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चीनी ‘एप्स’ पर बैन को लेकर पीछे क्यों हट रही है मोदी सरकार?

‘एप्स’ पर लगे प्रतिबंध से चीनी सरकार बौखला गई है। भारत सरकार यही चाहती थी। यही दबाव न तो फौजी कार्रवाई करके, न ही राजनयिक दबाव बनाकर और न ही व्यापारिक बहिष्कार करके बनाया जा सकता था। इसमें भारत का कुछ नहीं बिगड़ा और चीन पर दबाव भी पड़ गया। चीन की इन कंपनियों को लगभग 7500 करोड़ का नुकसान भुगतना पड़ सकता है। 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

चीनी ‘एप्स’ पर लगे प्रतिबंध का लगभग सभी ने स्वागत किया लेकिन हमारी सरकार एक ही दिन में पल्टा खा गई। उसने इन चीनी कंपनियों को 48 घंटे की मोहलत दी है कि वे बताएं कि उन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाए? इन ‘एप्स’ पर सरकार के आरोप ये थे कि इनके द्वारा भारतीय नागरिकों की गोपनीय जानकारियां चीनी सरकार को जाती हैं। इससे भारत की सुरक्षा को ख़तरा पैदा होता है और भारत की संप्रभुता नष्ट होती है। 

यदि भारत के पास इसके ठोस प्रमाण हैं तो इन चीनी कंपनियों को मोहलत देने की कोई ज़रूरत ही नहीं थी। यदि बिना ठोस प्रमाणों के भारत सरकार ने यह कार्रवाई कर दी है तो निश्चय ही उसे अपना यह कदम वापस लेना पड़ेगा और इसके कारण उसकी बड़ी बदनामी होगी। विपक्षी दल उसकी खाल नोंच डालेंगे। वे कहेंगे कि चीनी ‘एप्स’ पर प्रतिबंध की घोषणा वैसी ही है, जैसे लॉकडाउन (तालाबंदी) की घोषणा थी या नोटबंदी की घोषणा की गई थी। यह सरकार बिना सोचे-समझे काम करने वाली सरकार की तरह कुख्यात हो जाएगी। 

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टिक टाॅक के भारतीय संचालक निखिल गांधी ने दावा किया है कि उनकी संस्था सूचना सुरक्षा संबंधी भारतीय कानून का पूरी निष्ठा से पालन करती है और उसने चीनी सरकार को कोई भी जानकारी नहीं लेने दी है। 

चीनी ‘एप्स’ पर प्रतिबंध लगाने से सरकार को सीधा कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है, लेकिन इनमें काम करने वाले हजारों भारतीय नागरिक बेरोजगार हो जाएंगे। उन लोगों ने शोर मचाना भी शुरू कर दिया है।

उनका कहना है कि आप सिर्फ चीनी ‘एप्स’ पर जासूसी का आरोप लगाते हैं लेकिन क्या अन्य देशों के ‘एप्स’ के जरिए यही काम नहीं होता होगा? वे तो इस तरह की तकनीक में चीन से कहीं आगे हैं। आपने उन पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया? इन प्रश्नों का सीधा-सा जवाब यह है कि इन प्रतिबंधों को थोपने का जो मकसद था, वह पूरा हो रहा है। गलवान घाटी में चीन को नरम करना ज़रूरी था। 

चीनी कंपनियों को होगा नुकसान

इस प्रतिबंध से चीनी सरकार बौखला गई है। भारत सरकार यही चाहती थी। यही दबाव न तो फौजी कार्रवाई करके, न ही राजनयिक दबाव बनाकर और न ही व्यापारिक बहिष्कार करके बनाया जा सकता था। इसमें भारत का कुछ नहीं बिगड़ा और चीन पर दबाव भी पड़ गया। चीन की इन कंपनियों को लगभग 7500 करोड़ का नुकसान भुगतना पड़ सकता है। 

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शी से बात करें मोदी

मोदी सरकार चीन के आमने-सामने खम फटकारने के बजाय उसे टंगड़ी मारने की कोशिश कर रही है। अब देखें, चीन कौन सी टंगड़ी मारता है? कौन सा दांव खेलता है? इस मामले में मैं 16 जून से ही कह रहा हूं कि मोदी को चाहिए कि वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से सीधे बात करें। स्थानीय और अचानक मुठभेड़ के मामले को लंबा और गहरा न करें। 

जहां तक इन विदेशी ‘एप्स’ (इंटरनेट मंच) का मामला है, चीन समेत सभी देशों के ‘एप्स’ पर भारत-सरकार कड़ी निगरानी रखे। इन पर भारत-विरोधी और अश्लील सामग्री बिल्कुल न जाने दे। 

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक
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