मणिपुर की दर्दनाक घटना के 79वें दिन कठोर हो चुकी अंतरात्मा में साहस बटोरकर केवल छत्तीस सेकेंड का संदेश देश को सुनाते वक्त क्या प्रधानमंत्री की ज़ुबान ज़रा भी लड़खड़ाई या कांपी नहीं होगी ? प्रधानमंत्री ने जब बिना नज़रें झुकाए हुए कहा होगा कि उनका हृदय दुख और क्रोध से भरा हुआ है और जो कुछ हुआ वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाला है तो क्या देश ने कोरोना काल की तरह ही उनके कहे की सत्यता पर पूरा यक़ीन कर लिया होगा ? क्या हर नागरिक को उनके इस आश्वासन पर पूरा भरोसा हो गया है कि किसी भी दोषी को छोड़ा नहीं जाएगा ?  क्या मणिपुर के असली दोषियों की पहचान कर ली गई है ?