loader

इमरान साहब, आप भारत छोड़ पाकिस्तान की चिंता करें!

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पिछले दिनों ट्यूटर के माध्यम से यह चिंता ज़ाहिर की  कि-“भारत में अल्पसंख्यकों को अतिवादी समूह निशाना बना रहे हैं और इस तरह का एजेंडा क्षेत्रीय शांति के लिए एक वास्तविक और वर्तमान ख़तरा है।” उन्होंने यह आरोप दिसंबर में हरिद्वार में हुई कथित धर्म संसद के दौरान कुछ कथित संतों द्वारा मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपमानजनक व भड़काऊ भाषण दिए जाने के सन्दर्भ में लगाये। 

इमरान ख़ान ने यह भी पूछा कि क्या भारतीय जनता पार्टी की सरकार भारत में अल्पसंख्यकों के सामूहिक संहार की मांग का समर्थन करती है, जिस देश में 20 करोड़ से अधिक मुसलमान रहते हैं? 

उन्होंने कहा कि यही समय है जब अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसका संज्ञान लेना चाहिए और कार्रवाई करनी चाहिए। इसके पूर्व भी गत माह पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने भारत के अधिकारी को पेश होने के लिए कहा था और हरिद्वार की कथित धर्म संसद में दिए गए भड़काऊ भाषणों को लेकर अपनी आपत्ति व्यक्त की थी। उस समय भी पाकिस्तान ने भारतीय पक्ष से कहा था कि कथित भड़काऊ भाषणों को नागरिक समाज गंभीर चिंता के साथ देख रहा है।

                                   

ताज़ा ख़बरें

भारतीय मुसलमानों को लेकर पाक प्रधानमंत्री इमरान ख़ान द्वारा व्यक्त की जाने वाली 'कथित चिंता' कई तरह के सवालों को जन्म देती है। पहला तो यह कि क्या 'पाकिस्तान जैसे देश' के प्रधानमंत्री को नैतिकता के आधार पर यह हक़ पहुँचता है कि वे भारतीय मुसलमानों के प्रति अपनी चिंता जतायें ? स्वयं पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का क्या हाल है यह भी दुनिया से छुपा नहीं है। 

पाकिस्तान में तो हरिद्वार की धर्म संसद की तरह आये दिन किसी भी वर्ग अथवा विचारों की भीड़ खड़ी होकर किसी भी समुदाय को ललकारने लगती है। उन्हें नेस्तनाबूद करने की बात करती रहती है। आये दिन अल्पसंख्यक समाज की किसी लड़की के अपहरण, उसका जबरन धर्मपरिवर्तन कर विवाह करने जैसी ख़बरें आती रहती हैं। 

इसी पाकिस्तान में केवल मंदिरों, गुरद्वारों व चर्च पर ही नहीं बल्कि मुसलमानों के ही अलग अलग वर्ग से जुड़ी मस्जिदों, दरगाहों, इमाम बारगाहों तथा जुलूस आदि जैसे धार्मिक आयोजनों पर न केवल साधारण हमले बल्कि आत्मघाती हमले तक किये जाते हैं। 

पाकिस्तान ही वह देश है जिसने तालिबान को गोद लिया उसकी परवरिश की और अब वही तालिबान पाकिस्तान के नियंत्रण से बाहर हो चला है ?

बांग्लादेशी मुसलमानों पर जुल्म                                   

पाकिस्तान की भारतीय मुसलमानों के प्रति चिंता यह सवाल भी खड़ा करती है कि आपके देश के लोगों, आपकी सरकार व नेतृत्व ने जो कि 'मुसलिम परस्त ' होने का दावा किया करता था उसने पूर्वी पाकिस्तान के अपने ही 'क़ौमी भाईयों' (मुसलमानों) के साथ ऐसे बरताव क्यों  किये कि 1971 जैसे हालात बने? उस वक़्त कहाँ चला गया था पाकिस्तान का मुसलिम प्रेम? 

सही मायने में तो धर्म के नाम पर किया गया वह सबसे बड़ा धोखा था कि भारतीय मुसलमानों को धर्म नाम पर बरगलाया गया और 1947 व 1971 के बीच ही क्षेत्रवाद ने अपना झंडा धर्म से भी ऊँचा कर लिया ? आज रोहिंग्या मुसलमानों पर बुरा वक़्त आया है। पाकिस्तान की रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति कोई हमदर्दी नहीं दिखाई या सुनाई देती। जबकि बांग्लादेश उनको शरण देने वाला एक प्रमुख देश है। 

