भारतीय मूल के अमेरिकी नेता ज़ोहरान ममदानी न्यूयॉर्क की राजनीति में एक प्रगतिशील और जनपक्षधर चेहरा बनकर उभरे हैं। जानिए कैसे उन्होंने आप्रवासी समुदायों, आवास और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर काम करते हुए शहर के दिल में अपनी पहचान बनाई।
गगनचुंबी इमारतों वाले न्यूयॉर्क में 4 नवम्बर 2025 की चकाचौंध भरी रात में बहुत कुछ बदल गया। ज़ोहरान ममदानी नाम के गुजराती अकादमिक पिता और पंजाबी फिल्मकार माँ के एक सीधे सादे नौजवान बेटे ने अमेरिकी शहरी राजनीति की छत तोड़ डाली — न किसी नारे से, न किसी हथौड़े से, बल्कि अपने विश्वास की शांत गड़गड़ाहट से।
पिछले सौ सालों में सबसे युवा सिर्फ 34 साल की उम्र में वह अमेरिका के सबसे बड़े शहर का मेयर चुना गया। उसने उन पुराने “मध्यमार्गी” उम्मीदवारों और अरबपतियों के प्यादों को हराया जो खुद को लोकतंत्र का चेहरा बताते थे। यह जीत कोई संयोग नहीं थी — यह घोषणा थी कि असली बदलाव समझौते से नहीं, हिम्मत से आता है।
ब्रोंक्स की छोटी दुकानों से लेकर ब्रुकलिन के आधुनिक अपार्टमेंटों तक, एक ही आवाज़ गूँजी— जोखिम उठाओ, तभी राजनीति बदलेगी। ममदानी की जीत राजनीति के पुराने गणित को ध्वस्त कर देती है।
ममदानी चुनौतियों से कैसे जीते?
ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर उसे “विदेशी समाजवादी” कहकर नीचा दिखाने की कोशिश की, एलन मस्क ने अपने मंच पर उसे “प्रगति का दुश्मन” बताते हुए अमीरों पर टैक्स लगाने के प्रस्ताव का मज़ाक उड़ाया, वॉल स्ट्रीट और सिलिकॉन वैली के अरबपति उसके ख़िलाफ़ पैसों की बौछार करते रहे, और डेमोक्रेटिक पार्टी की पुरानी जमात, जो 2016 की हार से अब तक उबर नहीं पाई थी, बस औपचारिक समर्थन दे कर किनारे हो गई।
पूर्व गवर्नर एंड्रयू कुओमो, अपनी पुरानी खुन्नस संभाले, पर्दे के पीछे ज़हर घोलते रहे। लेकिन अंत में ममदानी ने 12 प्रतिशत के भारी अंतर से जीत दर्ज की — वह भी युवाओं, मज़दूरों और प्रवासी समुदायों के बूते, जिन्होंने उसमें कोई नेता नहीं बल्कि एक उम्मीद देखी। इस जीत को समझने के लिए ममदानी की जड़ें समझनी होंगी — जड़ें जो निर्वासन और निखार, दोनों से बनी हैं।
1991 में युगांडा के कंपाला में जन्मे ज़ोहरान, प्रसिद्ध विद्वान महमूद ममदानी और फिल्मकार मीरा नायर के बेटे हैं। एक पिता जिन्होंने “सिटिज़न एण्ड सब्जेक्ट” जैसी किताबों में उपनिवेशवाद की दरारें खोलीं, और एक माँ जिनकी फ़िल्में — सलाम बॉम्बे, मिसिसिपी मसाला, मॉनसून वेडिंग — प्रवासी जीवन की नमी और दर्द को पर्दे पर उतारती हैं।
बचपन में परिवार के साथ अमेरिका आए, तमाम मुश्किलें सहीं, और 2018 में नागरिक बने। सिर्फ सात साल बाद वही शख़्स न्यूयॉर्क का मेयर है — एक ऐसा प्रवासी जो अस्थिरता से उभरा और उसे अपनी ताकत बना गया।
जीत के बाद ममदानी ने क्या कहा?
जावित्स सेंटर में जीत के बाद जब कागज़ी फूलों की बारिश हो रही थी, ममदानी ने कहा — “मैं उन प्रवासियों का बेटा हूँ जिन्होंने दीवारें नहीं, दुनिया के पुलों का सपना देखा। आज न्यूयॉर्क कह रहा है — हम दीवारें नहीं, पुल बनाते हैं।”
यह भाषण साधारण नहीं था — इसमें क्रांति की आग थी, पर शब्दों में मर्यादा भी। न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा — “यह घायल राजनीति के लिए मरहम है।”
ममदानी ने अपने संघर्ष की कहानी को नीतियों में पिरोया — सार्वभौमिक चाइल्डकेयर, किराए पर रोक, और “ग्रीन न्यूयॉर्क” योजना के तहत पुराने मकानों पर सोलर पैनल लगवाने का संकल्प।
उनका कहना था — “गरीबी कोई चरित्र दोष नहीं, नीति की गलती है।”
पत्रकार जमेल बूई ने लिखा, “यह बर्नी सैंडर्स की तड़प है, पर एक मोहल्ले के कार्यकर्ता की संवेदना के साथ।”
वहीं वॉल स्ट्रीट जर्नल को यह सब पसंद नहीं आया। उन्होंने लिखा — “रेशमी दस्ताने में छिपा समाजवाद का लोहे का पंजा।”
जब रिपोर्टर जॉन पॉल रोलर्ट ने पूछा कि 100 मिलियन डॉलर से ऊपर की संपत्ति पर टैक्स क्यों, तो ममदानी ने शांत स्वर में कहा — “यह किसी से बदला नहीं, बल्कि गणित है।” और फिर तंज़ किया — “बाज़ारों को नैतिक मानने वाले जब लाखों को ठंड में छोड़ दें, तो नैतिकता की जाँच कौन करेगा?”
पत्र के संपादक, जो शुरू में उनके विरोधी थे, मान गए कि ममदानी ने “तकनीकी शासन” के खोखलेपन को उजागर कर दिया है। पैसे वालों की आवाज़ ऊँची थी, पर जनता ने उनका संगीत नहीं सुना।
समुद्र पार, द इकोनॉमिस्ट ने ममदानी के विचारों की तह तक जाने की कोशिश की। उनके वॉशिंगटन पोस्ट के लेख का हवाला दिया गया जिसमें उन्होंने गज़ा में इज़राइल की कार्रवाई को “नैतिक तबाही” कहा था — और अमेरिका की चुप्पी को उसकी सहमति।
एक मुस्लिम समाजवादी होकर उन्होंने इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू की खुली आलोचना की थी— यहाँ तक कहा, “अगर वह JFK हवाई अड्डे पर उतरे तो मैं गिरफ्तारी का आदेश दूँगा।”
यहूदी इलाक़ों में 68% वोट पाए
ऐसे बयानों के बावजूद, उन्होंने ब्रुकलिन के प्रगतिशील यहूदी इलाक़ों में 68% वोट पाए।
उनकी बात यह नहीं थी कि वे यहूदियों के विरोधी हैं, बल्कि यह कि वे साम्राज्यवाद के विरोधी हैं। उन्होंने लिखा— “ज़ायोनिज़्म की अति वही राष्ट्रवाद है जिससे हमारा परिवार भागा था।” इकोनॉमिस्ट ने लिखा— “यह वह बारीकी है जो आज की ध्रुवीकृत राजनीति में दुर्लभ है — उन्होंने वामपंथ को रीढ़ दी है।”
वॉशिंगटन पोस्ट ने उनके “गरीबी को अपराध मानने की नीति” को “न्याय की नयी परिभाषा” कहा। उनकी सोच, जो “आवास को मानव अधिकार” और “निगरानी वाले पुलिस तंत्र को खत्म” करने तक जाती है, उनके पिता की उपनिवेश-विरोधी दृष्टि से उपजी है — “सत्ता किसी के पास नहीं होती, वह निभाई जाती है, और उसे बदला जा सकता है।”
यह नारे नहीं हैं, बल्कि एक नये समाज की रूपरेखा हैं।
अब सवाल है— क्या ममदानी की यह जीत अकेली घटना है या बड़े बदलाव की शुरुआत? दरअसल, यह अमेरिका के राजनीतिक नक्शे में दरार का पहला संकेत है।
पहला, समाजवादी एजेंडा — जिस देश में “सोशलिज़्म” शब्द आज भी डर पैदा करता है, वहाँ ममदानी ने नगर स्तर पर “सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा” और “मज़दूर सहकारी संस्थाएँ” जैसी नीतियाँ रखीं। वर्किंग फैमिलीज़ पार्टी से लेकर AFL-CIO तक, सबने समर्थन दिया। यह जीत सिएटल और मिनियापोलिस जैसे शहरों में भी नयी ऊर्जा भर देगी। अब “ममदानी क्लॉज़” के नाम से स्थानीय संविधान में बदलावों की चर्चा शुरू है — लोक बैंकों का गठन, सार्वजनिक स्वामित्व, और किरायेदार अधिकारों का विस्तार। जनता को यूटोपिया नहीं चाहिए — उसे बस वर्तमान का डिस्टोपिया असहनीय लग रहा है।
दूसरा, ज़ायोनिज़्म पर स्पष्ट विरोध— ममदानी का “सिद्धांतगत पक्षधरता” वाला रुख़ यह बताता है कि फ़िलिस्तीन के साथ एकजुटता जताना अब राजनीतिक आत्महत्या नहीं। ज्यूइश वॉइस फ़ॉर पीस जैसी संगठनों ने उनके लिए काम किया— और अब पेंसिल्वेनिया से लेकर टेक्सास तक यह असर फैल रहा है। हाँ, एआईपैक जैसी लॉबियों का विरोध बढ़ेगा, पर अब यह बहस छिपाई नहीं जा सकेगी।
ममदानी का मॉडल
तीसरा, ममदानी का मॉडल— वह कृत्रिम मुस्कान वाला नेता नहीं, असली संवाद करने वाला इंसान है। वह टिकटॉक लाइव से जनता से जुड़ता है, फंड इकट्ठा करने के लिए डिनर नहीं करता। उसकी जीत यह बताती है कि अमेरिका का नेतृत्व अब बूढ़ों के हाथ में नहीं रहेगा। 34 साल की उम्र में वह न्यूयॉर्क की प्रतिनिधि “एओसी” से भी कम उम्र के हैं— और आने वाली पीढ़ियों को दिखा चुका है कि राजनीति अब उनकी भी है। प्रवासी अब “हाइफ़न वाले अमेरिकी” नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के साथ खड़े नागरिक हैं। 2024 की जनगणना के मुताबिक़, अमेरिका के 40% मतदाता अब गैर-श्वेत हैं — राजनीति अब एकरंगी नहीं रह सकती।
ओबामा ने उसे बधाई देते हुए कहा कि “व्हाइट हाउस का रास्ता खुला है,” पर ममदानी का जवाब था— “आभार, पर मैं मार्गदर्शन नहीं, शासन चाहता हूँ।” बर्नी सैंडर्स ने ट्वीट किया— “आज मैं खुद को युवा महसूस कर रहा हूँ।” कुओमो जैसे पुराने चेहरे किनारे हो गए, मस्क अपने मीम्स में लौट गए और ट्रम्प की टोली अब उसी की लोकप्रियता को माप रही है। ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के बीच यह जीत एक नई चुनौती बनकर उभरी है। जहाँ-जहाँ डेमोक्रेट्स ने हालिया चुनावों में अप्रत्याशित जीत दर्ज की — वर्जीनिया, न्यू जर्सी, पेंसिल्वेनिया — वहाँ ममदानी की लहर महसूस की जा सकती है। न्यूयॉर्क अब प्रतिरोध का किला है— प्रवासियों का आश्रय, ट्रम्प की नीतियों का प्रतिकार।
ममदानी विरोध नहीं करते, वह विकल्प देते हैं। वह ट्रम्प को खारिज नहीं करते, वह उसे अप्रासंगिक बना देते हैं। ममदानी भीड़ से निकले वो शख़्स है— जो सत्ता को जनता की ओर लौटा रहे है। उन्होंने वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए साक्षात्कार के अंत में कहा — “उन्होंने मुझे बाहरी कहा, पर असली न्यूयॉर्क वाले वही हैं जो सबके लिए शहर बनाते हैं।”
अमेरिका के दिल की धड़कन अब प्रगतिशील हो चली है।