पिछले 20-22 वर्षों की पत्रकारिता में बड़े- बड़े आतंकवादी हमले देखे, प्राकृतिक आपदाएँ देखीं, लेकिन इतने लंबे समय तक, इतने व्यापक स्तर पर, इतनी विनाशकारी और इतनी भयावह त्रासदी नहीं देखी। दुनिया घुटनों के बल है, इंसान हर पल मौत के साये में है, हर समय लोगों की जान जा रही है, सारा विज्ञान, शोध-चिकित्सा के सारे संसाधन आश्चर्यजनक तरीके से नाकाफी पड़ रहे हैं।
ऐसे पत्रकारों पर नाज़ करने का मन करता है
- विचार
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- 29 Mar, 2025

इस समय कोरोना से जूझ रहे लोगों को बचाने का जितना काम पत्रकार कर रहे हैं, उतना शायद ही कोई कर रहा होगा। इस देश मे पिछले कुछ वर्षों से पत्रकारिता औऱ पत्रकार दोनों बदनाम रहे हैं। यह पूरी संस्था ही शक और संदेह में घिरी रही है।
सत्ता-व्यवस्था के सारे उपाय-उपक्रम नाकाम साबित हो रहे हैं। स्वयंभू शक्तिशाली देशों के अस्थि-पंजर ढीले हो चुके हैं। अर्थव्यवस्था अपाहिज हो चुकी है और समूची पृथ्वी पिछले एक साल से कोविड-19 के शिकंजे में छटपटा रही है।