Imran khan on indian Muslims - Satya Hindi

पाकिस्तान के माली हालात                                      

पिछले दिनों पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति का ज़िक्र करते हुये इमरान ख़ान ने स्वयं स्वीकार किया कि ''पाकिस्तान के इतिहास में किसी भी सरकार को इतने बड़े राजस्व घाटे और चालू खाता घाटे का सामना नहीं करना पड़ा। अगर हमारे मित्र देश चीन, यूएई व सऊदी अरब ने फ़ंड ना दिया होता तो हम डिफ़ॉल्ट कर गए होते। हमारे पास क़र्ज़ चुकाने के लिए पैसे नहीं थे। रुपए को गिरने से बचाने के लिए डॉलर नहीं थे।” 

चीनी मुसलमानों पर चुप्पी

इमरान ख़ान द्वारा दिया गया यह वक्तव्य जहां पाकिस्तान की डूबती अर्थव्यवस्था की ओर इशारा करता है वहीं यह सोचने के लिये भी मजबूर करता है कि भारत में मुसलिम विरोधी आयोजन की चिंता करने वाले इमरान ख़ान ने आख़िर चीन के ज़िंजियांग प्रांत के उईगर मुसलमानों के साथ चीन सरकार द्वारा किये जा रहे अत्याचारों के विरुद्ध कभी चीनी दूतावास के अधिकारी को बुलाकर अपने 'धर्म-प्रेम' का इज़हार क्यों नहीं किया ?                                     

Imran khan on indian Muslims - Satya Hindi

चीन में तो मुसलमानों के लिये कई बड़े हिरासत केंद्र बनाये गये हैं जहां उनके साथ वह सब कुछ हो रहा है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। परन्तु दुनिया तो ख़ामोश है ही, आश्चर्य है कि दुनिया के मुसलमानों की चिंता करने वाला पाकिस्तान भी ख़ामोश है ? क्या इस ख़ामोशी की वजह यही है कि चीन ने फ़ंड देकर पाकिस्तान को डिफ़ॉल्ट होने से बचाया है ?

                                     

दरअसल दोनों देश कभी एक ही थे इसलिये दोनों ही देशों की तर्ज़-ए-सियासत भी एक जैसी ही है। दोनों ही देशों की सरकारों को जब जनता का ध्यान जनसरोकार से जुड़े मुद्दों से भटकाना होता है उस समय दोनों ही देश एक दूसरे पर 'अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव व ज़ुल्म' का मुद्दा उछालने लगते हैं। कश्मीर को भी केंद्र में रखकर दोनों ही देश अपने अपने देशवासियों के बीच 'राष्ट्रवाद ' की ज्योति जलाने लगते हैं। मँहगाई व बेरोज़गारी दोनों ही देशों की सरकारों के संभाले नहीं संभल रहे हैं परन्तु एक दूसरे देश के अल्पसंख्यकों की चिंता सभी को सताये रहती है। अपने देश के अल्पसंख्यकों की रक्षा करने व उन्हें न्याय दिलाने के बजाये 'स्वधर्मी ' होने के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाये जाते हैं। 

भारतीय मुसलमान आज भी जितना ख़ुश व सुरक्षित भारत में है उतना दुनिया के किसी अन्य देश में नहीं। भारतीय मुसलमानों के साथ देश के गांधीवादी विचारधारा के उदारवादी हिन्दू हमेशा से खड़े हैं।

धर्म संसद का विरोध 

आज भी भारत में जो सरकार खांटी हिन्दुत्ववाद का झण्डा उठाये है जिसके संरक्षण के चलते हरिद्वार की कथित धर्म संसद जैसी धर्म विशेष का विरोध करने वाली बयानबाज़ियाँ हो रही हैं, उसका सबसे अधिक विरोध भारतीय हिन्दू समाज से जुड़े लोग ही कर रहे हैं। दोषियों के विरुद्ध कार्रवाइयां हो रही हैं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी निंदा की जा रही है। 

विचार से और खबरें

इस तरह की धर्म विशेष विरोधी बातें करने वाले लोग मुसलमानों के भी ख़िलाफ़ हैं तो उसी समय वे गाँधी के भी ख़िलाफ़ हैं और साथ ही गाँधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे के समर्थन में  भी। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यह एक तरह की ज़हरीली विचारधारा है जिसका काम समाज में नफ़रत फैलाकर सत्ता में बने रहने की कोशिश करना है। इन कोशिशों का विरोध गंगा यमुनी तहज़ीब की रक्षा करने वाला समग्र भारतीय समाज पूरी ताक़त से कर रहा है।

इसलिये इमरान साहब, बेहतर यही होगा कि आप भारतीय मुसलमानों की चिंता छोड़ अपने देशवासियों की चिंता करें तो ज़्यादा बेहतर होगा।   

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
तनवीर जाफ़री
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें