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''दो राज्य जल रहे हैं, मगर किसकी लगाई आग में?''

इस समय देश की सत्ता देश से ज्यादा दलों की चिंता में दुबली हो रही है । सत्तारूढ़ दल के सामने देश से पहले चुनाव है। देश का पूर्वी हिस्सा जल रहा है लेकिन हमारी सरकार महाराष्ट्र के रण में उलझी है। सत्तारूढ़ दल की ये कामयाबी है कि नाकामी जब तय होगी, तब तय होगी लेकिन तब तक देश के बहुत बड़ा नुकसान हो चुका होगा।
महाराष्ट्र और मणिपुर की राशि एक ही है ।  महाराष्ट्र भाजपा की लगाईं आग में जल रहा है और मणिपुर भी।  मणिपुर को जलते हुए दो महीना दो दिन हो चुके हैं लेकिन वहां क़ानून का शासन स्थापित नहीं हो पा रहा है ।  केंद्र सरकार की और से राज्य में शांति स्थापना के अब तक किये गए सारे जतन नाकाम हो चुके है।  यहां तक की सेना और अर्द्ध सैनिक बल भी मणिपुर की आग नहीं बुझा पा रहे हैं ,और सूबे की डबल इंजिन की सरकार बेशरमी के साथ तमाशबीन बनी  बैठी है। मणिपुर की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कांग्रेस नहीं है, बल्कि सत्तारूढ़ दल है। अपनी नाकामी पर पर्दा डालने के लिए ही लगता है कि केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र में चिंगारी सुलगायी है।
सच कहें तो महाराष्ट्र देश के लिए उतनी बड़ी चिंता नहीं है जितनी बड़ी चिंता मणिपुर है । मणिपुर में जातीय हिंसा के साथ अलगाव की आग फिर भड़क उठी है ।  मणिपुर में कुछ लोग फिर से अलग राष्ट्र का मुद्दा उठा चुके हैं ,लेकिन केंद्र सरकार गुड़ खाकर बैठी ह। चार साल पहले जम्मू-कश्मीर में  एक विधान,दो निशान का मुद्दा उछालकर सूबे की अस्मिता से खलवाड़ करते हुए जम्मू-कश्मीर को तीन हिस्सों में विभाजित करने वाली केंद्र सरकार के लिए मणिपुर गले की हड्डी बनकर रह गया है। मणिपुर पर न हमारे देश के प्रधानमंत्री किसी मंच से बोल रहे हैं और न किसी को बोलने दे रहे हैं। पोल खुलने का डर है ,लेकिन संसद के वर्षाकालीन सत्र में तो उन्हें अपना मुंह खोलना ही पडे़गा। मुमकिन है कि वे संसद को भी ठेंगे पर रखें और कुछ न बोले। और देश का ध्यान महाराष्ट्र पर ही अटकाए रखने की कोशिश करें।
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ऊपर से महाबली दिखाई देने वाली भाजपा भीतर से बहुत भयभीत हो चुकी है ।  देश के तमाम राज्य  विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का जादू नहीं चल पाया ,ऐसे में भाजपा अब क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अपने फंदे में फंसाने में लगी है।  उत्तर प्रदेश में भाजपा ने ईडी और सीबीआई के बल पर बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी को पहले ही बधिया बना दिया है। आप पहले से भाजपा की बी  टीम बनी हुई है।  बिहार में भाजपा रामविलास पासवान और जीतनराम माझी की  पार्टियों का सलाद पहले ही बना चुकी है ।  जेडीयू और राजद पर भाजपा का विभाजनकारी विष काम नहीं कर पाया, किन्तु महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी इस जहर से दो फाड़ हो गयी। राजस्थान और मध्य्प्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ ने भी भाजपा को ठेंगा दिखा दिया।
भाजपा को कायदे से महाराष्ट्र जीतने के बजाय मणिपुर जीतने की कोशिश करना चाहिए ,क्योंकि मणिपुर देश की सुरक्षा सम्प्रभुता से जुड़ा राज्य है। मणिपुर की अशांति बहुत भारी पड़ सकती है। देश का ध्यान बंटाने के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों मध्यप्रदेश में चुनावी शंखनाद करते हुए समान नागरिक संहिता का मुद्दा उछाल चुके हैं। देश के सामने अभी समान नागरिक संहिता प्रमुख मुद्दा नहीं है । मुद्दा मणिपुर है । मणिपुर पर केंद्र कुछ भी बोलने को राजी नहीं है । विपक्ष भी केंद्र का मुंह खुलवाने में नाकाम रहा है । विपक्ष को देश की एकता के बजाय विपक्ष की एकता की पड़ी है। सत्तारूढ़ दल भी मणिपुर की जगह विपक्ष की एकता तोड़ने में लगा है। महाराष्ट्र में उसे आंशिक कामयाबी भी मिल गयी है ,लेकिन इससे देश का कोई फायदा नहीं है। देश को विपक्ष की एकता से ज्यादा मणिपुर में शांति की बहाली चाहिए।
