तिहाड़ जेल में बंद 27 वर्षीय कश्मीरी महिला सफूरा ज़रगर का मामला देश में लोकतंत्र और राज्य संस्थानों के पूर्णतः पतन का प्रतीक है। यह फ्रांस में उन्नीसवीं सदी के कुख्यात ‘ड्रेफस’ मामले की याद दिलाता है, जिसके लिए प्रसिद्ध लेखक एमिल ज़ोला ने एक विशिष्ट शब्द का उपयोग किया था जो उनके इस लेख का शीर्षक भी है। सफूरा को ऐसे समय में जेल भेजा गया है, जब वह गर्भवती हैं। सफूरा जामिया को-ऑर्डिनेशन कमेटी की मीडिया को-ऑर्डिनेटर हैं।
सफूरा ज़रगर का मामला देश में लोकतंत्र के पूरी तरह पतन का प्रतीक
- विचार
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- 8 May, 2020

जामिया की स्टूडेंट सफूरा ज़रगर।
सफूरा का ‘अपराध’ (यदि ऐसा मान भी लिया जाये) केवल यह है कि वह नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रही थी और इसी कारण पुलिस ने उसके ख़िलाफ़ झूठे साक्ष्य बनाकर, उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दंगे भड़काने का झूठा आरोप लगाया और ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) जैसे भयावह क़ानून के तहत हिरासत में ले लिया और फिर जेल भेज दिया। सफूरा को ऐसे समय में जेल भेजा गया है, जब वह गर्भवती हैं।