मैं यह इंतजार कर रहा था कि दिल्ली चुनाव खत्म हो जाएँ तो शाहीन बाग का विश्लेषण करूँ। मैं नहीं चाहता था कि इस पर शोरगुल भरे तीखे चुनाव प्रचार का असर दिखे। इस पर काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान और उसके बाद नतीजे आने तक राजनीतिक दलों के नेताओं और अलग-अलग तरह के प्रवक्ताओं से बातचीत और मुलाक़ात से मुझे लोगों की मानसिकता को समझने में सहूलियत हुई।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ में संघ के सिद्धान्तकार रतन शारदा ने यह लेख लिखा है। अंग्रेज़ी में लिखे इस लेख का हिन्दी अनुवाद पेश है।