कई लोग सवाल कर रहे हैं कि ऐसे समय जबकि कांग्रेस पार्टी चारों तरफ़ से घोर संकट में है, क्या सचिन पायलट इस तरह से विद्रोह करके उसे और कमज़ोर नहीं कर रहे हैं? इसका जवाब निश्चित ही एक बड़ी ‘हाँ’ में ही होना चाहिए पर साथ में यह जोड़ते हुए कि इस नए धक्के के बाद अगर पार्टी नेतृत्व जाग जाता है तो उसे एक बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए।
हक़ीक़त यह है कि जिन विधायकों का इस समय गहलोत को समर्थन प्राप्त है उनमें अधिकांश कांग्रेस पार्टी के साथ हैं और जो छोड़ कर जा रहे हैं वे सचिन के विधायक हैं। यही स्थिति मध्य प्रदेश में भी थी। जो छोड़कर बीजेपी में गए उनकी गिनती आज भी सिंधिया खेमे के लोगों के रूप में होती है, ख़ालिस बीजेपी कार्यकर्ताओं की तरह नहीं।
कांग्रेस में नए लोग आ नहीं रहे हैं और जो जा रहे हैं उनके लिए शोक की कोई बैठकें नहीं आयोजित हो रही हैं। असंतुष्ट नेताओं में सचिन और सिंधिया के साथ-साथ मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, प्रियंका चतुर्वेदी और संजय झा की भी गिनती की जा सकती है।