आर्थिक सुधारों की राह पर एक क़दम आगे बढ़ाते ही कुछ पूर्वज याद आते हैं और दो क़दम पीछे हटने को मजबूर कर देते हैं। दोनों का हाल यही रहा तो भारत और रूस की हैसियत चीन के बड़े प्रांतों जितनी भी नहीं रह सकेगी।
रूस का यह हाल उसकी परमाणु और सामरिक शक्ति की ऐंठ में रहकर महाशक्ति के मुगालते में रहने की मानसिकता की वजह से है। यदि तेल, गैस और खनिज सम्पदा न हो तो रूस की अर्थव्यवस्था किसी तीसरी दुनिया के ग़रीब देश जैसी नज़र आती।