कांग्रेस-अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने 7 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर पाँच सुझाव दिए थे, उनमें से ज़्यादातर बहुत अच्छे थे। मैंने उनका समर्थन किया था लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में उन्होंने जो कुछ बोला है, वह कांग्रेस-जैसी महान पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए शोभा नहीं देता। उनके बयान से ऐसा नहीं लगता कि वे कोरोना-युद्ध में भारत की जनता के साथ हैं, हालाँकि उन्होंने आम लोगों को सरकार द्वारा साढ़े सात हजार रुपये देने की माँग की है। वह कोरोना से लड़ने की बजाय सरकार से लड़ने पर उतारू हो गई हैं।
कांग्रेस कोरोना से लड़ने की बजाय सरकार से लड़ने पर उतारू क्यों?
- विचार
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- 24 Apr, 2020

कोरोना के जाँच-यंत्रों की कमी और आर्थिक-संकट आदि पर कांग्रेस के सुझाव उचित हैं लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष का क्या यह कर्तव्य नहीं बनता कि वे अपने लाखों कार्यकर्ताओं को ग़रीबों की सेवा में जुटा दें। माना कि सोनियाजी वयोवृद्ध हैं लेकिन राहुल को क्या हुआ है? घर में बैठकर आप पत्रकार-परिषद कर रहे हैं।
पता नहीं, किसने उनके दिमाग़ में यह बात भर दी है कि भाजपा कोरोना के संकट को सांप्रदायिक रूप दे रही है। क्या सोनियाजी के पास अपनी बात सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण है? जबसे तब्लीग़ी जमात के निज़ामुद्दीन-जमावड़े का मामला तूल पकड़ा है, मैं कई बार अपने लेखों में लिख चुका हूँ और टीवी चैनलों पर बोल चुका हूँ कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेताओं ने तब्लीग़ियों की लापरवाही और मूर्खता को भुनाने की कोई कोशिश नहीं की। उन्होंने मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक शब्द तक नहीं बोला। यों भी आम मुसलमान तो बिल्कुल निर्दोष है। उसका तब्लीग़ी जमावड़े से क्या लेना-देना?