कमाल के लोग हैं। भारत में 80 करोड़ लोग पाँच किलो अनाज पर जी रहे हैं और खुद अमेरिका की सफलता का श्रेय लेने में लगे हैं। कहते हैं - अमेरिका सफल है क्योंकि हम हैं। अति अहंकार का यह भाव भारत की वैदिक संस्कृति को तो धत्ता बताता ही है, भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को भी धूल में मिला रहा है।

दरअसल, अमेरिका में रह रहे भारतीय-मूल के लोगों की उपलब्धियों पर एक तबके द्वारा जिस तरह का अहंकारी और अतिशयोक्तिपूर्ण नैरेटिव गढ़ा जा रहा है, वह न सिर्फ़ अमेरिकी समाज में उनके प्रति बढ़ते रोष का कारण बन रहा है, बल्कि भारत में भी उन सभ्य भारतीयों को शर्मसार कर रहा है जो विनम्रता और सामूहिक कल्याण को अपनी संस्कृति का आधार मानते हैं।

यह बयान कोई नासमझी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है जो तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है। अमेरिका की महानता उसके संविधान, उसकी नवाचार की संस्कृति और दुनिया भर से आए हर समुदाय- अश्वेत, हिस्पैनिक, एशियाई और मूल-निवासी अमेरिकियों के संघर्ष और योगदान से बनी है। इसे किसी एक समुदाय के सिर मढ़ना उन सभी की अवमानना है।
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अहंकार की नींव: झूठ और आधे-अधूरे आँकड़े

सर्वोच्चता का यह नैरेटिव आधे-अधूरे सच और तोड़े-मरोड़े गए आँकड़ों की नींव पर बनाया गया है। आइए, इसे एक-एक करके ध्वस्त करें:

अतुलनीय संपत्ति का मिथक: $145,000 की औसत घरेलू आय का दावा एक पुराना और भ्रामक आँकड़ा है। अधिक प्रामाणिक 2021 अमेरिकन कम्युनिटी सर्वे (ACS) यह आँकड़ा $126,705 बताता है। यह प्रभावशाली है, लेकिन यह सफलता कोई अनोखा ताज नहीं है।

अद्वितीय शैक्षिक कौशल का मिथक: यह दावा कि भारतीय-अमेरिकी "सबसे ज़्यादा डिग्री धारक" हैं, जानबूझकर बड़ी तस्वीर को अनदेखा करता है। हालाँकि लगभग 79% के पास स्नातक की डिग्री है, पर ताइवानी-अमेरिकी 85.6% के साथ और भी आगे हैं। यह एक साझा सफलता है, अकेली जीत नहीं।

उद्योगों पर प्रभुत्व का मिथक: "60% होटलों" के मालिक होने का दावा एक बहुत बड़ी विकृति है। यह आँकड़ा ज़्यादातर इकॉनमी सेक्टर की कुछ होटल संपत्तियों का है, न कि पूरे अमेरिकी होटल उद्योग के बाज़ार मूल्य का।
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विनम्रता की विरासत से विश्वासघात

भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो सम्मान मिला है, वह कभी भी डींगे हाँकने से नहीं, बल्कि विनम्रता और सहयोग की भावना से मिला है:

कनाडा का परमाणु सहयोग: 1963 में कनाडा ने भारत को CIRUS रिएक्टर दिया, जिसने हमारे परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी। कनाडा ने कभी इसका श्रेय नहीं लिया।

रूस का रक्षा सहयोग: 1971 के युद्ध के दौरान रूस ने अपना बेड़ा भेजा और संयुक्त राष्ट्र में भारत का साथ दिया, बिना किसी श्रेय की अपेक्षा के।

अमेरिका का कृषि सहयोग: डॉ. नॉर्मन बोरलॉग ने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना।

अमेरिका, कनाडा, रूस ने यह घमंड नहीं दिखाया कि भारत हमसे है। पर हम कह रहे हैं कि अमेरिका हमारे कारण है। इतना घमंड कहाँ से लाते हैं ये लोग?

जो भारत की वैदिक संस्कृति को ताक पर रखकर "नए भारत" का नाच दिखा रहे हैं, वे असल में भारतीयता का सबसे बड़ा नुकसान कर रहे हैं। वे उस सनातन परंपरा को धोखा दे रहे हैं जो "अहं ब्रह्मास्मि" नहीं, बल्कि "तत्वमसि" (वह तुम हो) सिखाती है—यानी दूसरों में स्वयं को देखना।

अहंकार का अंजाम: नफ़रत की सुलगती आग

जब कोई यह दावा करे कि "हम तुम्हारे देश को चला रहे हैं," तो सामने वाले का गुस्सा भड़कना स्वाभाविक है। शब्दों के परिणाम होते हैं, और इस बयानबाज़ी का नतीजा एक भयानक प्रतिक्रिया के रूप में सामने आ रहा है। जैसा कि शेक्सपियर ने चेतावनी दी थी, "अति महत्वाकांक्षा जब छलाँग लगाती है, तो वह खुद पर ही गिरती है।"

यह पतन पहले ही शुरू हो चुका है। "Indians go back" जैसे ज़हरीले नारे, वीज़ा नियमों में सख़्ती, और नस्लीय हमलों में वृद्धि—यह सब उसी अहंकार की आग को हवा दे रहा है। स्वामी विवेकानंद ने सही कहा था - "ज्ञान का अहंकार, भक्ति के अहंकार से भी खतरनाक होता है।"
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तो सवाल यह है...

जो समुदाय अमेरिका को सफल बना रहा है, वही अपने मूल देश भारत को क्यों नहीं बना पा रहा? जवाब स्पष्ट है: अमेरिका ने एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया है जो प्रतिभा को पनपने का मौका देता है। यह दावा भारतीय-अमेरिकियों की सफलता का नहीं, बल्कि अमेरिकी अवसर का श्रेय लेने जैसा है।

असली सवाल यह नहीं है कि क्या भारतीय-अमेरिकी सफल हैं। वे हैं, और यह बेहद गौरव की बात है। असली सवाल यह है कि उस सफलता को कैसे प्रस्तुत किया जाता है। क्या यह श्रेष्ठता का दावा करने के लिए एक हथियार है, या पुल बनाने का एक उपकरण?

अमेरिका में सफलता हमेशा दो-भाग का समीकरण रही है: आप्रवासी की मेहनत और अमेरिकी अवसरों का इकोसिस्टम। परिणाम का पूरा श्रेय लेना न केवल गणित में ख़राब होना है; यह कृतज्ञता की चोरी है। आगे का रास्ता दंभपूर्ण अलगाव का नहीं, बल्कि विनम्र एकजुटता का है।

असली ताक़त किसी दूसरे के घर को बनाने का श्रेय लेने में नहीं, बल्कि उस घर द्वारा दी गई पनाह को कृतज्ञता से स्वीकार करने और उसकी नींव को मज़बूत करने में योगदान देने में है, ताकि यह उन सभी के लिए मज़बूती से खड़ा रहे जो आगे आएँगे। यही अमेरिकी तरीका है। और इससे भी महत्वपूर्ण, यही भारतीय संस्कार है।