सिंघवी मानते हैं कि नेतृत्व का संकट हल नहीं होने से कांग्रेस का नुक़सान हो रहा है और यदि राहुल गाँधी ज़िद पर अड़े हैं तो फिर चुनाव से नया अध्यक्ष बनाया जाना चाहिए।
सिंघवी- राजस्थान में अभी पर्यटन का मौसम नहीं है, लेकिन दलबदल के कुछ लोगों ने इसे दिल्ली, जयपुर, हरियाणा का पर्यटन बना दिया है। लेकिन यह सवाल आपको उन लोगों से पूछना होगा जो विधायकों को लेकर हरियाणा में बैठे हैं। किसी भी पार्टी में ऐसा नहीं होता कि आपने तय कर लिया कि कुछ तय समय तक एक मुख्यमंत्री होगा और दूसरा उप मुख्यमंत्री ढाई साल बाद बटन दबा दें। यह आकांक्षा ग़लत है। जिस तरह आज संस्थाओं और सिस्टम का दुरुपयोग हो रहा है। बेशर्मी से इस्तेमाल हो रहा है, चाहे राज्यपाल को ले लीजिए या केन्द्र को।
सिंघवी- राज्यपाल ने कितना वक़्त लिया है, सत्र बुलाने का ताकि ख़रीद-फ़रोख़्त हो सके, यह किसके इशारे पर हो रहा है, यह सब जानते हैं और विधायकों की बाड़ेबंदी हरियाणा में की गई है, यहाँ तो विधायक अब तक जयपुर में ही थे। संविधान के वक़्त आंबेडकर ने कहा था कि गवर्नर केवल दिखाने का पद है, सरकारिया कमीशन ने भी कहा है, लेकिन यहाँ चार बार कह दिया, मगर आपने क्या किया? आपका उद्देश्य था कि ख़रीद-फ़रोख़्त के लिए समय दिया जाए। यह बिना केन्द्र के इशारे पर हो रहा है। हमारे प्रखर प्रधानमंत्री राज्यपाल को अपना राजधर्म का पालन करने की चेतावनी नहीं देते। और हम इस नंगे नाच को चुपचाप बैठकर देखते रहे।
सिंघवी – यदि हमने ग़लत किया होगा तो क्या आपका ग़लत सही माना जाएगा। 1990 के बाद जो फ़ैसले आए हैं, उनमें कोर्ट ने सतर्क कर दिया कि कैसे काम करना है तो उसके बाद भी आपकी यह हिम्मत हुई यानी आपको हर हाल में सत्ता चाहिए। और दल बदल तो अपने ही लोगों में होती है, अपने घर से दूसरे घर में जाना।
सिंघवी- मैं आपसे सौ फ़ीसदी सहमत हूँ, इसपर मैंने लिखा भी है। अब सब कुछ जुगाड़ के भरोसे चल रहा है और हर कोई जुगाड़ का इस्तेमाल कर रहा है। कई बार स्पीकर अपने हिसाब से जल्दबाज़ी करता है तो कभी लंबे समय तक फ़ैसला नहीं, तो दोनों में वो मदद करता है। अब समय आ गया है कि उसमें बहस करके ज़रूरी बदलाव किए जाएँ। और एक निष्पक्ष इंडिपेंडेंट व्यवस्था बना दी जाए। और यह बदलाव केवल कांग्रेस नहीं कर सकती, यह लंबा काम है। इसमें वक़्त लगता है।
अभिषेक मनु सिंघवी
सिंघवी – मैं जीतने हारने की भविष्यवाणी तो नहीं कर सकता, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि गहलोत बहुत सफलता से जीतेंगे!
सिंघवी – ऐसी बातों के बाद भी मेरे सहयोगियों ने कहा है कि दरवाज़े खुले हैं। लेकिन पहला क़दम कौन लेगा। गहलोत साहब ने जिन शब्दों का प्रयोग किया होगा वो उनकी व्यथा को समझना होगा। मैं समझता हूँ कि पायलट भटक गए हैं, लेकिन कल वो आ जाएँ तो गहलोत साहब भी उनका स्वागत करेंगे, लेकिन कोई शर्त मत डालिए। विश्वास रखिए कि आपका समय आने वाला है।
सिंघवी – ऐसा कहना ठीक नहीं है, यह अतिश्योक्ति है। बहुत से लोगों को बहुत मौक़े मिले हैं। हाँ, असहमति बहुत है कांग्रेस में, बीजेपी की तरह कहने से डरते नहीं हैं। जो असंतोष है वो उसके लिए नेतृत्व के बारे में फ़ैसला होना चाहिए।
सिंघवी – अभी हमारी हालत ख़राब है, लेकिन हार के बाद भी यह कहना ग़लत होगा कि वे दोबारा नहीं हो सकते। हम कह रहे हैं कि राहुल गाँधी आएँ और अगर वो नहीं आना चाहते, उनकी ज़िद है तो फिर इस पर फ़ैसला करके नए अध्यक्ष को चुना जाए, यह अनिश्चितता नहीं रहनी चाहिए। इससे नुक़सान हो सकता है। कुछ हफ्तों में हल निकलेगा। कोई तो आएगा ही और चुनाव के रास्ते आएगा।
सिंघवी – यह वाजिब है कि गाँधी परिवार के बलिदान, काम और ताक़त की वजह से सब लोग चाहते हैं कि वो इस ज़िम्मेदारी को स्वीकार करें, इसमें क्या ग़लत है, लेकिन यदि वो नहीं चाहते तो इसका गणतांत्रिक तरीक़े से हल निकलना चाहिए। लेकिन समय बहुत लग रहा है।
सिंघवी- राहुल गाँधी पिछले एक साल से अध्यक्ष नहीं हैं कांग्रेस का काम चल रहा है। सोनिया जी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम कर रही हैं बल्कि कई बार राहुल जी के पास टाइम माँगते हैं तो वह कहते हैं कि मैं अध्यक्ष नहीं हूँ। लेकिन प्रकृति हो या पार्टी, कहीं भी वैक्यूम नहीं रह सकता, लेकिन यह लॉन्ग टाइम विकल्प नहीं है।
सिंघवी- ये मेरे शब्द नहीं हैं और आप भी समझते हैं कि इसका मतलब क्या है। यह आप भी समझते हैं, लेकिन मैं इतना कहता हूँ कि समय बहुत हो गया, इसका हल होना चाहिए।