जम्मू-कश्मीर में विखंडन   कर वहां धारा 370  हटाने में कामयाब हुई भाजपा सरकार मणिपुर में नाकाम साबित क्यों हो रही है ? इस विषय पर राष्ट्रव्यापी बहस की जरूरत है। ये बहस जब भाजपा रोक रही है तो विपक्ष को इसकी शुरूवात करना चाहिये ।  कांग्रेस के राहुल गांधी ने अग्निदग्ध मणिपुर का दौरा कर इसकी शुरुवात की किन्तु इसे आगे नहीं बढ़ाया। आज समान नागरिक संहिता के मुद्दे के जबाब में मणिपुर पर केंद्र की चुप्पी सबसे बड़ा मुद्दा हो सकता है। किन्तु कांग्रेस और समूचे विपक्ष को मणिपुर की आग को राष्ट्रीय नड्डा बनाने में या तो कामयाबी नहीं मिली या फिर उसने इसकी कोशिश ही नहीं की।  
मणिपुर के 60 साल के इतिहास में भाजपा को पहली बार शासन करने का मौक़ा मिला और पहली बार में ही मणिपुर की डबल इंजिन की सरकार ने मणिपुर को आग में झौंक दिया । मनीपुर में सबसे ज्यादा 09 बार शासन करने वाली कांग्रेस से केंद्र सरकार को मणिपुर की आग बुझाने में सहयोग लेने में शर्म आ रही है। कांग्रेस के राहुल गांधी की मणिपुर यात्रा को लेकर भी भाजपा ने संविद पात्रा और स्मृति ईरानी जैसे अपने विद्वान प्रवक्ताओं की सारी ऊर्जा खर्च करा दी फिर भी कुछ हासिल नहीं हुआ। मणिपुर में नागरिक अधिकार एक तरह से अराजक हाथों में है। प्रतिद्वंदी जातीय समूह एक-दूसरे का खून बहाने में लगे हुए हैं लेकिन केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार तमाशबीनों की तरह निरीह खड़ी नजर आ रही है।
महाराष्ट्र से मणिपुर तक सत्ता का  भाजपाई लालच देश को बहुत मंहगा पड़ रहा है। इसकी कीमत हर भारतीय को अदा करना पड़ रही  है। देश की जनता जागरुक है ,सब देख रही है लेकिन दुर्भाग्य ये है की जनांदोलन सिरे से गायब है।  केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी सही कहते हैं की दुनिया झुक सकती  है लेकिन कोई उसे झुकाने वाला तो हो ! देश का विपक्ष पिछले 9  साल में भाजपा की सरकार और जिद्दी प्रधानमंत्री को झुकाने में उसी तरह नाकाम रहा है जैसे केंद्र सरकार मणिपुर के मामले में नाकाम साबित हो रही है।
देश के बाहर महाराष्ट्र की राजनितिक उठापटक से ज्यादा मणिपुर को लेकर उत्सुकता है। मणिपुर की आग के लिए केंद्र सरकार न पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरा पा रही है और न चीन को । चीन के बारे में तो सरकार एक शब्द भी नहीं बोल पाती। कांग्रेस को मणिपुर के लिए जिम्मेदार ठहराना आसान नहीं ,क्योंकि जनादेश तो भाजपा के नाम है। ऐसे में मणिपुर की दुर्दशा का ठीकरा तो ले-देकर भाजपा के सर पर ही फूटेगा।
मणिपुर में भाजपा की नाकामी का पता पूरे देश को होना चाहिये ।  विपक्ष ही  ये काम कर सकता है ,किन्तु कर नहीं पा रहा है । देश में आने वाले दिनों में होने वाले तमाम चुनाव मणिपुर के ही मुद्दे पर लड़ लिए जाएँ तो देश के मूड का पता चल सकता है। समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर देश एक बार फिर भीतर ही भीतर विभाजित  होगा ,इसकी शुरुवात हो चुकी ह।  यूसीसी   के समर्थन और विरोध में लोग खड़े होने लगे हैं और आम चुनावों तक पूरा देश दो हिस्सों में बनता दिखाई देगा।
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मै तो कहता हूँ कि केंद्र सरकार खुशी से धारा 370  हटाने की तरह देश में समान नागरिक संहिता लागू करा दे। लेकिन पहले मणिपुर को बचा ले।  मणिपुर को जम्मु-कश्मीर की तरह तीन हिस्सों में विभाजित नहीं किया जा सकता। यदि मणिपुर कोई आग न बुझी तो पूरब के दूसरे राज्य भी इस आग की चपेट में आ सकते है।  यदि ऐसा हुआ तो महाराष्ट्र या राष्ट्र में परचम फहराने से क्या लाभ होने वाला है ?
(राकेश अचल की फेसबुक वॉल से)
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क़मर वहीद नक़वी
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