बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से कहा कि अगर वे जाति गणना के समर्थक हैं तो भाजपा शासित प्रदेशों में भी जाति गणना कराएं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना करने की मांग करें।
तेजस्वी ने भले ही यह मांग कर दी हो लेकिन ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व जाति जनगणना के पक्ष में नहीं हैं। ध्यान रहे की अंतिम राष्ट्रीय जाति जनगणना 1931 में कराई गई थी और यह अधिकार केंद्र सरकार का ही माना जाता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी लंबे समय से जाति जनगणना करने की मांग करते रहे हैं और वह यह भी कहते हैं कि अभी चूंकि आम जनगणना नहीं हुई है इसलिए जाति जनगणना को आम जनगणना के साथ कर लिया जाए। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि जाति गणना का परिणाम आने के बाद हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व का मुद्दा भी उठेगा इसलिए आरक्षण की सीमा पुनर्नियोजित करने या बढ़ाए जाने की भी मांग हो सकती है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी जाति जनगणना को लेकर नर्वस नजर आती है।
बिहार में जाति गणना पर जब पटना हाईकोर्ट ने रोक लगाई थी तो भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का उत्साह देखा जा सकता था क्योंकि इससे उन्हें नीतीश कुमार सरकार पर हमला करने का मौका मिल गया था। भारतीय जनता पार्टी के कई नेता यह आरोप लगाते हैं कि जाति गणना से जातीय संघर्ष और बढ़ेगा और इससे जाति नफरत भी फैलेगी। जाति गणना के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के इस ऊहापोह को देखते हुए ही शायद कांग्रेस पार्टी की नेता सोनिया गांधी ने अपने एजेंडे में इसे आवश्यक बताया है।
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जाति जनगणना भाजपा के लिए बन गई है दोधारी तलवार
यह देखना रोचक होगा कि भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस की इस मांग का संसद में कैसे जवाब देती है। सरकार अगर इस मुद्दे पर जवाब नहीं भी दे तो यही माना जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी जातीय जनगणना के समर्थन में नहीं है। जाति जनगणना दरअसल भारतीय जनता पार्टी के लिए दोधारी तलवार की तरह बन चुकी है। अगर वह जाति गणना का समर्थन करती है तो उच्च वर्ग के उसके समर्थक नाराज हो सकते हैं। दूसरी और अगर वह जाति जनगणना का विरोध करती है तो ओबीसी वर्ग उसके खिलाफ जा सकता है। इस मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का रुख भी भारतीय जनता पार्टी के निर्णय को प्रभावित करेगा।
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