पिछले 20-22 वर्षों की पत्रकारिता में बड़े- बड़े आतंकवादी हमले देखे, प्राकृतिक आपदाएँ देखीं, लेकिन इतने लंबे समय तक, इतने व्यापक स्तर पर, इतनी विनाशकारी और इतनी भयावह त्रासदी नहीं देखी। दुनिया घुटनों के बल है, इंसान हर पल मौत के साये में है, हर समय लोगों की जान जा रही है, सारा विज्ञान, शोध-चिकित्सा के सारे संसाधन आश्चर्यजनक तरीके से नाकाफी पड़ रहे हैं।