loader

‘द कश्मीर फाइल्स’ का पूरा सच क्या है?

कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर बनी फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है और उम्मीद से ज्यादा कमाई कर रही है। गौरतलब है कि 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई थी और बड़ी संख्या में उन्हें अपने घर और ज़मीन से बेदखल होना पड़ा था। इसके पीछे बहुत से राजनैतिक, सामाजिक कारण थे, लेकिन इस मसले की जड़ पर ध्यान देने की जगह इसे सीधे सांप्रदायिक मसला बना दिया गया। इस फिल्म में भी समस्या के हर पहलू को परखने की जगह इसे एकतरफा नज़रिए से बनाया गया है। शायद फिल्म के निर्माता-निर्देशक की मंशा भी यही हो। वैसे भी फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की राजनैतिक विचारधारा किसी से छिपी नहीं है। अर्बन नक्सल शब्द भी उन्हीं की देन है।

ताज़ा ख़बरें

खैर कश्मीर हमेशा से भारतीय राजनीति का एक संवेदनशील विषय रहा है। और इस विषय को समझने के लिए व्यापक नजरिए की जरूरत है। इसे काला या सफेद यानी या तो इस पार या उस पार वाले व्यवहार से समझा नहीं जा सकता। यह फिल्म गुजरात, सहित कई राज्यों में टैक्स फ्री भी की गई है। इस फिल्म का प्रचार भी नामी-गिरामी लोग कर रहे हैं और ये बता रहे हैं कि अगर आप भारतीय हैं तो यह फिल्म आपको जरूर देखनी चाहिए। हालांकि अपनी राष्ट्रीयता और देशप्रेम साबित करने के लिए जनता किसी फिल्म की मोहताज नहीं है।

चाकलेट, बुद्धा इन ट्रैफिक जाम और द ताशकन्द फाइल्स जैसी फिल्मों के निर्देशक, औऱ अर्बन नक्सल किताब के लेखक विवेक अग्निहोत्री की नई फिल्म द कश्मीर फाइल्स ने रिलीज़ के तीन दिन के भीतर ताबड़तोड़ कमाई शुरू कर दी है। 

फिल्म 1990 के दौर के उस भयावह समय पर केन्द्रित है, जब आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों की हत्याएं कीं और उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर किया गया। हजारों कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने पर मजबूर हो गए। 'द कश्मीर फाइल्स' का मुख्य पात्र कृष्णा पंडित नाम का लड़का है, जो दिल्ली में ईएनयू नाम के मशहूर कॉलेज में पढ़ता है।

कृष्णा छात्र राजनीति में भी सक्रिय है। कृष्णा के दादा पुष्कर नाथ को 1990 में कश्मीर छोड़ना पड़ा था। वो खुद आतंकियों के अत्याचार के भुक्तभोगी हैं। उनका सपना है कि वो एक बार वापस अपने घर जा सकें।

हालात ऐसे बनते हैं कि कृष्णा खुद कश्मीर जाकर देखता है कि वहां क्या चल रहा है। इस दौरान उसके अतीत के राज उसके सामने खुलते हैं, जो कश्मीर और उसके अपने जीवन को लेकर उसका नजरिया बदल देते हैं। फिल्म में आतंकवाद के दृश्यों को काफी विस्तार से फिल्माया गया है, जिस वजह से उसका असर दर्शकों पर गहरा पड़ता है। इस फिल्म में अनुपम खेर, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी और मिथुन चक्रवर्ती मुख्य भूमिकाओं में हैं। सभी मंझे हुए कलाकार हैं, इसलिए उनकी अदाकारी में कोई कमी नहीं है। लेकिन बेहतर होता अगर फिल्म में सभी पहलुओं को बराबरी से उठाया जाता।

विचार से ख़ास

कश्मीरी पंडितों का विस्थापन भारत की गंगा-जमुनी सभ्यता के माथे पर एक और दाग था, जिसे जल्द से जल्द मिटाया जाना था। लेकिन एक बार फिर लोगों की जान को राजनैतिक फायदे के लिए भुनाया गया। 90 से लेकर 2022 तक देश में कई सरकारें आईं और गईं। देश में कांग्रेस का भी शासन रहा और बीजेपी का भी। मगर यह समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई और अब इसे पूरी तरह सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई है। बताया जाता है कि कश्मीरी पंडितों पर जुल्म और दर्द की कहानी को पर्दे पर दिखाने के लिए विवेक अग्निहोत्री ने खूब शोध किया। पीड़ितों के बारे में जानकारी जुटाई। लेकिन यह मेहनत कहीं न कहीं इकतरफा ही रही, क्योंकि इसमें तथ्यों को कसौटी पर नहीं परखा गया। हाल ही में भारतीय वायु सेना के शहीद 'रवि खन्ना' की पत्नी निर्मला ने 'द कश्मीर फाइल्स' के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी।

स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना की पत्नी ने अदालत से अपील की है कि फिल्म में उनके पति को दर्शाने वाले दृश्यों को हटाया जाए। उन्होंने दावा किया कि फिल्म में दिखाए गए तथ्य उनके पति के साथ हुई घटनाओं के विपरीत हैं। गौरतलब है कि स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना 25 जनवरी, 1990 को श्रीनगर में शहीद हुए चार वायुसेना कर्मियों में से एक थे। इस याचिका पर अतिरिक्त जिला न्यायाधीश दीपक सेठी ने आदेश दिया है कि 'रवि खन्ना की पत्नी द्वारा बताए गए तथ्यों को देखते हुए, फिल्म में से शहीद स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना से संबंधित कार्यों को दर्शाने वाले दृश्य दिखाने पर रोक लगा दी गई है।' अदालत का ये आदेश बताता है कि विवेक अग्निहोत्री ने पूरा सच बयां नहीं किया है।

vivek agnihotri film the kashmir files controversy - Satya Hindi
बहरहाल, फिल्म में दिखलाई कहानी पूरा सच नहीं है, क्योंकि इतिहास आधे-अधूरे तथ्यों के साथ पढ़ा नहीं जा सकता। यह याद रखना होगा कि कश्मीर में जिस वक्त नरसंहार और पलायन की घटनाएं हुईं, उस वक्त केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी, जो भाजपा के समर्थन से बनी थी। वीपी सिंह सरकार दिसंबर 1989 में सत्ता में आई। पंडितों का पलायन उसके ठीक एक महीने बाद से शुरू हो गया। साल 1990 से लेकर 2007 के बीच के 17 सालों में आतंकवादी हमलों में 399 पंडितों की हत्या की गई। इसी दौरान आतंकवादियों ने 15 हजार मुसलमानों की हत्या कर दी। और सबसे बड़ी बात ये कि 90 से पहले देश में कांग्रेस का ही शासन अधिकतर रहा, लेकिन इस दौरान कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि कश्मीरी पंडितों को पलायन करना पड़े, लेकिन राम मंदिर के लिए रथयात्रा निकाल कर सत्ता में आने की भाजपा की कोशिशों के बीच यह दुखद अध्याय भी जम्मू-कश्मीर में जुड़ ही गया। आख़िरी बात ये कि इस फिल्म को आपदा की तरह देखना चाहिए, और इस आपदा में अवसर देखने वालों को करारा जवाब जनता को देना चाहिए।
(देशबंधु अख़बार का संपादकीय। साभार)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें