क़ानून बनने ऑनलाइन गेमिंग ख़त्म होगा या नये रूप में आ जाएगा?
मात्र सात मिनट में पास हुए जिस ऑनलाइन गेमिंग बिल की चर्चा कहीं नहीं हुई और राष्ट्रपति ने भी दस्तखत करके जिसे कानून बना दिया, उसका असर हर कहीं दिखने लगा है। इस बिल को ‘ढक’ लेने वाला पीएम-सीएम करप्शन बिल तो अपने हिसाब से राजनैतिक हंगामा कराके जेपीसी में चला गया है और विपक्ष के खुले विरोध से अटक सा गया है क्योंकि संविधान संशोधन वाला यह कानून अकेले एनडीए से पास नहीं हो पाएगा। उसकी चर्चा भी मुरझा गई है, लेकिन 3.9 अरब डॉलर के धंधे और हजारों करोड़ के विज्ञापन के धंधे के चलते गेमिंग कानून में बदलाव का असर हर कहीं दिखने लगा है।
सरकारी आमदनी भी 22 हजार करोड़ रुपए कम होगी और जब इस खेल में गैर महानगरी लोगों का हिस्सा दो तिहाई से ज्यादा होगा तो उनकी बेचैनी समझी जा सकती है। ऊपर से भी भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी के फ्रंट से अगर ‘ड्रीम 11’ का बिल्ला उतर जाए तो चर्चा कितनी होगी यह समझा जा सकता है क्योंकि इसे देश में विज्ञापन का सबसे पहला और महंगा स्थान मानते हैं। जर्सी वाले इस विज्ञापन के लिए यह गेमिंग कंपनी क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को 358 करोड़ रुपए देती थी और इसके विज्ञापन पर लगभग तीन हजार करोड़ खर्च होते थे।
400 कंपनियाँ थी गेमिंग में
कहना न होगा कि यह नया क़ानून बनते ही कंपनी को यह करार वापस लेना पड़ा और जो शुरुआती ख़बरें आईं उसके अनुसार उसका 95 फीसदी धंधा एकदम से बैठ गया। मनचाहा क्रिकेट टीम चुनकर भारतीय टीम से तुलना, खिलाड़ियों के प्रदर्शन की उम्मीद और वास्तविक प्रदर्शन की तुलना में सफल होने पर आप गेम जीतते थे और आपको शुरुआत में एक छोटी रकम से खाता खोलकर लाखों जीतने का अवसर रहता था। आपका पैन नंबर और बैंक खाता गेमिंग कंपनी के पास होता था और उसमें रकम आती निकलती थी। बड़े बड़े सितारे आपको गेम खेलने और जीतने का न्यौता देते थे। वे भी मालामाल, कंपनी भी मालामाल और सरकार भी मालामाल क्योंकि वह इस धंधे पर जीएसटी वसूलती थी।
और अकेले ड्रीम एलेवन का मामला न था। करीब 400 कंपनियां खेल करती थीं। अब सबका धंधा खत्म, उनके शेयर रसातल में जा रहे हैं लेकिन कोई शिकायत नहीं कर रहा है। ड्रीम एलेवन के मालिक हर्ष जैन ने कहा कि वे इस कानून को चुनौती नहीं देंगे और नई स्थितियों में और नए कानून के अनुसार इस धंधे को चलाने का प्रयास करेंगे। ज्यादातर मौजूदा कंपनियां यही रास्ता अपनाएंगी। लेकिन तब तक मैदान खाली नहीं रहने वाला है।
सट्टेबाजी वाली विदेशी कंपनियों ने भारत के इस फलते-फूलते बाजार में दस्तक दे दी है। डिपॉजिट बोनस में 500 से 700 फीसदी पॉइंट देकर वे खाते खुलवाने लगी हैं। ये खेल कैसे खेलना है, इसके लिए ऑनलाइन ‘क्लास’ लगने लगी हैं, खाते खुल रहे हैं।
भारत में ऑनलाइन गेमिंग
कितने खाते खुले हैं यह हिसाब अभी दो-तीन दिन में आना संभव नहीं है लेकिन खाते खुलने शुरू हो गए हैं। यह बाजार काफी बड़ा है और दुनिया के सट्टेबाजी/ऑनलाइन गेमिंग का 20 फीसदी हिस्सा भारत में है। और जानकार लोग मानते हैं कि काफी सारे रास्ते इसके लिए उपलब्ध हैं और नए कानून ने और रास्ते खोल दिए हैं। नया कानून बैन की बात करता है, कमजोर खिलाड़ियों, उनकी मानसिक-आर्थिक कमजोरी पर तरस खाता है और इस धंधे से ड्रग और आतंकी रिश्तों का जिक्र करता है। पर उसने धीरे से कुछ नए लूपहोल खोल दिए हैं और ऑनलाइन गेमिंग में 2023 के कानून से ही जो एक सही दिशा ली जा रही थी उसे छोड़ दिया है। सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि सरकार ने बैन के शोर के साथ गेमिंग को ‘सिन प्रोडक्ट’ मानकर तंबाकू, शराब और लक्जरी कार वाली श्रेणी में डालकर सबसे ज्यादा जीएसटी वसूलने का इंतजाम कर लिया है। और नई खबर यह है कि इस श्रेणी में कर की दरें चालीस फीसदी से भी ऊपर ले जाने की तैयारी है।
अब इस धंधे के लाभ और नुकसान तो जगजाहिर है। उनकी अलग से चर्चा करने का मतलब नहीं है। इसलिए सरकार अभी तक उसे चला रही थी तो वह अनजान न थी। वह अब भी ऑनलाइन गेम जारी रखेगी। लेकिन ज्यादा दिलचस्प बात यह लगती है कि इस बदलाव के पीछे क्या मंशा है। यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस बिल पर कोई चर्चा नहीं हुई और जो दो-तीन संशोधन आए भी थे उन्हें बिना वोटिंग खारिज करके बिल पास कर दिया गया।
नये खिलाड़ी आएँगे!
सो पहली मंशा तो पुराने खिलाड़ियों की जगह नए खिलाड़ी लाने का है-ऑनलाइन गेमिंग खत्म करना सिर्फ भाषायी खेल है। ये नए कौन होंगे इस पर नजर रखने की जरूरत है। एक तो विदेशी सट्टेबाज कंपनियां हो सकती हैं जिन्होंने खेल शुरू भी कर दिया है। कानून के जानकार मान रहे हैं कि पुराने कानून की दिशा ठीक थी और गड़बड़ियों को जान लेने के बाद उन्हें दूर करने वाले बदलाव किए जा सकते थे। असली गड़बड़ यह हुई है कि ऑनलाइन धंधे वाले खेल में ‘गेम आफ चांस’(जुआ या सट्टा ) और गेम आफ स्किल’(दिमागी कौशल या मनोरंजन) के विभाजन को धूमिल कर दिया गया है। अर्थात कोई अपने दिमागी कौशल को तेज रखने और बढ़ाने के लिए, मनोरंजन के लिए ऑनलाइन गेम खेलता है या सट्टा लगाता है, इस विभाजन को खत्म करने से यह सट्टेबाजी का कारोबार बन जाएगा।
कई जानकार सरकारी जल्दबाजी को गलत मानते हैं तो कई इसे रणनीति। असल में सरकार की कमाई बढ़ेगी ही और नए लोगों को जमाने का अवसर भी बनेगा। कई जानकार मानते हैं कि इस बदलाव से रियल मनी गेम का जोर कम होगा और ई-स्पोर्ट्स और कैजुअल सोशल गेम्स बढ़ेंगे। दूसरों का कहना है कि 2023 के कानून वाला विभाजन खत्म होने से सट्टेबाजी का जोर बढ़ेगा और बिना तकनीकी तैयारी के मैदान में आने से रेगुलेशन असंभव बन जाएगा। सरकार इस मामले में कितना लापरवाह रही है यह अभी भी दिख रहा था। पुरानी व्यवस्था में गड़बड़ करने वालों के खिलाफ सख्ती का एक भी मामला नहीं है जबकि जाने कितनी जाने गईं, कितने लोग नशेड़ी बने, कितने डिप्रेशन में गए। कौन कौन लाभ में रहा, किस खिलाड़ी ने विज्ञापन से कितने कमाए और सरकारी खाते में कितनी रकम गई यह हिसाब अनजान नहीं है। नया कानून अब किस तरह भारी सजा देगा-दिलाएगा और कैसे टैक्स चोरी रुकेगी यह भी साफ नहीं है। एक उद्देश्य विदेशी कंपनियों का दबदबा कम करना भी रखा गया है लेकिन पहले ही ज्यादा देसी कंपनियां थी, अब तो शुरुआत ही विदेशी सत्ता कंपनियों ने की है।