देश के बहुत सारे दूसरे हिस्सों की तरह ही गुजरात की समस्या इसलिए भी बड़ी थी कि चिकित्सा सुविधाएँ दिल्ली, बंबई और कोलकाता को छोड़कर बाक़ी जगह ठीक नहीं थीं।
महामारी जब फैलने लगी तो सरकार के हाथ-पांव फूल गए और उसने सामाजिक संगठनों से मदद मांगी। ये दोनों ही आश्रम मदद के लिए आगे आए। उन्होंने सबसे पहले चंदा जमा किया और स्वयंसेवकों की भर्ती की।
इन लोगों की सबसे बड़ी उपलब्धि थी उन वनवासियों के नजरिये को बदलना, जो शहरी दवाओं को तब तक शक की नजर से देखते थे। अपने प्रयासों से इन तीनों ने जो प्रतिष्ठा हासिल की और जो जनाधार बनाया, वह स्वतंत्रता आंदोलन के वक्त देश के बहुत काम आया।