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महाराष्ट्र का सबकः राजनीति में गठबंधन का 'अ-धर्म '

किसी राष्ट्र में महाराष्ट्र का होना ही बेतुका है लेकिन सबसे ज्यादा बेतुकी है महाराष्ट्र की सियासत। महाराष्ट्र की सियासत में जब से भाजपा का प्रवेश हुआ है तभी से यहां गठबंधन का धर्म, अ-धर्म में बदल गया है ।  अब गठबंधन के मायने ही बदल गए हैं। जो काम बीते 63 साल में नहीं हुआ था,वो अब हो रहा है ।  सत्ता पाने और सत्ता में बने रहने के लिए महाराष्ट्र में गठबंधन की अवधारणा ही बदल दी है ।  अब गठबंधन ' भानुमती का कुनबा ' ही नहीं बल्कि ' केर-बेर का संग ' भी हो गया है।
महाराष्ट्र की भाजपा और विखंडित शिवसेना की सरकार को अभी किसी और के समर्थन की दरकार नहीं थी,  किन्तु सरकार के पाये  मजबूत करने के लिए भाजपा ने एनसीपी को भी दो फाड़ कर पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार के भतीजे अजित पवार को भी सरकार में शामिल कर उप मुख्यमंत्री बना दिया। एनसीपी में विभाजन भाजपा की सचमुच एक बड़ी उपलब्धि है। अब ये प्रमाण देने की कोई जरूरत नहीं है कि भाजपा तोड़फोड़ की राजनीति में न केवल सिद्धहस्त है बल्कि तोड़फोड़ की राजनीति ही उसका परमधर्म है। भाजपा ने महाराष्ट्र से पहले मध्य्प्रदेश में कांग्रेस को तोड़ा थी । महाराष्ट्र में शिवसेना को तोड़ा और अब एनसीपी को भी विखंडित कर दिया। भाजपा के परम विरोधियों को भी तोड़फोड़ की राजनीति के मामले में भाजपा का लोहा मानना  पडे़गा।
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एक जमाना था जब एनसीपी के प्रमुख शरद पंवार कांग्रेस के लये महत्वपूर्ण थे ।  एक जमाना आया कि शरद पंवार ही कांग्रेस को छोड़कर अलग हो गए और महाराष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण हो गये ।  देश में गठबंधन की सरकारों के नए युग में भी शरद पंवार की पूछ-परख और हैसियत बनी रही। अब एक जमाना है कि शरद पंवार को भाजपा ने उनके ही भतीजे के साथ मिलाकर हासिये पर पहुंचा दिया है ।  उम्र के आखरी पड़ाव पर खड़े शरद पंवार के पास अब एनसीपी और खुद को दोबारा स्थापित करने का न वक्त है और न ताकत। पंवार साहब अब बूढ़े शेर हैं यानी उनके नख-दन्त अब किसी काम के नहीं रहे।
महाराष्ट्र एम् भाजपा ने पहली बार गठबंधन के धर्म को अधर्म में बदला है । जनादेश को बार -बार अपमानित किया है। किंतु भाजपा ऐसा नहीं मानती । भाजपा पुराने सिद्धांत पर अडिग है कि - युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है। पिछले विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र की जनता ने भाजपा को खारिज किया। खारिज क्या किया बल्कि सभी राजनीतिक दलों के प्रति अपनी नाराजगी जताते हुए एक ऐसा जनादेश दिया जिसमें भाजपा एक तरफ खड़ी थी और शेष दल दूसरी तरफ । भाजपा ने महाराष्ट्र में जनादेश को अपने पक्ष में बताकर सरकार बनाने का जी तोड़ यत्न भी किया किन्तु एनसीपी,कांग्रेस और शिवसेना ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। भाजपा जख्मी होकर सत्ता की और ताकती रही और उसने महाराष्ट्र अगाडी गठबंधन की 'सत्ता की गाड़ी' अंतत; शिवसेना को दोफाड़ कर दोबारा हासिल कर ली। हालांकि उसे इस जोड़तोड़ में अपने ही दल के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नबीस को दांव पर लगाना पड़ा।
भाजपा और विखंडित शिवसेना की सरकार से ही भाजपा को संतोष नहीं हुआ ।  उसने एनसीपी में पनप  रहे आंतरिक असंतोष का लाभ उठाते हुए सत्तालोलुप अजित पंवार से सौदा कर एमसीपी को भी दो-फाड़ कर दिया और अजित पंवार तथा उनके आधा दर्जन साथियों को भाजपा शिवसेना गठबंधन सरकार का हिस्सा बना लिया। शरद पंवार टापते रह गए। शरद पंवार ने जिस दिन से अपनी बेटी सुप्रिया सुले को एनसीपी का उत्तराधिकारी बनाने का पर्यटन किया था उसी दिन से उनके भतीजे अजित पंवार बिदक गए थे। 
