रामकृष्ण मिशन और सिस्टर भगिनी निवेदिता के लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करने और ज़मीन पर काम करने के कारण ही कोलकाता मुंबई के मुक़ाबले प्लेग से ज्यादा अच्छे ढंग से निपट सका।
प्लेग के दौरान सरकार ने लोगों को बचाने के लिए जो सख्ती दिखाई, कई जगह वह महामारी से भी ज्यादा खतरनाक साबित हुई।
भगिनी निवेदिता मूल रूप से आयरलैंड की नागरिक थीं और वहां उनका नाम था - मार्गरेट एलिजाबेथ नोबेल। स्वामी विवेकानंद से प्रभावित होकर वह भारत आईं और रामकृष्ण मिशन में शामिल हो गईं, जहां पर उन्हें निवेदिता नाम दिया गया।
भगिनी निवेदिता लोगों को समझाने के लिए प्लेग पर भाषण भी देतीं। इतना ही नहीं, उनकी टोली गलियों और सड़कों वगैरह की खुद सफाई भी करती। उन्होंने नर्स बनकर अस्पतालों में प्लेग के मरीजों की सेवा भी की और यहीं से उन्हें सिस्टर निवेदिता भी कहा जाने लगा।
इंडियन मेडिकल गैजेट ने 1948 में कोलकाता और मुंबई के प्लेग का एक तुलनात्मक अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि जिस वर्ष कोलकाता में प्लेग के मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा थी तब भी वह मुंबई के मुकाबले एक तिहाई ही थी।