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रूस-यूक्रेन युद्ध।

रूस-यूक्रेन युद्ध का एक साल: परमाणु महाविनाश के मुहाने पर दुनिया!

यूक्रेन के खिलाफ रूसी सैन्य हमले के एक साल पूरे हो रहे हैं लेकिन इस अंतहीन युद्ध का कोई अंत नहीं नज़र आ रहा। यूक्रेन की साढ़े चार करोड़ आबादी के लिये अंधेरी रात इतनी लम्बी होगी, किसी ने इसका अनुमान नहीं किया था। दो तिहाई आबादी के मकान ध्वस्त हो चुके हैं और उनकी जिंदगियां तबाह हो रही हैं। रूसी हवाई हमलों से बचने के लिये इमारतों के बेसमेंट में  छिपने और दिन रात तोपों की गड़गड़ाहट और लड़ाकू विमानों की कर्णभेदी आवाज़ ने उनका चैन छीन लिया है। पिछले एक साल में यूक्रेन के लोगों की जिंदगी न केवल ठहर सी गई है बल्कि रसातल में भी चली गई है।

युद्ध को जारी रखने के लिये जहां रूस ने पांच लाख से अधिक फौज तैनात किये हैं वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की, सरकार में उनके साथी मंत्रियों और वहां के सैनिकों के अदम्य साहस, संकल्प, जिजीविषा और राष्ट्रभक्ति को देखते हुए अमेरिकी अगुवाई में यूरोपीय देशों ने उन्हें अत्याधुनिक हथियारों की सप्लाई तेज कर दी है। सैन्य हमला के पहले रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने सोचा था कि कुछ दिनों में ही यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की सत्ता छोड़ दूसरे देश में शरण ले लेंगे लेकिन जेलेंस्की ने एक विशाल सैनिक ताक़त के आगे नहीं झुककर पूरी दुनिया को अचम्भित किया है।

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जेलेंस्की के आह्वान पर यूरोपीय टैंकों और टैंक नाशक मिसाइलों, अमेरिकी विमान भेदी मिसाइलों, तोपों और मशीनगनों से लैस यूक्रेन के सैनिकों ने रूस के राष्ट्रपति की नाक में दम कर दिया है। हालांकि यूक्रेन के पूर्वी दोनबास के बड़े इलाके पर रूसी सैनिकों का कब्जा है, लेकिन यूक्रेन के इस भूभाग पर उसे स्थाई डेरा जमाने के लिये काफी मशक्कत करनी होगी। पिछले कुछ महीनों के दौरान यूक्रेन की सेना ने रूसी सैनिकों को कई मोर्चा खाली करने को मजबूर किया है। यूक्रेन को लग रहा है कि उसके सैनिकों ने ऐसी ही वीरता का प्रदर्शन किया तो वह यूक्रेन से रूस को खदेड़ देगा। लेकिन रूस ने भी मैदान छोड़ते अपने सैनिकों की शर्मिंदगी का पलट कर तेज हवाई हमलों से जवाब देकर  यूक्रेन का संकल्प तोड़ने की कोशिश की है। 

इस जद्दोजहद में रूस और यूक्रेन के क़रीब एक लाख सैनिक शहीद हो चुके हैं लेकिन रूसी राष्ट्रपति ने इस युद्ध को अपनी निजी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है। उन्हें पता है कि यूक्रेन से कुछ लिये बिना लड़ाई रोक दी तो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी काफी छीछालेदर होगी। उधर यूक्रेन के आत्मसमर्पण को अमेरिका और नाटो की पराजय के तौर पर माना जाएगा इसलिये भी अमेरिका इस युद्ध में यूक्रेन को झुकने नहीं दे सकता।

यही वजह है कि एक साल बाद भी यूक्रेन- रूस युद्ध भविष्य में क्या शक्ल लेगा इसका अनुमान कोई नहीं लगा पा रहा है। युद्ध तभी समाप्त हो सकता है जब या तो यूक्रेन अपने इलाकों पर रूसी कब्जा को मान्यता दे या रूस अपने सैनिकों को यूक्रेन की धरती से हटा ले।
यूरोप की धरती पर दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे लम्बे चले इस युद्ध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भले ही बहुमत से एक प्रस्ताव पारित कर दिया है लेकिन इसका कोई व्यावहारिक असर नहीं होगा।

