियान चलाया है, उससे गरीबों को थोड़ी राहत तो मिली है लेकिन जिन अमीरों की आमदनी करोड़ों, अरबों, खरबों बढ़ी है, वे क्या कर रहे हैं? वे अपनी तिजोरियाँ कब खोलेंगे?

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक
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