अपनी दैनिक शाखाओं में सुबह-सवेरे लाठी भांजने और शस्त्र पूजा के नाम पर जंग खाये भाले-तलवारों को पूजने वाले आरएसएस को भी क्या जेन ज़ी के आक्रोश से डर लगने लगा है? कम से कम आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयं सेवक प्रमुख मोहन भागवत के दशहरा भाषण से तो यही प्रतिध्वनित होता है। उन्होंने, अपने सालाना भाषण में नेपाल के हालिया ज़ेन जी आंदोलन को अराजक बता कर उसकी निंदा की। अफ़सोस ये कि अपने कुतर्क को सही ठहराने के लिए उन्होंने संविधान के संपादक और वंचितों के अधिकारों के पैरोकार डॉ. भीमराव आंबेडकर की उक्ति का सहारा लिया।
नेपाल में अथवा भारत के लेह-लद्दाख में जिन मुद्दों पर युवा पीढ़ी सड़कों पर उतरी क्या वो अराजकता फैलाने वाली है? क्या नेपो किड्स यानी रोज़गारविहीन देश में सुविधाभोगी नेता संतानों द्वारा काली कमाई पर ऐयाशी के दिखावे का विरोध अराजकता फैलाना है? यदि नेपाल की जेन ज़ी का आंदोलन अराजक ही था तो नेपाली सेना ने बल प्रयोग के बजाय देशहित में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से सत्ता छोड़ने को क्यों कहा? क्यों सेना ने वहाँ आंदोलनकारियों की इच्छानुसार पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री की शपथ लेने के लिए मनाया? क्यों राष्ट्रपति पौदेल ने कार्की की संविधान सम्मत सलाह के अनुरूप संसद को भंग करके उन्हें प्रधानमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई? यदि नेपाल का जेन ज़ी आंदोलन अराजक था तो उनकी माँग मानकर अंतरिम प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने मतदान की आयु घटा कर 16 वर्ष क्यों कर दी? क्यों श्रीमती कार्की ने आंदोलनकारियों की माँग के अनुरूप अगले साल मार्च में आम चुनाव करवाने की घोषणा कर दी? क्या नेपाल का ये घटनाक्रम इस ख़ूबसूरत पहाड़ी राज्य में लोकतंत्र को मज़बूत और आने वाली सरकारों को जनाकांक्षाओं के प्रति समर्पित नहीं बनाएगा?
विधानसभा चुनावों में जेन ज़ी से डर?
इतने सफल लोकतांत्रिक आंदोलन को अराजक बताने के पीछे कहीं भागवत को अपनी चेरी भाजपा को बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और केरल के विधान सभा चुनावों में जेन ज़ी से मिलने वाली चुनौती की आशंका तो परेशान नहीं कर रही? कहीं नेपाल और लद्दाख के जेन ज़ी आंदोलन में परिलक्षित समानताओं ने तो भागवत को उन्हें अराजक बताने को मजबूर नहीं कर दिया? यदि ऐसा नहीं है तो राजनीतिक भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के ख़िलाफ़ कम से कम 76 नेपाली नागरिकों के बलिदान से छिटकी राजनीतिक परिवर्तन की चिंगारी को भागवत क्यों अराजक बताने लगे?
दरअसल, लद्दाखी जेन ज़ी भी केन्द्रशासित लेह लद्दाख में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से रोज़गार ही माँग रहे थे। कभी छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के ‘मावा नाटे-मावा राज’ की तर्ज़ पर लेह लद्दाख की जेन ज़ी अपनी आदिवासी बहुल धरती को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की ही माँग शांतिपूर्ण प्रदर्शन के ज़रिए कर रहे थे। क्या भागवत इस बुनियादी तथ्य से भी अनजान हैं कि लद्दाखी युवाओं का आंदोलन लोक आविष्कारक सोनम वांगचुक के सत्याग्रही नेतृत्व में पूर्णतः अहिंसक रूप में चल रहा था? जेन ज़ी आंदोलन को अराजक बताते हुए क्या भागवत ये भी भूल गए कि लद्दाखी जेन ज़ी के अहिंसक प्रदर्शन पर आँसू गैस के गोले उन्हीं की शाखा की राजनीतिक पैदाइश गृह मंत्री अमित शाह के अर्धसैनिक बलों ने दागे? क्या भागवत ये भी नहीं जानते कि निहत्थी लद्दाखी जेन जी के चार सदस्य शाह के बलों की खोपड़ी में मारी गई गोली से ही मरे हैं?
क्या भागवत को ये भी नहीं पता कि लद्दाखी जेन जी तो भाजपा से उन्हीं का चुनावी वायदा पूरा करवाने के लिए वांगचुक के गांधीवादी उपवास और अहिंसक प्रदर्शन के ज़रिए आंदोलन कर रहे थे?
भागवत क्या इस तथ्य से भी अनजान हैं कि लेह लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने का वायदा साल 2019 में लेह लद्दाख सहित तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य में धारा 370 निरस्त करने की घोषणा के अंतर्गत ही मोदी सरकार ने किया था? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह तब से न जाने कितनी बार ख़ुद लेह लद्दाख की जेन ज़ी से वोट लेने के लिए उन्हें छठी अनुसूची में शामिल करने का वायदा कर चुके।
क्या भागवत इतना भी नहीं जानते? यदि इन तमाम सार्वजनिक तथ्यों की जानकारी के बावजूद भागवत जेन ज़ी के आंदोलन को अराजक बता रहे हैं तो इसके पीछे या तो राजनीति है या फिर युवाओं की सोच बदल जाने की घबराहट है? ज़ाहिर है कि राजनीति तो भागवत कम से कम अपने वार्षिक भाषण में करेंगे नहीं क्योंकि वो तो आरएसएस नामक कथित सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के मुखिया हैं जो राजनीति में लिप्त होकर भी उससे कथित रूप से दूर रह कर समाज निर्माण करता है! तो फिर भागवत, जेन जी के आंदोलन से इतने विचलित क्यों हो गए कि डॉ. आंबेडकर के हवाले से आंदोलनकारियों को अराजकता का पोषक बताने में भी उन्हें संकोच नहीं हुआ? भागवत को कहीं नेपाल और लेह लद्दाख के जेन जी आंदोलनों से ये डर तो नहीं लगने लगा कि भाजपा सहित उनके तमाम आनुषंगिक संगठनों द्वारा साम्प्रदायिक बँटवारे में उलझाए जा चुके गोबर पट्टी के युवा कहीं रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की माँग के लिए सड़क पर न उतर आएँ?
भागवत की चिंता
ज़ाहिर है कि भारत जैसे परिवर्तनकामी और पुराकांक्षी युवा बहुल देश में राजनीतिक-सामाजिक परिवर्तन की संभावना हमेशा ही प्रबल रहती है इसलिए भागवत की चिंता स्वाभाविक है। वे यह जानते हैं कि युवाओं को हमेशा ‘आई लव मुहम्मद’ और ‘राम आयेंगे’, ‘काशी विश्वनाथ और कृष्ण जन्मभूमि लेकर रहेंगे, जैसे सामाजिक बँटवारे वाले नारों में उलझा नहीं रखा जा सकता है। आखिर कभी तो रोज़गार, समता और अभिव्यक्ति की आज़ादी की माँग करने को युवा लामबंद होंगे ही? भागवत को शायद यही डर है कि लेह लद्दाख तथा नेपाल के जेन जी आंदोलन कहीं देशव्यापी न हो जाएँ क्योंकि जनता द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों और शाह की अलोकतांत्रिक कार्यशैली के ख़िलाफ़ अपना आक्रोश 2024 में भाजपा को बहुमत से वंचित करके जताया जा चुका है।
भागवत शायद गांधीवादी सोनम वांगचुक की मनमानी गिरफ्तारी का आला पूर्व सैन्य अधिकारियों द्वारा विरोध से जानता को विमुख करने के लिए भी जेन जी आंदोलन को अराजक बता रहे हैं। खासकर पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारी मेजर जनरल जी डी बख्शी द्वारा लद्दाखियों की तरफदारी से मोशा और भागवत भी सकते में हैं क्योंकि वो तो घोर मोशा और संघ समर्थक रहे हैं। भागवत के उक्त बयान को सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के लेह लद्दाख ही नहीं देश भर में हो रहे विरोध और उसे न्यायिक चुनौती देने की तैयारी को कुचलने की सरकारी तैयारी का संकेत भी माना जा सकता है। कुल मिलाकर जेन जी आंदोलन को भागवत द्वारा अराजक बताना सत्तारूढ़ दल समर्थकों की ऐसे देशव्यापी आंदोलन की आशंका के प्रति घबराहट के साथ ही उसे कुचलने की चेतावनी भी माना जा सकता है!