राजनीतिक तौर पर भले ही रूस के रिकॉर्ड में एक और प्रतिकूल प्रस्ताव जुड़ जाएगा लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन के कानों पर जूं तक नहीं रेंगेगा। उलटे उन्होंने यूक्रेन पर हमले की बरसी पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित कर अपने सैनिकों की वीरता का गुणगान किया। इसके एक दिन पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन की राजधानी कीव का अघोषित दौरा अचानक कर रूस को यह संदेश दिया कि यूक्रेन को हर सम्भव मदद अमेरिका और नाटो के उसके साथी देश करेंगे। जवाब में रूसी राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि परमाणु मिसाइलों की संख्या सीमित करने वाली 2011 की संधि से रूस हट जाएगा।

यानी संदेश साफ है कि रूस अब महज यूक्रेन के खिलाफ ही नहीं अमेरिका के खिलाफ भी मोर्चा सम्भालने की तैयारी करेगा।

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रूसी मंशा के खिलाफ अमेरिकी अगुवाई वाले सैन्य संगठन नाटो ने भी अपना विस्तार कर स्वीडन और फिनलैंड को शामिल करने की मंजूरी दे दी है। नाटो की जिस विस्तारवादी योजना और नाटो को रूसी सीमा तक पहुंचाने के अमेरिकी इरादों को रूस ने बहाना बना कर यूक्रेन पर हमला किया था, वह दांव रूस के लिये उलटा पड़ता लग रहा है। यूक्रेन के खिलाफ रूसी सेना की व्यापक तबाही से भरी कार्रवाई ने यूरोपीय देशों में एकजुटता मज़बूत कर दी है। अपने को तटस्थ बताने वाले फिनलैंड व स्वीडन ने नाटो में शामिल होने की इच्छा जाहिर कर रूस के खिलाफ नाटो की ताक़त को और मज़बूती दी है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप इतना एकजुट पहले कभी नहीं देखा गया।

युद्ध के एक साल पूरा होने के पहले भारत या चीन की मदद से शांति वार्ता के प्रस्ताव अमेरिकी और यूरोपीय देशों से आ रहे हैं लेकिन रूस और यूक्रेन के एक दूसरे के ख़िलाफ़ क़ड़े रवैये को देखते हुए शायद भारत बीच में नहीं पड़ना चाहता। लेकिन चीन कितनी ईमानदारी से अपने सामरिक साझेदार रूस पर युद्ध ख़त्म करने का दबाव डालेगा, कहना मुश्किल है।

चीन के विदेश मंत्री वांग ई के मास्को पहुँचने के पहले चीन ने रूस के साथ अपनी दोस्ती को मजबूत करने का संकल्प जाहिर किया है।

हालाँकि चीन ने किसी देश की सम्प्रभुता के हनन का विरोध करते हुए संयुक्त राष्ट्र के नियम-कानूनों के पालन की बात कही है, लेकिन रूस को चीन द्वारा हथियारों और गोलाबारूद की सप्लाई करने की मंशा भी उजागर हुई है।

समग्रता में देखें तो रूस के साथ चीन खड़ा है जिसे अमेरिका को सबक़ सिखाने की तमन्ना है। ऐसे तनावपूर्ण माहौल के बीच रूस जब यह कहता है कि वह आत्मरक्षा में परमाणु हथियार चलाने से भी नहीं चूकेगा तो यह विश्व समुदाय के लिये चिंता की बात है। सवाल यह है कि क्या दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर खड़ी हो चुकी है?

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इसी डर से अमेरिका ने यूक्रेन की यह मांग स्वीकार नहीं की है कि रूसी सेना के खिलाफ लड़ने के लिये एफ़-16 लड़ाकू विमान भी मुहैया कराए। यूक्रेन के आसमान पर फ़िलहाल रूस का  कब्जा है जहाँ यदि नाटो के लड़ाकू विमान उड़ने लगेंगे तो रूस अपनी चेतावनी के मुताबिक़ इन विमानों को आसमान में ही ध्वस्त करने के लिये जवाबी हमला करेगा जो अमेरिका को बर्दाश्त नहीं होगा। तब रूस और अमेरिका यूक्रेन के आसमान पर आमने सामने होंगे। एक-दूसरे को नीचा दिखाने की यह सैन्य कार्रवाई किस स्तर पर पहुंचेगी, यह सोचना भयावह लगता है। इसलिये दोनों पक्षों की कोशिश है कि यूक्रेन पर रूसी सैन्य हमले के मुकाबले को एक सीमा से अधिक भड़कने नहीं दिया जाए। ऐसा लगता है कि पृथ्वी परमाणु महाविनाश के मुहाने पर पहुंच चुकी है। जिससे बचने के लिये यूक्रेन की निर्दोष जनता को बलि का बकरा बनाया जाना निकट भविष्य में खत्म होता नहीं दिखता।
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रंजीत कुमार
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