श्रीकांत वर्मा की एक कविता हैः---कोसल में विचारों की कमी है। उसकी पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं----
कोसल में विचारों की कमी है महराज!
- विचार
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- 7 Sep, 2025

डोनाल्ड ट्रंप, शी जिनपिंग, नरेंद्र मोदी, व्लादिमीर पुतिन
भारत की अवधारणा कैसी है? क्या इसे मोदी सरकार की विदेश नीति से समझा जा सकता है? यह स्थिर है या अवसरवादिता से ग्रस्त? अमेरिका, चीन और रूस के बीच डांवाडोल रुख पर गहराई से समझिए।
महराज बधाई हो,
महराज की जय हो
युद्ध हुआ
लौट गए शत्रु
वैसे हमारी तैयारी पूरी थी
चार अक्षौहिणी थी सेनाएं
दस सहस्र अश्व
लगभग इतने ही हाथी
कोई कसर न थी
युद्ध होता भी तो
नतीजा यही होता
न उनके पास अस्त्र थे
न अश्व न हाथी
युद्ध हो भी कैसे
सकता था
निहत्थे थे वे
उनमें हर एक अकेला था
और हरेक यह कहता था
प्रत्येक अकेला है
जो भी हो जय, यह आप की है
बधाई हो
राजसूय पूरा हुआ
आप चक्रवर्ती हुए
वे सिर्फ कुछ प्रश्न
छोड़ गए हैं
जैसे कि यह
कोसल अधिक दिन
टिक नहीं सकता
कोसल में विचारों की कमी है।
अपने समय पर जब भी इधर उधर नजर दौड़ाता हूं तो श्रीकांत वर्मा की यह कविता कानों में तेजी से गूंजती है। ऐसा नहीं कि देश में नीतिवान श्रुतिवान गुणज्ञों की कमी है। लेकिन वे तात्कालिकता, व्यावहारिकता, पार्टीबंदी, स्वार्थ, व्यक्तियों के हित और कंपनियों के हितों में इस कदर उलझ गए हैं कि उनके पास न तो दिशा देने वाली विश्व दृष्टि बची है और न ही राष्ट्रीय दृष्टि। भतृहरि ने अपने नीतिशतक में व्यंगात्मक शैली में कहा हैः---
यस्यासि वित्तं
स नरः कुलीनः
स पंडितः स श्रुतवान गुणज्ञः
स एव वक्ता स च दर्शनीयः
सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयंते
हमारे दौर की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि धनवाले और शक्तिवाले ही विद्वानों और बौद्धिकों का निर्धारण करते हैं और यही वजह है कि विचार करने वाले भी वही कहते हैं जो उन्हें सोहाए। जो लोग बलवानों की दृष्टि का विरोध करते हैं उनकी संख्या बहुत थोड़ी है और वे भी किसी पार्टी, किसी व्यक्ति या किसी संगठन के दायरे से आगे बढ़कर सोच पाने में अक्षम है। यही वजह है कि हमारा समाज और हमारा राष्ट्र एक बेपेंदी का लोटा हो गया है। अमेरिकी झिड़की और अपमान से आहत होकर वह चीन और रूस की ओर भागता है और जैसे ही अमेरिका से थोड़ी सी अनुकूल पुचकार मिलती है वह दोगुने स्वर से उसका गुणगान करने लगता है। वह एक ओर ब्रिक्स को साधना चाहता है तो दूसरी ओर क्वाड को। वह एससीओ से जुड़ा है तो द्वितीय विश्व युद्ध के 80 साल पर होने वाले परेड से बच निकलता है। यानी वह खंडित विश्वदृष्टि से अपना और दुनिया का भविष्य संवारना चाहता है और विश्व गुरु बनना चाहता है।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।