मंत्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास।जवन जराये रोष भरि, करि तुलसी परिहास॥सिखा सूत्र से हीन करि, बल ते हिन्दू लोग।भमरि भगाये देश ते, तुलसी कठिन कुजोग॥बाबर बर्बर आइके, कर लीन्हे करवाल।हने पचारि-पचारि जन, तुलसी काल कराल॥सम्बत सर वसु बान नभ, ग्रीष्म ऋतु अनुमानि।तुलसी अवधहिं जड़ जवन, अनरथ किए अनखानि॥राम जनम महिं मंदिरहिं, तोरि मसीत बनाय।जवहि बहु हिन्दुन हते, तुलसी कीन्ही हाय॥दल्यो मीरबाकी अवध, मन्दिर रामसमाज।तुलसी रोवत हृदय हति, त्राहि-त्राहि रघुराज॥राम जनम मंदिर जहाँ, लसत अवध के बीच।तुलसी रची मसीत तहँ, मीरबाकी खल नीच॥रामायन घरि घन्ट जहँ, श्रुति पुरान उपखान।तुलसी जवन अजान तहँ, कियो कुरान अजान॥
अब प्रश्न यह है कि क्या तुलसीदास का यह ‘दोहा शतक’ हाल ही की खोज है। यदि हाँ तो किसने की यह खोज?
स्वामी रामभद्राचार्य ने अदालत के सामने इन दोहों का हवाला सबसे पहले 2003 में दिया था लेकिन सात-आठ साल तक कहीं किसी को इनकी भनक भी नहीं लगी। अगर 2010 में न्यायमूर्ति अग्रवाल ने अपने निर्णय में इन दोहों का हवाला नहीं दिया होता तो शायद किसी को पता भी नहीं चलता कि तुलसीदास ने राम मंदिर विध्वंस पर कोई दोहे भी लिखे थे।
1. तुलसी की रचनाओं में इन दोहों या 'श्री तुलसी शतक' या 'तुलसी दोहा शतक' (जैसा कि सोशल मीडिया पर चल रहा है) नाम के किसी संग्रह का कहीं भी उल्लेख नहीं है। (इस लिंक पर देखें उनकी रचनाओं की सूची)2. यदि ग्रंथ का नाम ‘श्री तुलसी शतक’ या ‘तुलसी दोहा शतक’ है तो उसमें कुल सौ दोहे होने चाहिए। बाक़ी के 92 दोहे कहाँ हैं? क्या इस नाम का कोई संग्रह बाज़ार में उपलब्ध है जिसमें ये सौ दोहे संकलित हैं? जवाब है, नहीं।3. तुलसी के इन दोहों में कुछ ऐसी भूलें हैं जो बताती हैं कि ये दोहे किसी उर्वर दिमाग़ की उपज है जिसने ये दोहे रचते समय काफ़ी सतर्कता बरती, फिर भी कहीं-कहीं चूक गया।4. दूसरे दोहे में ‘देश’ शब्द आया है - भमरि भगाये देश ते। तुलसीदास जी की अवधी शैली में देश नहीं, देस लिखा जाएगा। तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में ‘श’ का इस्तेमाल नहीं किया है - शिव को सिव लिखा है, शरद को सरद लिखा है, शंका को संका लिखा है (देखें चित्र)।
5. चौथे दोहे - ग्रीष्म ऋतु अनुमानि - में ग्रीष्म लिखा गया है जो संस्कृत का शब्द है। तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में ग्रीष्म ऋतु का ज़िक्र किया है लेकिन ग्रीषम के रूप में (देखें चित्र)। इसी तरह ऋतु की जगह रितु लिखा होना चाहिए था (देखें चित्र)।
6. दोहे में मात्राओं के नियम होते हैं। इसके चार पदों में पहले और तीसरे पद में 13-13 और दूसरे और चौथे पद में 11-11 मात्राएँ होनी चाहिए। लेकिन कई पदों में गड़बड़ियाँ हैं। चौथे दोहे - अनरथ किए अनखानि - में 12 मात्राएँ हैं, होनी चाहिए 11। इसी तरह - मीरबाकी खल नीच - में भी 12 मात्राएँ हैं। क्या महाकवि तुलसीदास मात्राओं के बारे में ऐसी चूक कर सकते थे?7. अगर ये दोहे असली होते, तुलसीदास जी के लिखे होते और इनकी प्रामाणिकता असंदिग्ध होती तो क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीनों जजों ने केवल इसी साक्ष्य के आधार पर यह नहीं कह दिया होता कि हाँ, अयोध्या में राम जन्मस्थान मंदिर था जिसे मीर बाक़ी ने तोड़ा था। आख़िर क्यों दो जजों ने अपने फ़ैसले में 'इतने महत्वपूर्ण सबूत' का ज़िक्र करना भी उचित नहीं समझा और जिसने इसका ज़िक्र किया, उसने भी इसके आधार पर अनुकूल फ़ैसला नहीं दिया। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने केवल यही कहा कि मसजिद से पहले वहाँ एक हिंदू मंदिर था और यह फ़ैसला उन्होंने पुरातत्व विभाग की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर किया न कि तुलसीदास के बताए गए इन दोहों के आधार पर।