हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानी एनसीईआरटी ने 'विभाजन विभीषिका' शीर्षक से एक विशेष मॉड्यूल जारी किया है। इस मॉड्यूल (अनुभाग) को कक्षा 6 से 8 (मध्य स्तर) के लिए एक पूरक संसाधन के रूप में वर्णित किया गया है और इसका उपयोग परियोजनाओं, पोस्टरों, चर्चाओं और बहसों के लिए किया जाना है। यह पूरक संसाधन सामग्री भारत के विभाजन के दोषियों/संगठनों की खोज के लिए है या यह आरएसएस के आकाओं की इच्छानुसार एक सांप्रदायिक आख्यान पेश करता है।
NCERT की 'विभाजन विभीषिका’: क्या मुस्लिम लीग सभी भारतीय मुसलमानों की पार्टी थी?
- विचार
- |
- |
- 28 Aug, 2025

NCERT के मॉड्यूल में ‘विभाजन विभीषिका’ पर बहस छिड़ी है। मॉड्यूल में किए गए दावे पर बड़ा सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम लीग सचमुच सभी भारतीय मुसलमानों की पार्टी थी? जानें एनसीईआरटी के दावों का सच दूसरी और आख़िरी कड़ी में।
पूरा दस्तावेज़ छल-कपट, विरोधाभासों और झूठ से भरा है, जिसका उद्देश्य विभाजन के बारे में सच बताने के बजाए, उससे कहीं ज़्यादा छिपाना लगता है। एनसीईआरटी के झूठ को कई तरह से देख सकते हैं। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि 'झूठ-1: मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना और राजनीतिक इस्लाम ने दो-राष्ट्र सिद्धांत की नींव रखी'। इस कड़ी में पढ़िए 4 और झूठ को।
झूठ 2:
मुस्लिम लीग सभी भारतीय मुसलमानों की पार्टी
यह मॉड्यूल यह आख्यान गढ़ने का प्रयास करता है कि मुस्लिम लीग भारत के सभी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती थी क्योंकि मार्च 1946 में संविधान सभा के चुनावों में उसने "मुसलमानों के लिए आरक्षित 78 में से 73 सीटें जीती थीं"। [प्रष्ठ 7 ] लेखक यह नहीं बताते कि मुस्लिम लीग अत्यधिक प्रतिबंधित मताधिकार प्रणाली के कारण जीती थी, जिसमें मुसलमानों का एक छोटा सा अल्पसंख्यक वर्ग ही मतदान करता था। उस समय प्रचलित प्रतिबंधित मताधिकार के तहत प्राप्त लाभ के कारण मुस्लिम लीग अधिकांश मुस्लिम सीटें जीतने में सफल रही।
ये चुनाव 1935 के अधिनियम की छठी अनुसूची के तहत हुए थे, जिसके अनुसार, संपत्ति और शैक्षिक योग्यता के आधार पर किसानों, अधिकांश छोटे दुकानदारों और व्यापारियों, और अनगिनत अन्य समूहों को मतदाता सूची से बाहर रखा गया था। भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रिया के एक प्रसिद्ध विशेषज्ञ, ग्रैनविल ऑस्टिन के अनुसार, "प्रांतों की केवल 28.5 प्रतिशत वयस्क आबादी ही 1946 की शुरुआत में हुए प्रांतीय विधानसभा चुनावों में मतदान कर सकती थी...आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को 1935 के अधिनियम की शर्तों के तहत लगभग मताधिकार से वंचित कर दिया गया था।"
[Austin, Granville, The Indian Constitution: Cornerstone of a Nation, OUP, Delhi, 2014. pp. 12-13.]