अजित खुद को एनसीपी का उत्तराधिकारी मानकर चल रहे थे ।  अजित के असंतोष को एनसीपी के दुसरे महत्वपूर्ण नेता प्रफुल्ल पटेल ने हवा दी ।  पटेल अपने जमाने के सबसे ज्यादा बदनाम केंद्रीय विमानन मंत्री रह चुके है।  एनसीपी प्रमुख शरद पंवार के सामने भीगी बिल्ली रहने वाले प्रफुल्ल पटेल की महाराष्ट्र की हैसियत बहुत ज्यादा नहीं बची है।
एक जमाने में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार माने जाने वाले शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को प्रमोशन देकर कार्यकारी अध्यक्ष बना दिय। इससे अजित पवार खुश नहीं थे। उन्होंने कहा था कि वे बतौर विपक्ष के नेता काम नहीं करना चाहते उन्हें पार्टी संगठन में पद चाहिए लेकिन शरद पवार ने इसे अनसुना कर दिया। भाजपा और शिवसेना के लिए ये एक मौक़ा था । भाजपा जानती थी कि महाराष्ट्र अगाडी गठबंधन को तोड़े बिना आगामी विधानसभा में दोबारा जनादेश हासिल करना आसान नहीं होगा।
महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ वो अच्छा है या बुरा ये बताने की जरूरत नहीं है ।  इसका फैसला महाराष्ट्र की जनता पर ही छोड़ना उचित होगा। लेकिन इस समय शरद पंवार पर क्या गुजर रही होगी ये सोचकर मै चिंतित हूँ ।  शरद पंवार महाराष्ट्र की अस्मिता के प्रतिनिधि  रहे हैं। उन्हें कम से कम इस तरह अपमानित नहीं किया जाना चाहिए था। दुर्भाग्य ये है कि  भाजपा अपने प्रतिवंदियों से सीधी लड़ाई लड़ने से हमेशा कतराती है और गुरिल्ला युद्ध के जरिये जीत हासिल करने में ज्यादा यकीन रखती है । शरद पंवार इस समय सहानुभूति के पात्र हैं। वे जल्द ही महाराष्ट्र और राष्ट्र की राजनीति में एक इतिहास होने वाले हैं। भाजपा ने उनकी पार्टी  तोड़ कर इसका श्रीगणेश कर दिया है।
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दरअसल केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा इस समय भीतर ही भीतर बहुत घबड़ाई हुई है । भाजपा के लिए हर विधानसभा चुनाव टेढ़ी खीर ही नहीं बल्कि दुस्वपंन साबित हुए हैं। ऐसे में 2024  के आम चुनाव में तिबारा सत्ता में लौटना उसे कठिन दिखाई दे रहा है । इसलिए भाजपा नेतृत्व तमाम नैतिकताओं को तिलांजलि देकर उन बड़े राज्यों में अपनी ताकत बढ़ाने की हाड- तोड़ कोशिश कर रही है जहां से लोकसभा की ज्यादा सीटें हैं। भाजपा को पता है कि  दक्षिण में उसकी दाल गलने वाली नहीं है । इसलिए जो मिलेगा वो महाराष्ट्र जैसे राज्यों से ही मिलेगा। भाजपा ने महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों में भी तोड़फोड़ की राजनीति को ज़िंदा रखा है। कहीं उसे कामयाबी मिलती है तो कहीं मुंह की खाना पड़ती है। लेकिन काबिले तारीफ़ बात ये है कि  भाजपा ने हार मानना नहीं सीखा है। साम,दाम ,दंड और भेद के जरिये सत्ता में बने रहने या सत्ता हासिल करने में उसे धर्म विमुख होने में न कोई संकोच है और न कोई लज्जा।
गठबंधन की इस अधार्मिक राजनीति का जिसे स्वागत करना हो कर सकता है किन्तु मेरा मानना है कि  इस राजनीति को हतोत्साहित करने की आवश्यकता है ।  क्योंकि तोड़फोड़ की राजनीति केवल राजनीतिक दलों को ही नहीं तोड़ती समाज को भी तोड़ती है ।  देश को आज तोड़फोड़ की नहीं बल्कि जोड़ने की राजनीति की आवश्यकता है। भाजपा को उसकी तोड़फोड़ की राजनीति मुबारक हो। विपक्ष को इस राजनीति से कैसे निबटना है ये तय करना ही होगा ,अन्यथा लोकतंत्र की क्या सूरत बनेगी,इसकी कल्पना ही भयावह नजर आती है ।
(राकेश अचल के फेसबुक पेज से)
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क़मर वहीद नक़वी
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