एक-दूसरे पर घोर अविश्वास और दुनिया के विभिन्न समर क्षेत्रों में अपना दबदबा बढ़ाने की होड़ के माहौल में चीन के राष्ट्रपति शी चिन फ़िंग 11 से 13 अक्टूबर के दौरान भारत यात्रा पर आएंगे। पिछले साल 28 अप्रैल को जब चीन के ऊहान शहर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति शी के साथ अनौपचारिक शिखर बैठक के लिये चीन जाने का फ़ैसला किया था तो राजनीतिक हलकों में काफ़ी हैरानी हुई थी। ऐसा इसलिए क्योंकि सामरिक हलकों में जून 2017 के दौरान शुरू हुई डोकलाम तनातनी के दौरान भारत को 1962 से भी बुरा सबक सिखाने की चीनी धमकियों की खौफ़नाक यादें ताजा थीं।
शी-मोदी बैठक के बाद क्या भारत विरोधी रुख छोड़ेगा चीन?
- विचार
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- 3 Oct, 2019

नरेंद्र मोदी और शी चिन फ़िंग।
शी-मोदी महाबलीपुरम शिखर बैठक से यही अपेक्षा की जाएगी कि पाकिस्तान से दोस्ती की ख़ातिर चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत विरोधी रुख नहीं अपनाए।
लेकिन आत्मविश्वास से भरे देश के नेता ने इसके बावजूद चीन जाने का फ़ैसला किया और कड़वे राजनयिक माहौल में काफ़ी मिठास भरने की कामयाब कोशिश की थी। इसे ऊहान स्प्रिट यानी ऊहान भावना की संज्ञा दी गई थी। इस भावना को जारी रखने के लिये ही चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग ने भारत का जवाबी दौरा करने का ऐलान किया ताकि भारतीय नेता के साथ अनौपचारिक वार्ता और गुफ्तगु का सिलसिला जारी रखा जाए और दुनिया के दो सबसे बड़ी आबादी वाले और बड़ी आर्थिक और सैनिक ताक़त रखने वाले देशों के बीच आपसी वैमनस्य दूर कर सौहार्द्र का माहौल बनाया जा सके।